एक समय की बात है । जहांपनाह अकबर अपने दरबार में बैठे हुए थे । सारे दरबार और खास सिपेसलाह भी साथ बैठे थे । सभी से आलमगीर अपने राजकार्य का हाल चाल पूछ रहे थे । और विचार विमर्श चल रहा था । सभी अचानक एक दरबारी ने बताया कि जहांपनाह अकबर हमारे राज्य में चित्रकूट नामक स्थान पर एक साधारण सा व्यक्ति जो अपना नाम तुलसी दास बताता है । वो एक ग्रंथ लिखता रहता है । और लोगो को सुनाता रहता है । जिससे वहां पर बहुत भीड़ एकत्रित हो जाती है । अकबर ने सोचा और आदेश दिया की तुलसी दास को दरबार में पेश करो । कुछ दरबारी और सैनिक चित्रकूट के लिए निकल लिए ।
चित्रकूट पहुंचे तो देखा की बहुत भीड़ के बीच में एक व्यक्ति कुछ लिखता जा रहा था ।और लोगो को उसका पाठ सुनाता जा रहा था । एक दरबारी ने तुलसी दास जी को जहांपनाह का संदेश सुनाया । तुलसी दास जी ने कहा कि मेरे राजा तो सिर्फ राम है । जहांपनाह अकबर को कहना की यही आकर मुझसे मिले । जहांपनाह के बारे में ऐसी बात सुन दरबारी क्रोधित हुआ और तुलसी दास को बंदी बनाकर दरबार में पेश होने का आदेश दिया । तुलसी दास जी भी सभी के साथ हो गए और राम नाम सुखदाई जपते जपते आगे चलने लगे । तभी अचानक देखा कि जोर जोर से हवाएं चलने लगी , जिससे पास ही के पेड़ पर मधुमक्खियों के छत्ते लगे हुए थे । जो उड़ने लगे । मधुमक्खियों ने अकबर के सैनिकों और दरबारियों पर हमला कर दिया । सभी जान बचाने के लिए इधर उधर भागने लगे । एक दरबारी भागते भागते अकबर के दरबार में पहुंचा और घटना का सारा आंखों देखा हाल सुनाया । जहांपनाह विस्मय के
भाव लिए अपने स्थान से खड़ा हुआ । और अपने लश्कर के साथ तुलसीदास जी के पास जाने को निकला। वहा पहुंचते ही अकबर ने तुलसी दास जी से अपने दरबारियों और सैनिकों द्वारा किया गए कृत्य की माफी मांगी । और उन्हे ससम्मान दरबार में आकर सभी को रामचरित मानस का पाठ करने की प्रार्थना की । तुलसी दास जी भी मान गए । दरबार में उन्हे विशेष स्थान दिया । वही बैठकर उन्होंने सभी दरबारियों और परिवार के खास सदस्यों को रामचरित मानस का पाठ सुनाया । मुगल बादशाह अकबर श्री राम की मर्यादा , सीता के त्याग , लक्ष्मण के भाई प्रेम और हनुमान की स्वामी भक्ति से इतना प्रभावित हुआ कि उन्होंने अपने राज्य में राम सीता के प्रतीक चिन्ह वाला एक सिक्का चलाया । जो आज भी इतिहास में दर्ज है ।
कहानी का भावार्थ यह है कि करने वाला वो परमात्मा है । हम तो सिर्फ एक माध्यम है । हमे भी रामचरित मानस से सीख लेनी चाहिए ।
पवन कुमार शर्मा
कवि कौटिल्य