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"मुक्तक "

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"मुक्तक " (मापनी- 1222 1222 1222 1222 कहीं पानी कहीं नाविक कहीं पवन घिर आई है कहीं बरस कर बरखा नभ घिरी काली अ-स्माई है डगर शहर घर डूब गए अनिल डूब घिर बहत मरुत रुक न पाये चित न भाए जिया जहमत रुलाई है॥ महातम मिश्र ‘गौतम’ गोरखपुरी

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