भारत जहाँ एक ओर आर्थिक-राजनीतिक प्रगति की ओर अग्रसर है वहीं देश में आज भी लैंगिक असमानता की स्थिति गंभीर बनी हुई है। वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक ने वैश्विक स्तर पर भी लैंगिक असमानता को समाप्त करने में सैकड़ों वर्ष लगने की संभावना व्यक्त की है। इन्ही परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में अमेरिका की राजनीतिज्ञ हेलिरी क्लिंटन ने कहा कि- “महिलाएँ संसार में सबसे अप्रयुक्त भंडार हैं”।
किसी समाज की प्रगति का मानक केवल वहाँ का परिमाणात्मक विकास नहीं होना चाहिये। समाज के विकास में प्रतिभाग कर रहे सभी व्यक्तियों के मध्य उस विकास का समावेशन भी होना ज़रूरी है। इसी परिदृश्य में नवीन विकासवादियों ने विकास की नवीन परिभाषा में वित्तीय, सामाजिक और राजनीतिक समावेशन को आत्मसात किया है।
वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक के बारे में:
- वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक विश्व आर्थिक मंच द्वारा जारी की जाती है।
- लैंगिक अंतराल/असमानता का तात्पर्य “लैंगिक आधार पर महिलाओं के साथ भेद-भाव से है। परंपरागत रूप से समाज में महिलाओं को कमज़ोर वर्ग के रूप में देखा जाता रहा है जिससे वे समाज में शोषण, अपमान और भेद-भाव से पीड़ित होती हैं।”
- वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक निम्नलिखित चार क्षेत्रों में लैंगिक अंतराल का परीक्षण करता है:
- आर्थिक भागीदारी और अवसर (Economic Participation and Opportunity)
- शैक्षिक अवसर (Educational Attainment)
- स्वास्थ्य एवं उत्तरजीविता (Health and Survival)
- राजनीतिक सशक्तीकरण और भागीदारी (Political Empowerment)
- यह सूचकांक 0 से 1 के मध्य विस्तारित है।
- इसमें 0 का अर्थ पूर्ण लिंग असमानता तथा 1 का अर्थ पूर्ण लैंगिक समानता है।
- पहली बार लैंगिक अंतराल सूचकांक वर्ष 2006 में जारी किया गया था।