जमीदार का सबक
एक समय की बात है । किसी गांव में एक जमीदार रहता था । जमीदार के पास बहुत सी जमीन थी । खूब नौकर चाकर काम करते थे । जमीदार बहुत बुद्धिमान और नेक इंसान था । परंतु उसके दो पुत्र थे। दोनो ही विपरीत थे। निकम्मे और नकारा थे। कुछ काम नही करना और बैठे बैठे खाना उनकी आदत बन गई थी । जमीदार भी बहुत परेशान था । कि वह ऐसा क्या करे जिससे उसके दोनो बच्चो का ध्यान काम के प्रति लग जाए और दोनो ही उसके काम को संभाले और आगे बढ़ाए । परंतु जमीदार को ऐसा कोई उपाय सूझ नही रहा था । जमीदार का एक दोस्त पास ही के गांव में रहता था । वो भी बहुत चतुर और बुद्धिमान व्यक्ति था । जमींदार ने उसे बुलाया और कहा मित्र में बहुत परेशान हू । हमेशा इसी सोच में रहता हूं कि मेरे दोनो नालायक बच्चे कुछ काम करने लग जाए तो मेरी सारी जमीन जायदाद की देखभाल कर सके । और ये लोग कुछ काम कर सके । तभी जमीदार के दोस्त ने कहा में कुछ सोचकर आता हूं और आपको बताता हो।
और दोस्त उसके गांव चला गया ।
कुछ दिनों बाद जमीदार को दोस्त आया और बोला की दोस्त मैंने सोच लिया कि यदि आपको अपने पुत्रों को सीखना है तो आप यह उपाय करे । जमीदार को उसने सारी बात बतलाई । जमीदार भी बहुत खुश हुआ । दोस्त वापस अपने घर चला गया ।
जमीदार ने उसके दोनो पुत्रों को बुलाया और कहा कि देखो में दोनो को पचास हजार रुपए देता हूं जाओ पास वाले शहर में घूम कर आओ । इन रुपयों के खर्च करके आओ । परंतु याद रहे न तुम इन पैसों का दान करोगे , न अपने ऊपर खर्च करोगे, ने कोई चल अचल सम्पत्ति खरीदोगे, और दोनो बेटो को पचास हजार रुपए दे दिए ।
दूसरे दिन सुबह दोनो बेटे पैसे खर्च करने के लिए निकल गए । पास वाले शहर में पहुंच गए । दोनो बहुत खुश थे । परन्तु जब रास्ते में चलते चलते उन्होंने सोचा कि पिताजी ने ये कैसी शर्त रखी । अगर हम शहर पहुंच गए तब खायेंगे क्या , पहनेंगे क्या , इसके अलावा कही और पैसे की जरूरत तो रहती नही फिर भी चलते है । शहर पहुंचते ही उनको भूख लगी । पर पिताजी ने कहा है कि अपने ऊपर पैसे खर्च नही करना है । तभी पास में एक लारी वाला खड़ा था । उसने जमीदार के दोनो बेटो को बुलाया और कहा की मेरी ये लारी खाली करवा दो में तुम्हे पांच सौ रुपए दूंगा । तभी दोनो ने ये तो अच्छी बात है कि हमारे खाने का प्रबंध हो जायेगा । और दोनो ने समान से लदी हुई लारी खाली करवा दी । दोनो ने पहली बार ही मेहनत की होगी । दोनो थक गए । परंतु लारी वाले द्वारा दिए गए पांच सौ रुपए से उन्होंने खाना खाया । पूरे दिन वो शहर में घूमे परंतु एक भी रुपया खर्च नही कर पाए । तब उन्हे समझ आई की पिताजी ने हमे क्यू शहर भेजा । वो वापस अपने गांव की और निकल गए । दोनो बहुत थक चुके थे । रास्ते में कही पेड़ की छाव में बैठे और थके होने के कारण उनकी आंख लग गई। सुबह उठने के बाद उन्हें सब समझ आ गया । दूसरे दिन सुबह गांव पहुंचे और सबसे पहले पिताजी को पचास हजार दिए और उन्हें पता चल गया था मेहनत से कमाया हुआ धन ही काम आता है । अब जमीदार के दोनो पुत्र पिता के साथ मिलकर काम करते है ।
पवन कुमार शर्मा कवि कौटिल्य