"कुंडलिया"खेती हरियाली भली, भली सुसज्जित नार।दोनों से जीवन हरा, भरा सकल संसार।।भरा सकल संसार, वक्त की है बलिहारी।गुण कारी विज्ञान, नारि है सबपर भारी।।कह गौतम कविराय, जगत को वारिस देती।चुल्हा चौकी जाँत, आज ट्रैक्टर की खेती।।-1होकर के स्वछंद उड़े, विहग खुले आकाश।एक साथ का है सफर, सुंदर पथिक प्रकाश।।सुं
"कुंडलिया"कटना अपने आप का, देख हँस रहा वृक्ष।शीतल नीर समीर बिन, हाँफ रहा है रिक्ष।।हाँफ रहा है रिक्ष, अभिक्ष रहा जो वन का।मत काटो अब पेड़, जिलाते जी अपनों का।।कह गौतम कविराय, शुभ नहिं नदी का पटना।जल को जीवन जान, रोक अब वृक्ष का कटना।।महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी