मुख्य देव कामदगिरि *****
कामद गिरि की विशेषता है कि यह हर ओर से देखने मे धनुषाकार ही दिखता है।
यह चित्रकूट का सबसे प्रमुख स्थान है ।इसका कामदगिरि के नाम से संरक्षण ट्रस्ट भी है । यह भगवान के स्वरुप ही माने जाते हैं । यहां चार द्वार हैं उत्तरी द्वार मुख्य द्वार के नाम से प्रसिद्ध है । इसे प्रथम मुखारविंद भी कहते हैं । फिर अपनी बाईं ओर से परिक्रमा शुरू होती है । परिक्रमा स्थल के मार्ग में अनेकों वैष्णव सन्तों के मंदिर मठ व आश्रम बने हैं ।
पूरा परिक्रमा मार्ग टीन शेड और रास्ता पत्थर के चौको से बना है । फिर द्वितीय मुखारविंद ,तृतीय व चतुर्थ है ।इस तरह लगभग सवा 5 किलोमीटर का परिक्रमा मार्ग है जिसे पंचकोसी परिक्रमा भी कहते हैं ।
यह तेजी से चलने में 40 -45 मिनट में लगभग पूरी हो जाती है । परिक्रमा मार्ग में अनेको लकड़ी के खेल खिलौने श्रृंगार की सामग्री,धार्मिक पुस्तकों की, व खाने-पीने की दुकानें हैं । पूरे रास्ते भर बंदर मिलते हैं उनको भी लोग अपने हाथ से भुने चना ,फल, अनाज ,पूरी आदि खिलाते हैं ।
परिक्रमा मार्ग में भरत मिलाप मंदिर, साक्षी गोपाल, कामधेनु , रामवनगमन पथ, लक्ष्मण पहाड़ी स्वर्गाश्रम पीली कोठी ,वरहा के हनुमान जी व सरयू धारा आदि स्थान यहां पर देखने योग्य हैं ,तुलसीदास जी द्वारा लगाया हुआ पीपल का वृक्ष भी वहां पर है । मां पयस्विनी का उद्गम स्थल ब्रह्म कुंड भी है।
शैल सुहावन कानन चारू ।
करि केहरि मृग विहग विहारू। ।
पूरा परिक्रमा पथ इतना आकर्षक है कि पता ही नहीं लगता कब पूरा हो गया । मान्यता है कि प्रभु कामतानाथ जी का विग्रह मानव के रूप में प्रकट हुआ था। जब रामचंद्र जी 12 वर्ष वनवास के बाद जाने लगे कामदगिरि पर्वत ने कहा कि प्रभु आप चले जाएंगे तो यहां जंगल होने के कारण कोई नहीं आएगा तब उन्होंने कहा कि कामदगिरि की परिक्रमा लगाए बिना चित्रकूट यात्रा निष्फल होगी तब से इन की परिक्रमा की जाती है ।
एक चौपाई इनके महात्म्य को दर्शाती है
कामद भे गिरि रामप्रसादा ।
अवलोकत अपहरत विसादा ।।
यहां परिक्रमा दर्शन करने मात्र से सभी मनोरथ पूर्ण व दुखो का अंत हो जाता है ज्ञात अज्ञात पापों से मुक्त हो जाते हैं। लोग दूर-दूर से आते हैं और परिक्रमा लगाते है ।विशेष मन्नत वाले लोग लेटकर भी परिक्रमा लगाते हैं जो लगभग 7-8 घंटे मे पूर्ण हो जाती है ।कहा जाता है सबसे पहले भरत जी ने त्रेता युग मे दण्डवत परिक्रमा लगाई थी।
प्रति मास की अमावस्या ,चैत्र रामनवमी व दीपावली के पंच पर्व पर दीप जलाते हैं। दीवाली पर दीपोत्सव मेला बहुत भव्य व विशाल लगता है ।लोग 5 दिन रुककर मंदाकिनी मे दीपदान करते है धनतेरस से भातृ द्वितीया को संगम मे स्नान कर दीप दान कर ही वापस जाते हैं ।
अलग से 1 हफ्ते को ट्रेन चलाई जाती हैं। जनसमूह दूर-दूर से पैदल चलकर भी आता है लोग मन्नत पूरी होने पर लेट कर भी परिक्रमा लगाते हैं । यह परिक्रमा मार्ग आधा सतना मध्य प्रदेश में पड़ता है और आधा उत्तर प्रदेश में ।मेले मे रामघाट के बाद आवागमन के साधन बंद हो जाते है पैदल जाना होता है ।
कामदगिरि पर्वत मे श्रद्धा, भक्तिभाव के कारण श्रद्धालु उनके ऊपर नहीं चढ़ते है।
परिक्रमा पथ मे कन्दमूल फल जो भगवान श्रीराम मां जानकी व लक्ष्मण जी ने वनवास काल में खाते थे ।
कामदगिरि प्रमुख द्वार