कैसी हो ।हम अच्छे हैं। हां थोड़ा डरे हुए है। क्यों कि चारों तरफ करोना दोबारा से होने लगा है ऐसा कुछ चल रहा है ।अब ये नहीं पता कि ये राजनैतिक प्रोपगेंडा है या वास्तव में है।
चीन में लगातार बढ़ते कोरोना वायरस के मामले के बीच भारत में भी इसकी चर्चा बीते दो-तीन दिनों से ज़ोरों पर है.
चीन में कोरोना संक्रमण अब तक की सबसे तेज़ रफ़्तार से बढ़ रहा है. चीन के स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि आने वाले कुछ महीनों में वहां कोरोना वायरस से 80 करोड़ लोग संक्रमित हो सकते हैं.
चीन के अलावा जापान, दक्षिण कोरिया में भी कोरोना संक्रमण के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं.
बुधवार को इसी सबवेरिएंट के तीन मामले भारत में पाए गए. हालांकि समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक़, गुजरात के स्वास्थ्य विभाग ने बताया है कि जिन दो लोगों में ये सबवेरिएंट पाया गया था, वो अब ठीक हो चुके हैं.
क्या चीन में बढ़ता कोरोना संक्रमण भारत के लिए चिंता का सबब है और क्या भारत इससे निबटने के लिए तैयार है? जो लोग कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज़ के साथ-साथ बूस्टर डोज़ भी ले चुके हैं क्या वो कोरोना वायरस की आने वाली किसी लहर से सुरक्षित रहेंगे?
चीन और दुनिया के कई अन्य देशों में बढ़ते संक्रमण के बीच भारत में लोगों को किस बात का ख़्याल रखना चाहिए?
इस बारे में एम्स, नई दिल्ली के पूर्व डीन प्रोफ़ेसर एनके मेहरा ने बीबीसी से बात की. उनके ही शब्दों में जानिए उन्होंने क्या कहा:-
भारत के लिए इतना ख़तरा नहीं है क्योंकि भारत में बड़ी तादाद में लोगों को ये संक्रमण हो चुका है. चीन में शुरू से ही ज़ीरो कोविड पॉलिसी रही है. उन्होंने लोगों को बाहर ही नहीं आने दिया. हमारे यहां ओमिक्रॉन के समय में ख़ास कर बहुत बड़ी संख्या में लोगों को ये संक्रमण हो गया था.
ये नैचुरल इन्फ़ेक्शन बहुत अच्छा होता है. ये लंबे समय तक इम्युनिटी को बनाए रखता है और अगर आपने वैक्सीन भी ली हो तो नैचुरल इम्युनिटी के साथ वैक्सीन इम्युनिटी जुड़ जाती है.
भारत में बड़ी संख्या में लोगों को नैचुरल इन्फ़ेक्शन हुआ था, उनमें से कई एसिम्टोमैटिक यानी बिना किसी लक्षण वाले मामले थे. वहीं बहुत सारे लोगों ने नैचुरल इन्फ़ेक्शन के साथ वैक्सीन भी ली थी. भारत में अधिकतर लोगों ने दो डोज़ तो ले लिया है.
चीन में उनकी ज़ीरो कोविड पॉलिसी की वजह से ऐसा नहीं हो सका. चीन में एक बड़ी आबादी है जिनको कोरोना संक्रमण हुआ ही नहीं.
चीन ने कोरोना वायरस के दो वैक्सीन दिए थे, साइनोवैक और साइनोफ़ार्म.
लेकिन चीन के सेंटर फ़ॉर डिज़ीज़ कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन के पूर्व निदेशक गाओ फ़ू ने ख़ुद माना था कि चीन की इन वैक्सीन का असर बहुत कम है.
इन दोनों फ़ैक्टर्स ने वहां काम किया. एक तो ज़ीरो कोविड की पॉलिसी और फिर उनकी वैक्सीन का कम असरकारी होना. क्योंकि अगर आपने केवल वैक्सीन ली है तो इसके लेने से आपके शरीर में जो एंटीबॉडी बनती है उसका असर छह महीने के बाद बहुत कम रह जाता है. यानी एंटीबॉडी नहीं रह जाती है.
अगर वैक्सीन कमज़ोर है तो मेमरी सेल या टी-सेल भी नहीं बन पाएंगे. ये इम्यून सिस्टम की याददाश्त की तरह काम करते हैं. टी-सेल वायरस को पहचान कर याद रखने का काम करते हैं ताकि अगली बार वही वायरस अगर हमला करे तो वो शरीर के इम्यून सिस्टम को सचेत कर सकें. ये अगले लेयर को सक्रिय करते हैं और इम्यून सिस्टम को बेहतर बनाते हैं.
अब चलती हूं सखी अलविदा।