अगले दिन सुबह होतें ही मैनें जल्दी से जल्दी अपने घर के सारे काम खत्म किए और मार्केट से कुछ सामान लाने के बहाने मैं बबलू के पास गई....।।
मैं उसी पीपल के पेड़ के नीचे पहूंची तो मैंने देखा की बबलू वहाँ गिरे हुए पतों पर एक दम सिकुड़ कर सो रहा था...।।
मैं धीरे से उसके पास गई और उसके सिर पर जैसे ही हाथ रखा वो उठ गया....।।।।
वो उठते ही बोला:- आंटी आप...!!!
शिखा:- मैने कहा था ना की मैं आउंगी सुबह में....।।। तुम अभी तक सो रहे हो...!!!
बबलू:- सो नही रहा था आंटी ..... बस कुछ सोच रहा था....।।।
शिखा:- ओहहह तो आप सोचते भी हो.... अच्छा अभी सब छोड़ो..... पहले ये लो....।।।।
(मैंने एक चाकलेट का बाक्स उसकों देते हुए कहा...)
बबलू:- ये क्या हैं आंटी.....।।।
शिखा:- ये चाकलेट हैं..... आपको कहा था ना मैने कल.... और इस दूसरे बाक्स में आपके लिए ढेर सारे पटाखे हैं... अभी आप सिर्फ देखना मत खुद के पटाखे जलाना भी...।।।।
मेरे इतना कहते ही बबलू ने झटसे पतों के नीचे कुछ खोजना चालू कर दिया...।।। थोड़ी ढेर में उसने एक पालीथीन बैग निकाला... और कहा..... आंटी ये देखो मैं रात को सब गली में घुमकर ये सारे पटाखे जमा करके आया हूँ.... ये वाले भी जलाउंगा रात को...।।
मैने पालीथीन लेकर देखा तो उसमें कुछ अधजले पटाखे.... कुछ बिना जले 15-20 पटाखे होंगे....।।।।
लेकिन इन पटाखों को लेकर उसके चेहरे पर एक अलग ही मुस्कान थी.... क्योंकि वो पटाखे उसने मेहनत से जमा किये थे....।।।।।
मैने उसे एक और बैग दिया जिसमें उसके लिए कुछ कपड़े और एक कम्बल भी था... वो सब लेकर बबलू बहुत ही खुश हुआ.... उसने चाकलेट के बाक्स में से एक चाकलेट निकाली और उसको दो तीन बार पलट पलट कर ऐसे देख रहा था जैसे कुछ अजीब हो...।।
मैंने उसे चाकलेट खाने को कहा तब जाकर उसने खाई...।
उसे चाकलेट इतनी पसंद आई... की उसने तीन चार फटाफट खा ली.... और खाते खाते बोला.. :- आंटी ये तो बहुत मस्त हैं.... ऐसी चीज़ मैने आजतक कभी नहीं खाई... आंटी आप भी खाओ ना....।।।
शिखा:-नहीं बेटा ये सब तुम्हारे लिए हैं.... लेकिन सब एक साथ मत खाना..... रोज़ थोड़ी थोड़ी खाना.... मैं कल तुम्हें ओर भी दे जाउंगी...।।। अच्छा अभी मुझे ये बताओ.... तुम्हें यहाँ अकेले डर नहीं लगता.... और तुम यहाँ कैसे रह लेते हो.... तुम्हारा नाम बबलू किसने रखा...??
बबलू चाकलेट खाते हुए:- आंटी मैं चाचा के साथ रहता था... एक दिन चाचा मुझे क ट्रेन से यहाँ लेकर आए.... मुझे यहाँ बिठाकर गए और बोले जब तक मैं ना आउं यही पर रहना.. पर चाचा आए ही नहीं....।। और आंटी मेरा असली नाम तो राम हैं..... पर मुझे चाचा ने बोला कोई भी तुम्हारा नाम पुछे तो बबलू ही बताना...।।। आंटी सच बोलु तो मुझे तो रात को बहुत डर लगता हैं.... इसलिए मैं रात को यहाँ वहाँ घुमता रहता हूँ.... मुझे नींद ही नहीं आती.... डर लगता है...।।
शिखा:- बेटा फिर तुम खाना कहाँ से लाते हो.... क्या तुम भीख मांगते हो..??
बबलू:- नहीं आंटी.. वो सामने चाय की दुकान हैं ना वहाँ गिलास धोता हूँ... पुरा दिन... फिर वो सेठ मुझे खाना खिलाता हैं... और उसके बच्चे के जो फटे कपडे होतें हैं वो मुझे पहनने को देता हैं...। आंटी अभी दिवाली हैं ना इसलिए सेठ बाहर घुमने गया हैं....।।।। जब आएगा मैं फिर से काम करुंगा...।।।।
शिखा:- कब आएगा.... कुछ मालूम हैं....??
बबलू:- एक हफ्ते बाद...।।
शिखा:- तो फिर एक हफ्ता खाना कहाँ से लाओगे....???
बबलू:- मालूम नहीं आंटी.... मैं वही तो सोच रहा था....।।।
शिखा:- अब मत सोचो... मैं देकर जाउंगी तुम्हें रोज यहाँ आकर खाना... ठीक हैं..।।
एक बात बताओ.... तुम्हें कितना समय हो गया हैं यहाँ आए हुए...??
बबलू:- बहुत दिन हो गए.....।।
शिखा:- तो तुम कब तक अपने चाचा का इंतजार करोगे...??
बबलू:- पता नहीं आंटी... पर जाउंगा भी कहाँ...... मैं यही खुश हूँ.... बहुत खुश हूँ... क्या पता कभी चाचा वापस आ जाए...।।
उस बच्चे की बातें सुनकर मैं इतना जो जान चूकी थी कि.... वो शख्स जो भी था... वो अब कभी वापस नहीं आने वाला... वरना वो उसे अपना नाम बदलने को ना कहता... लेकिन बबलू को अभी भी एक उम्मीद थी... । ।।।।
ऐसे हालातों में भी वो भीख मांगने की बजाय... मेहनत कर रहा था... भले ही उसको उसकी मेहनत के मुताबिक आय नहीं मिल रही थी... या यूं कहो की आय तो मिल ही नहीं रही थी... बस दो वक़्त का खाना मिल रहा था... वो भी जैसा तैसा.... पर फिर भी वो खुश था....।।
और संजोग तो देखिए... जिसके नाम में ही राम हो... वो दिवाली के दिन दूसरों के दिए हुए मिले हुए पर आश्रित था..... ना जाने ऐसे और कितने ही राम होंगे....... जो त्यौहारों पर दूसरों को देख कर ही खुश हो जाते होंगे...।।।।
मैं चाहती तो थी कि उस बच्चे को अपने घर हमेशा के लिए लेकर जाउं... पर मैं मजबूर थी क्योंकि मैं खुद परिवार वालों की बंदिशों में बंधी हुई थी.... लेकिन इतना तो कर ही सकती थी की उसके साथ दिवाली मना सकूँ.... उसके साथ दिन के कुछ पल बिता सकूँ...।।
मैने ऐसा ही किया.... ये दिवाली बबलू यानि राम के साथ मनाई.... और यकीन मानिए आज दिल को एक अलग ही खुशी और सूकुन मिला था....।।।। मैं अब हर त्यौहार राम के साथ मनाती थी...।।।
आप सबसे भी बस इतना ही कहूंगी.... अगर आपके आस पास भी कोई ऐसा ही राम हो तो एक बार उनके साथ बैठकर... उनके साथ त्यौहार मना कर तो देखिए.... एक सच्ची खुशी.. एक अलग ही अहसास मिलेगा...।।
उस रात को आज सात वर्ष हो चूकें हैं.... मासूम सा राम... अब बहुत ही समझदार हो चुका हैं...।।। वो पढ़ाई भी करता हैं... उसे बहुत अच्छा लगता हैं पढ़ना.... मैने एक स्कूल में उसका दाखिला भी करवाया... लेकिन उसकी फीस वो खुद देता हैं...।। सच में बहुत ही प्यारा और खुद्दार बच्चा हैं...।। उसका सपना हैं.... बड़े होकर डाक्टर बनने का.... ।।।।।।
मैं तो दिल से बस उसके और उसके जैसे हर बच्चे के लिए दुआ करती हूँ कि उनके सब सपने सच हो... उनकी बांह पकड़ने वाला कोई मिल जाए उन्हें... वो लोग मेहनत करें... गलत रास्ते पर ना जाए....।।
सच कहूं तो जिंदगी की वो पहली दिवाली ऐसी थी जब दिल को खुशी के साथ एक सुकून भी मिला था....।।। सही मायने में ये ही दिवाली हैं....।।।।
एक दिवाली ऐसी भी..... 🤗