दादी जी दादी जी!! "आज आप हमें
चित्रकूट के बारे में अच्छे से जानना चाहते हैं वहां ऐसी क्या विशेषता थी कि भगवान राम जी ने अपने 14 वर्ष के वनवास काल के 12 वर्ष वहीं बिताये"?
जरूर कृष्णा बेटा आज तुम सभी को पावन तपोस्थली चित्रकूट के सभी मुख्य स्थानों के विषय में बताती हूं ।
चित्रकूटं सुवर्णकूटं रजताभिकूटं माणिक्यकूटं मणिरत्नकूटम ।
अनेककूटं बहुवर्णकूटं श्री चित्रकूट शरणं प्रपद्ये ।
चित्रकूट भारत के सबसे प्रसिद्ध प्राचीन तीर्थ स्थलों में से एक है । यहां के कई स्थलों मे सतयुग मे ब्रह्मा जी ने स्वयं यज्ञ किये थे जिनके साक्षी चिन्ह आज भी है।
आदिकवि महर्षि बाल्मीकि ने अपनी रामायण कथा में सबसे पहले चित्रकूट का वर्णन किया था । चित्रकूट का वर्णन कालिदास ने रघुवंश में भी किया है ।मेघदूत में यक्ष के निर्वासन में चित्रकूट को रामगिरि पर्वत कह कर संबोधित किया है । भवभूति ने उत्तररामचरितम् में चित्रकूट का वर्णन किया है । संघदास की रामायण जैन संस्करण में जैन साहित्य, बौद्ध ग्रंथ ललित विस्तर में भी चित्रकूट का वर्णन मिलता है ।आदि ग्रन्थों मे भी चित्रकूट का वर्णन मिलता है । महाभारत , श्रीमद्भागवत,आध्यात्म रामायण व वृहत रामायण में भी चित्रकूट का वर्णन मिलता है । रहीम दास जी ने चित्रकूट के बारे में कहा है
चित्रकूट में रमि रहे रहिमन अवध नरेश
जापर विपदा परत है,सोइ आवत यहि देश ।
उत्तरप्रदेश व मध्यप्रदेश मे फैला चित्रकूट का क्षेत्रफल 38.2 किमी है ।यह क्षेत्र रमणीय प्राकृतिक ईश्वरीय अनुपम उपहार है ।
चित्रकूट का शाब्दिक अर्थ
चित्र का अर्थ ***दृश्य
कूट का मतलब ***पर्वत
मनोहारी दृश्यमान पर्वत
शायद इसी मान्यता के कारण यहाँ के प्रमुख तीर्थस्थलों को चारधाम की मान्यता दी गयी है ।यदि कोई श्रद्धालु देश की चार दिशाओं मे स्थापित चार धाम की यात्रा न कर सकें तो एक ही स्थान मे आसानी से कर ले ।
हिन्दू धर्म ग्रन्थों की मान्यतानुसार प्रयागराज को सभी तीर्थों का राजा कहा गया है पर प्रभु राम जी ने जब पिण्डदान तर्पण किया था सभी तीर्थ, देव व
मुनि यहां आये थे ।
राम जी ने अपने चित्रकूट वनवास काल मे पूरे समय मंदाकिनी आदि 4 नदियों के संगम मे ही स्नान किया था इसी से अधिक मान्यता दी गयी है ।
प्रयागराज व चित्रकूट का पुराना धार्मिक सम्बन्ध है । दोनो पहुंचे हुए तपस्वियों की तपस्थली व यज्ञ भूमि रही है । सतयुग मे दोनो स्थान पर स्वयं ब्रह्मा ने यज्ञ किये हैं। प्रयागराज का सबसे पुराना मोहल्ला किसी समय अतरसुइया (अत्रि व अनुसुइया ऋषि) की तपस्थली रहा है ।जो आज उन ऋषि व उनकी पत्नी के अपभ्रंश नाम के रूप मे प्रसिद्ध है ।
अगस्त्य ऋषि का सम्बन्ध भी दोनो स्थानों से है ।भगवान के वनवास के बाद ऋषि-मुनि निर्भय होकर यहीं रहने लगे थे । बाद मे महर्षि अत्रि पत्नी अनुसुइया चित्रकूट मे रहने लगे थे यहीं माँ सीता को पातिव्रत्य धर्म का उपदेश दिया था ।मानस मे प्रसंग है
अनुसुइया के पद गहि सीता मिली बहोरि सुशील विनीता ।
ऋषि पत्नी मन सुख अधिकाई आशिष देइ निकट बैठाई । अरण्यकाण्ड में है
चित्रकूट ब्रह्माण्डीय चेतना व प्रेरणा का जीवंत स्थान है ।इसे मठ,मंदिर का नगर भी कहें तो अतिशयोक्ति न होगी ।चित्रकूट नगरी आज भी अपने मे अनेकानेक रहस्यपूर्ण आश्चर्यों के अनछुए ऐतिहासिक, धार्मिक, आध्यात्मिक तथ्यों को समेटे स्थित है ।कण-कण मे साक्षित भाव से माता सीता ,श्री रामचंद्र जी ,लक्ष्मण जी व्याप्त हैं ।
हों भी क्यों न जैसे हम किसी स्थान पर लगातार वर्षो गोबर कूड़ा-करकट डालते है तो वहां गन्ध बस जाती है जो बहुत दिन तक साफ कराने पर भी नहीं जाती है उसी तरह जिस स्थान में हवन पूजन यज्ञ , तपस्थली रहे होते हैं वहां पर एक शक्तिशाली ऊर्जा काम करती है ।इसका एक उदाहरण शमशान घर भी होते हैं वहां पर ऐसी अनेकानेक आत्मायें भटकती रहती हैं और वायुमंडल मे घूमती अनेको अपनी जैसी चीजो को आकर्षित करती हैं ।घटनाएं सुनने को मिलती रहती है ।
चित्रकूट भी इससे अछूता नहीं है वहां पर श्री रामचंद्र जी के पावन पुण्य चरण पूरे 12 वर्ष तक रहे थे जो स्वयं ही भगवान का अवतार कहे जाते हैं ।
चित्रकूट परम-पावन वैष्णव, शैव व शक्ति तीनो की धार्मिक तपस्थली रही है ये बहुत ही शक्तिशाली ऊर्जान्वित स्थान है । साथ ही बच्चो ,बृद्धों व युवाओ सभी के लिए रोचक पर्यटन स्थल है ।अब ये तो एक समुद्र है पूर्णतया आपके ऊपर निर्भर कि आप मोती खोजते है या सीप या केवल शारीरिक नदी स्नान कर वापस आ जाते हैं ।
जय श्रीराम।