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लैंगिक सशक्तीकरण

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कभी गुस्सा तो कभी प्यार दिखलाती है,कभी डांट तो कभी दुलार बस यही तो है,मां का प्यार सीने मै दर्द कितने हो,कभी बता नहीं पाती सहन कर लेती,हर मुश्किल पर परिवार पर आंच नहीं आने देती,पेट ख़ाली भी हो तो चहरे

भेद भाव आज कल दुनिया का ट्रेंड बन गया है घर बैठे बैठे आज कल फ्रेंड बन रहे है दुनिया मंगल ग्रह पर जाने की कोशिश में है पर यहाँ तो सब नर नारी के भेद भाव में ही उलझे है लैंगिक समानता

माँ की दुआ...बहारों के मौसम में भी दिल में पतझड़ है,किसी ने हमें दुआएं दी तो कहीं सिर्फ तोहमतें मिली,झोली मेरी खाली थी,जिसने जो प्यार से दिया उसको हमने सर झुका के लिया,जिंदगी का सफ़र अब तो बहुत काट लि

सदियों से चली आ रही लैंगिक असमानता एक परम्परा की तरह आज भी हमारे समाज में सहजता से देखने को मिल जाती है।  आज भी सामान्य समाज में जब किसी बच्चे का जन्म होता है तो घर-परिवार वाले उसकी ख़ुशी में जो कार्यक

लैंगिक सशक्तिकरण वर्तमान में बेहद गंभीर समस्या है|

इतिहास में मीराबाई का नाम बड़े आदर और सत्कार से लिया जाता है मीराबाई मध्यकालीन युग की एक कृष्ण भक्त कवियित्री थी जिन्होंने श्री कृष्ण को प्राप्त करने के लिए भक्ति मार्ग चुना और हमेशा भजन तथा कीर्तन के

रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर सन 1524 को महोबा में हुआ था. दुर्गावती के पिता महोबा के राजा थे. रानी दुर्गावती सुन्दर, सुशील, विनम्र, योग्य एवं साहसी लड़की थी. महारानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्त

लिंग सशक्तिकरण है सशक्तिकरण किसी भी लोगों के लिंग । जबकि पारंपरिक रूप से इसके पहलू का उल्लेख महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए किया गया है , यह अवधारणा एक भूमिका के रूप में जैविक सेक्स और लिंग के बीच अंतर प

प्रत्येक बच्चे का अधिकार है कि उसकी क्षमता के विकास का पूरा मौका मिले. लेकिन लैंगिक असमानता की कुरीति की वजह से वह ठीक से फल फूल नहीं पते है साथ हैं भारत में लड़कियों और लड़कों के बीच न  केवल उनके घरो

भारत जहाँ एक ओर आर्थिक-राजनीतिक प्रगति की ओर अग्रसर है वहीं देश में आज भी लैंगिक असमानता की स्थिति गंभीर बनी हुई है। वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक ने वैश्विक स्तर पर भी लैंगिक असमानता को समाप्त करने म

मेरे प्यारे अलबेले मित्रों !बारम्बार नमन आपको 🙏🙏माता-पिता के लिए अनमोल,लड़का हो या लड़की । तन–मन-धन से पालते हैं,भरा पूरा हो या कड़की ॥ सशक्तिकरण से ही होगी,बच्चियों का समग्र विकास । लैं

आज हम एक ऐसे विषय पर बात करेंगे जिस पर लोग बहुत कम बात करना उचित समझते हैं लेकिन फिर भी उनका हमारे समाज का एक हिस्सा होने के कारण उनके विषय पर ध्यान देना अति आवष्यक है। वह कोई और नहीं बल्कि थर्ड जेंडर

आज हम इक्कीसवी सदी में जी रहे है जहां इन्सान चांद व मंगलयान जैसी यात्रा भी कर चुका है उसी इक्कीसवी सदी में आज भी लड़का व लड़की में भेद जारी हैं जहां किसी परिवार में लड़की जन्म ले ले और लड़का न पैदा हो वो

तुम अपनी सोच से कितने हीन हो?व्याकुल रहते हो बहुत जब जन बेटे विहीन हों?वधु चाहिए जैसे इन्द्र की हो परी।भ्रुण में बेटी देखकर तू डरी ।यह ना समझी तू मैं भी किसी की बेटी थी।आज मां तेरी सोचती,तेरे लिए यह द

हमारे देश में पुरुष शासित समाज की परंपरा सदियों से चली आ रही है। वहां पर महिलाओं को हमेशा उनपर निर्भर रहना पड़ता था। महिलाएं को सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर कई अत्याचारों का सामना करना पड़ता हैइ

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