मुगल शासक रोज अपने दरबार में जाया करता था । रोज अपने दरबारियों से राज काज के बारे बातचीत करता और किसी भी नए कार्य को कियान्वयन पर विचार विमर्श करता । अकबर के नौ रत्न भी दरबार में ही अकबर के साथ बैठे रहते । एक दिन एक वृद्ध महिला अकबर के दरबार में आई और बोली , जिल्ले इलाही रहम करो , रहम करो तभी अकबर ने पूछा क्या दुख है आपको अम्मा , तभी वृद्ध महिला ने बताया कि उसके एक ही पुत्र है । जबसे उसकी शादी की वह बदल गया । और मुझसे हमेशा लड़ता है । ताने मारता है । और अब तो उसने मुझे घर से बाहर निकाल दिया , मैं वृद्ध महिला अब कहा जाऊंगी मेरा फैसला कीजिए अन्यथा में यही पर अपने प्राण त्याग दूंगी । अकबर को बहुत गुस्सा आया । और उसने सैनिकों को आदेश दिया की तुरंत उसके पुत्र को गिरफ्तार करके लाए । कल उसे में सजा दूंगा । मेरे राज्य में कोई दुखी नहीं होना चाहिए । एक राजा का कर्तव्य है कि जनता के हितों की बात प्रथम है ।
दूसरे दिन दरबार लगा। सैनिक बुढ़िया के पुत्र को पकड़ कर ले आए । प्रथम तो अकबर को गुस्सा आया । परंतु उसने बीरबल से पूछा । बताओ इसके पुत्र को क्या सजा दी जाए । बीरबल ने कहा जहापानह ये नादान माया के मोह में चूर है । इसको अपनी गलती का अहसास करवाना और वापस इसकी मां को ससम्मान घर पहुंचाना हमारा दायित्व और कर्तव्य है । तभी बीरबल बुढ़िया के पुत्र को एक नदी के किनारे ले गया । तब बीरबल ने उसके पुत्र को बताया कि ये बहती नदी जिंदगी की तरह है । जो अनवरत बहती रहती है । परंतु माता पिता इस नदी का उद्गम है । नदी कितनी ही बड़ी हो जाए परंतु उसके उद्गम का अलग ही महत्व है । यदि उद्गम सूख या जाए या बंद कर दिया जाए तो नदी में कुछ नही रहेगा । सूख जाएगी । अर्थात जो हमे इस दुनिया में लाए उन्ही को हम दुख देते है । घर से बाहर निकालते है । इससे हम भी खुश नहीं रह पाएंगे । बुढ़िया के पुत्र को अपनी गलती का अहसास हुआ ।उसने दरबार में जाकर अपनी मां से माफी मांगी फिर जहांपनाह को भी माफी देने की गुजारिश की । पुत्र को अपनी गलती का अहसास हुआ ।ये देखकर अकबर बहुत खुश हुआ और उसने बुढ़िया के पुत्र को माफ किया । बुढ़िया और उसका पुत्र दोनो घर चले गए ।
अकबर बीरबल की बुद्धिमत्ता पर खुश हुआ।
इस कहानी का भावार्थ की हमे माता पिता का हमेशा सम्मान करना चाहिए । उनकी छाया घर में खुशियां , सुख, शांति और समृद्धि देती है ।