आप सभी ने कपाल का नाम तो सुना ही होगा और देखा भी होगा । जो कपाल धारण करते है वो उसी में खाते पीते है । लेकिन बहुत से लोगो को नही पता खाने पीने के लिए इसका प्रयोग क्यों करते है जिसके पास कपाल है उनको भी अधिकतर नही पता बस देखा देखी नाम के लिए कपाल में खाने पीने लग गये ।इसे मानव की खोपड़ी से बनाया जाता है और इसकी बनाने की प्रक्रिया भी काफी जटिल है । जलती चिता से खोपड़ी को बचाना काफी मुश्किल होता है थोड़ी सी चूक हुई और साडी मेहनत बेकार समझो । इसको बनाने के बारे में ज्यादा नही बताया जा सकता ये सब गुप्त है । इसका प्रयोग के इसलिए करते है क्योंकि मानव की जो खोपड़ी है उसके उसके बीच में 1 बिलकुल छोटा सा छिद्र होता है जिसमे से निरन्तर अमृत टपकता रहता है ये अमृत सभी मानव के अंदर होता है लेकिन योगी इसका प्रयोग कर लेते है खेचरी मुद्रा आदि को सिद्ध करके आम मानव इसका प्रयोग नही क्र पाता । इसलिए ये धारणा है कि जो भी कपाल के अंदर रखकर खाते पीते है वो सब अमृत के समान हो जाता है इसलिए कपाल का प्रयोग करते है । इसी तरह खप्पर भी होता है उसमें भी खाते पीते है लेकिन इसको वो सिद्ध करने के लिए इसमें खाते है ये 12 साल में सिद्ध होता है । सिद्ध होने के बाद खप्पर से जो भी खाने पीने की चीज मांगो वो आ जाती है । इस सिद्धि में भी बड़ी सावधानी रखनी पड़ती है अगर 1 बार भी किसी दूसरे पात्र का प्रयोग कर लिया तो सारी मेहनत बेकार हो जाती है । कपाल और खप्पर अलग अलग प्रकार के होते है और सबकी अपनी 1 विशेषता होती है ।