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कुल्फी वाला

28 अगस्त 2022

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**कुल्फी वाला**
बात कुछ समय पूर्व की है । राजस्थान एक के छोटे से कस्बे में गर्मियों के दिनों में बाहर किसी पड़ोसी शहर से एक कुल्फी वाला कुल्फी बेचने आता था । जैसे ही उसकी आवाज और उसकी कुल्फी के ठेले पर लगी घंटी की आवाज गली मोहल्ले में पड़ती तो मानो ऐसा लगता था कि जैसे राजस्थान की भरी गर्मी में ठंडी का अहसास हो गया हो और कुछ लोग उसके बाद अपने घरों से निकलकर उसकी कुल्फी खाने को तैयार रहते थे । कुछ पैसे कमाकर वो अपने गांव परिवार के लिए भेज दिया करता था । सिलसिला चलता रहा । कुल्फी वाले की कुल्फी सभी के मन भाती और सभी को खुश कर जाती थी । एक दिन कुल्फी वाला आया तो सभी ने कुल्फी खरीदी । एक छोटी सी गुडिया जिसकी उम्र महज तीन चार साल की थी । कुल्फी वाले का कुर्ता खींच कर बोली मुझे भी कुल्फी चाहिए । कुल्फी वाला उस गुडिया के देखते ही रह गया । और बोला बिटिया रानी आपका नाम क्या है । मेरा नाम पिंकी है । घर में सभी मुझे डोली के नाम से बुलाते है । पिंकी ने पूछा अंकल आपका नाम क्या है ? उसने बताया कि सभी मुझे कुल्फीवाले
 के नाम से जानते है । अच्छा ठीक है । अब कुल्फी खिलाओ । और उसने गुडिया को कुल्फी दे दी । गुडिया के कुछ पैसे दिए तो कुल्फी वाले ने माना कर दिया । बोला डोली की डोली कब जायेगी ससुराल । पिंकी ने कुछ समझा नहीं और बोला जब भी जायेगी आपको बताऊंगी । और कुल्फी लेकर घर के अंदर चली जाती । समय का चक्र चलता रहा । रोज कुल्फी वाला आता और उसे कुल्फी देकर चला जाता । रोज पूछता डोली की डोली कब जायेगी ससुराल 
कुछ समय से कुल्फी वाला आया नही । डोली भी रोज दरवाजे के बाहर देखती रहती । धीरे धीरे समय निकलता गया । कुल्फी वाला आजकल आता नही । उसकी जगह बहुत से कुल्फी वाले मोहल्ले में आने लग गए । पर उनकी कुल्फी में वो स्वाद नहीं था । पर वो कुल्फी वाला कई सालों तक नही आया । 
एक दिन वही कुल्फी वाला अचानक आवाज देते देते और घंटी बजाते पिंकी के घर के पास आया । समय बहुत आगे निकल गया था । कुल्फी वाले के बाल सफेद और चेहरे पर झुर्रियां नजर आने लग गई थी । पिंकी भी अब सयानी हो गई थी । पर जब उसके कान में आवाज पड़ी वो पहचान गई और अपनी मम्मी के साथ नीचे गई । और बोली अंकल मुझे कुल्फी नही दोगे । वो तुरंत ही पहचान गया । और बोला क्यों नही , और उसने कुल्फी निकाली और दे दी  । और बोला डोली की डोली कब जायेगी ससुराल । तभी पिंकी की मां ने पूछा आप कहा थे । इतने दिन तो कुल्फी वाले ने बताया । कि गर्मी के बाद वो दूर कुछ कमाने चला गया । और वही पर एक दुर्घटना में घायल हो गया। जब होश आया तो खुद को अस्पताल में पाया । बाद में अस्पताल से छुट्टी होने के पश्चात मेहनत मजदूरी करने लग गया । पिंकी के बराबर ही मेरी बेटी है । उसकी मुझे शादी करनी है । उसके लिए ही में मेहनत करके पैसे इकठ्ठा कर रहा हू। जब थोड़े पैसे इकट्ठे हुए तो मैने वापस कुल्फी की लारी खरीदी । और कुल्फी बेचने लगा । पिंकी की मां की आंखे नम थी । मम्मी ने ये बात पिंकी के पापा को बताई । पिंकी के पापा जब कुल्फी वाले से मिले तो उन्होंने कुल्फी वाले की बहुत मदद की और कुछ रुपए दिए कि जाओ अपनी बेटी की शादी करना और अपने शहर में ही कोई व्यवसाय शुरू करना । कुल्फी वाले ने ऐसा ही किया । आज कुल्फी वाला शहर का मशहूर कुल्फी वाला है । उसने  बेटी की शादी बड़ी धूम धाम से की । पिंकी के परिवार को भी शादी में बुलाया । 
कुल्फी वाले की कहानी का भावार्थ यह है कि किसी की सही वक्त पर की गई मदद और राह बहुत काम आती है ।
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रचनाएँ
प्रेरक बाल कथाएं
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सुख और दुख एक गांव में एक ब्राह्मण रहता था । रोज मंदिर में भगवान की पूजा कर और आस पास के गांव में भिक्षावृत्ति कर अपना व परिवार जीवन यापन करता था । इतना ही कमा पाता जिससे जीवन का गुजारा हो जाए । उसकी पत्नी हमेशा उसे ताना देती रहती की तुम इतनी भगवान की सेवा करते हो फिर भी हम लोग इतने गरीब है । हम कैसे अपने परिवार का गुजारा कर पाएंगे । तब भी ब्राह्मण हंसकर पत्नी को कहता की तुम चिंता न करो सब ईश्वर देख रहा है । सब अच्छा ही होगा । पंडित जी एक पुत्र था । जो बड़ा समझदार और ईमानदार था । उसका नाम वासु था । बस वासु को अलग अलग ग्रंथ और किताबे पढ़ने का शौक था । वो पिता की आर्थिक स्थिति जानता था । इसीलिए अपने बाहर जाकर पड़ने की बात करने में थोड़ा शर्माता था । तभी एक दिन गांव में कुछ पुजारी और पंडित आए । वो सब काशी विद्यापीठ जा रहे थे । उनकी भेंट वासु से हुई जब तक वो गांव में रुके उनकी वासु ने खूब सेवा की और उनके गुरुजी वासु के काम से बहुत प्रेरित हुए । उन्होंने वासु से कहा की कल अपने पिताजी को लेकर आना । गुरुजी के कहे अनुसार वो पिताजी को लेकर आया । पिताजी से गुरुजी ने वासु को अपने साथ काशी ले जाकर ज्योतिष की पढ़ाई करने की बात कही । पिताजी की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी । उन्होंने सोचा और गुरुजी से कहा की अगर ईश्वर को ऐसी ही मर्जी है तो आप वासु को ले जाइए । फिर क्या था वासु को गुरुजी पढ़ाने के लिए बनारस ले गए । वासु भी वेदों और पुराणों ,ग्रंथो के अध्ययन में लग गया । समय बीतता चला गया । जब वासु अपने गांव वापस आया तो बहुत अच्छा पंडित बन गया था । दूर दूर से लोग अपनी परेशान और कुंडली लेकर आते थे । ज्योतिष के माध्यम से और अपनी बुद्धिमता से सभी की परेशानी का का समाधान करने लगा । तभी ये बात वहा के राजा को पता चली वो भी वासु के पास कुछ समस्या के समाधान के लिए आए । वो वासु के ज्ञान से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह का प्रस्ताव वासु के पिता के सामने रखा । पिता भी मान गए और खुशी खुशी दोनो की शादी हो गई । पंडित जी का परिवार खुशी खुशी रहने लगा । इस कहानी का भावार्थ यह है कि ईश्वर जो करता है । अच्छा करता है ।
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