यह कविता मेरे आराध्य पिता जी को समर्पित:-देखो दिवाली फिर से कुछ, यादें लाने वाली है।पर तेरी यादों से पापा, लगती खाली-खाली है।।याद आता है पापा मुझ को साथ में दीप जलाना।कैसे भूलूँ पापा मैं वो, फुलझड़ियां साथ छुटाना।।दीपावली में पापा आप, पटाखे खूब लाते थे।सबको देते बांट पिता जी, हम सब खूब दगाते थे।।तेरे