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जमींदार का सबक

28 अगस्त 2022

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जमीदार का सबक 
एक समय की बात है । किसी गांव में एक जमीदार रहता था । जमीदार के पास बहुत सी जमीन थी । खूब नौकर चाकर काम करते थे । जमीदार बहुत बुद्धिमान और नेक इंसान था । परंतु उसके दो पुत्र थे। दोनो ही विपरीत थे। निकम्मे और नकारा थे। कुछ काम नही करना और बैठे बैठे खाना उनकी आदत बन गई थी । जमीदार भी बहुत परेशान था । कि वह ऐसा क्या करे जिससे उसके दोनो बच्चो का ध्यान काम के प्रति लग जाए और दोनो ही उसके काम को संभाले और आगे बढ़ाए । परंतु जमीदार को ऐसा कोई उपाय सूझ नही रहा था । जमीदार का एक दोस्त पास ही के गांव में रहता था । वो भी बहुत चतुर और बुद्धिमान व्यक्ति था । जमींदार ने उसे बुलाया और कहा मित्र में बहुत परेशान हू । हमेशा इसी सोच में रहता हूं कि मेरे दोनो नालायक बच्चे कुछ काम करने लग जाए तो मेरी सारी जमीन जायदाद की देखभाल कर सके । और ये लोग कुछ काम कर सके । तभी जमीदार के दोस्त ने कहा में कुछ सोचकर आता हूं और आपको बताता हो।
और दोस्त उसके गांव चला गया । 
कुछ दिनों बाद जमीदार को दोस्त आया और बोला की दोस्त मैंने सोच लिया कि यदि आपको अपने पुत्रों को सीखना है तो आप यह उपाय करे । जमीदार को उसने सारी बात बतलाई । जमीदार भी बहुत खुश हुआ । दोस्त वापस अपने घर चला गया । 
जमीदार ने उसके दोनो पुत्रों को बुलाया और कहा कि देखो में दोनो को पचास हजार रुपए देता हूं जाओ पास वाले शहर में घूम कर आओ । इन रुपयों के खर्च करके आओ । परंतु याद रहे न तुम इन पैसों का दान करोगे , न अपने ऊपर खर्च करोगे, ने कोई चल अचल सम्पत्ति खरीदोगे, और दोनो बेटो को पचास हजार रुपए दे दिए । 
दूसरे दिन सुबह दोनो बेटे पैसे खर्च करने के लिए निकल गए । पास वाले शहर में पहुंच गए । दोनो बहुत खुश थे । परन्तु जब रास्ते में चलते चलते उन्होंने सोचा कि पिताजी ने ये कैसी शर्त रखी । अगर हम शहर पहुंच गए तब खायेंगे क्या , पहनेंगे क्या , इसके अलावा कही और पैसे की जरूरत तो रहती नही फिर भी चलते है । शहर पहुंचते ही उनको भूख लगी । पर पिताजी ने कहा है कि अपने ऊपर पैसे खर्च नही करना है । तभी पास में एक लारी वाला खड़ा था । उसने जमीदार के दोनो बेटो को बुलाया और कहा की मेरी ये लारी खाली करवा दो में तुम्हे पांच सौ रुपए दूंगा । तभी दोनो ने ये तो अच्छी बात है कि हमारे खाने का प्रबंध हो जायेगा । और दोनो ने समान से लदी हुई लारी खाली करवा दी । दोनो ने पहली बार ही मेहनत की होगी । दोनो थक गए । परंतु लारी वाले द्वारा दिए गए पांच सौ रुपए से उन्होंने खाना खाया । पूरे दिन वो शहर में घूमे परंतु एक भी रुपया खर्च नही कर पाए । तब उन्हे समझ आई की पिताजी ने हमे क्यू शहर भेजा । वो वापस अपने गांव की और निकल गए । दोनो बहुत थक चुके थे । रास्ते में कही पेड़ की छाव में बैठे और थके होने के कारण उनकी आंख लग गई। सुबह उठने के बाद उन्हें सब समझ आ गया । दूसरे दिन सुबह गांव पहुंचे और सबसे पहले पिताजी को पचास हजार दिए और उन्हें पता चल गया था मेहनत से कमाया हुआ धन ही काम आता है । अब जमीदार के दोनो पुत्र पिता के साथ मिलकर काम करते है । 
पवन कुमार शर्मा कवि कौटिल्य
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प्रेरक बाल कथाएं
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सुख और दुख एक गांव में एक ब्राह्मण रहता था । रोज मंदिर में भगवान की पूजा कर और आस पास के गांव में भिक्षावृत्ति कर अपना व परिवार जीवन यापन करता था । इतना ही कमा पाता जिससे जीवन का गुजारा हो जाए । उसकी पत्नी हमेशा उसे ताना देती रहती की तुम इतनी भगवान की सेवा करते हो फिर भी हम लोग इतने गरीब है । हम कैसे अपने परिवार का गुजारा कर पाएंगे । तब भी ब्राह्मण हंसकर पत्नी को कहता की तुम चिंता न करो सब ईश्वर देख रहा है । सब अच्छा ही होगा । पंडित जी एक पुत्र था । जो बड़ा समझदार और ईमानदार था । उसका नाम वासु था । बस वासु को अलग अलग ग्रंथ और किताबे पढ़ने का शौक था । वो पिता की आर्थिक स्थिति जानता था । इसीलिए अपने बाहर जाकर पड़ने की बात करने में थोड़ा शर्माता था । तभी एक दिन गांव में कुछ पुजारी और पंडित आए । वो सब काशी विद्यापीठ जा रहे थे । उनकी भेंट वासु से हुई जब तक वो गांव में रुके उनकी वासु ने खूब सेवा की और उनके गुरुजी वासु के काम से बहुत प्रेरित हुए । उन्होंने वासु से कहा की कल अपने पिताजी को लेकर आना । गुरुजी के कहे अनुसार वो पिताजी को लेकर आया । पिताजी से गुरुजी ने वासु को अपने साथ काशी ले जाकर ज्योतिष की पढ़ाई करने की बात कही । पिताजी की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी । उन्होंने सोचा और गुरुजी से कहा की अगर ईश्वर को ऐसी ही मर्जी है तो आप वासु को ले जाइए । फिर क्या था वासु को गुरुजी पढ़ाने के लिए बनारस ले गए । वासु भी वेदों और पुराणों ,ग्रंथो के अध्ययन में लग गया । समय बीतता चला गया । जब वासु अपने गांव वापस आया तो बहुत अच्छा पंडित बन गया था । दूर दूर से लोग अपनी परेशान और कुंडली लेकर आते थे । ज्योतिष के माध्यम से और अपनी बुद्धिमता से सभी की परेशानी का का समाधान करने लगा । तभी ये बात वहा के राजा को पता चली वो भी वासु के पास कुछ समस्या के समाधान के लिए आए । वो वासु के ज्ञान से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह का प्रस्ताव वासु के पिता के सामने रखा । पिता भी मान गए और खुशी खुशी दोनो की शादी हो गई । पंडित जी का परिवार खुशी खुशी रहने लगा । इस कहानी का भावार्थ यह है कि ईश्वर जो करता है । अच्छा करता है ।
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