नई दिल्लीः सपा की मुंडेर पर 'अमर' बेल एक बार फिर जैसे ही हरी होने लगी कि मुलायम परिवार में कलह मचनी शुरू हो गई। भाई-भाई और बाप-बेटे के बीच मनभेद गहराने लगे। निजी फायदे के लिए उन्होंने परिवार में एक दूसरे को भिड़ाने का माहौल बनाया। अमर ने शिवपाल के कंधे पर बंदूक रखकर हर उस पर निशाना साधा, जो उनके निजी हित की राह में बाधा बनता दिखा। शिवपाल को भड़काने में अमर इसलिए सफल हुए, क्योंकि शिवपाल खुद पार्टी में अपने को उपेक्षित पा रहे थे। चुनाव से पूर्व इस कलह से जनता में भद्द पिटने लगी तो हाल में लखनऊ में जब मुलायम, अखिलेश, प्रो. रामगोपाल और शिवपाल ने एक साथ मैराथन बैठक की तो चर्चा ही चर्चा में कलह के पीछे अमर सिंह का हाथ होने की बात सामने आई। जिस पर मुलायम ने सबको चुनाव से पहले एक दूसरे पर न तो खुलकर न ही इशारे में किसी तरह से निशाना साधने की नसीहत दी है। पार्टी में कहा जा रहा कि कलई खुलने पर अब कार्रवाई की डर से ही अमर सिंह इस्तीफा देने की बात कहने लगे हैं। पार्टी सूत्रों के मुताबिक मुलायम को भी लग रहा कि अमर को पार्टी में लाना फायदेमंद कम नुकसानदायक ज्यादा रहा।
अमर सिंह की नाराजगी की तीन मुख्य वजह
1-राज्यसभा में बोलने का मौका न मिलना
सपा से निष्कासन के बाद अमर सिंह मुख्यधारा की राजनीति से लंबे समय से कटे रहे। बीते दिनों जब गिले-शिकवे दूर हुए तो पुरानी दोस्ती को तवज्जो देते हुए मुलायम सिंह ने पहले उनकी पार्टी में वापसी कराई फिर राज्यसभा भेजा। अमर को लगा कि वे पहले की तरह राज्यसभा में पार्टी का चेहरा बनकर आवाज उठाएंगे। इससे सियासत में फिर से उनकी हनक कायम हो सकेगी। मगर, प्रो. रामगोपाल ने ऐसी रणनीति बना दी कि जीएसटी हो या अन्य मुद्दे। वे खुद या फिर नरेश अग्रवाल या सुरेंद्र नागर ही सदन में बहस करते रहे। जिससे अमर सिंह की भूमिका श्रोता की रह गई। इससे अमर सिंह को लगा कि अब पहले जैसी बात नहीं रही। अमर रामगोपाल से और चिढ़ गए। एक तो रामगोपाल ने पार्टी में उनकी वापसी का विरोध किया ऊपर से राज्यसभा में हैसियत घटा दी।
2-जयाप्रदा को चेयरमैन न बनाना
अमर सिंह सपा में आए तो साथ फिर जयाप्रदा को लाए। जयाप्रदा को अमर ने फिल्म विकास परिषद का चेयरमैन बनवाने का वादा किया, मगर अखिलेश यादव ने जयाप्रदा की जगह प्रसिद्ध गीतकार गोपालदास नीरज को चेयरमैन बनाने की तैयारी कर दी। इससे अमर और चिढ़ गए।
3-अखिलेश का न फोन पर बात करना न मिलना
अमर सिंह ने दो दिन पहले एक टेलीविजन चैनल के इंटरव्यू में खुद स्वीकार किया कि उन्हें अखिलेश यादव बहुत छोटा आदमी समझने लगे हैं। जब भी वे फोन करते हैं तो उपलब्ध नहीं होते हैं। उनका सचिव कहता है कि नाम लिस्ट में डाल दिया है,मगर, कभी जवाब नहीं आता।
अमर का दांव शुरू, पहले शिवपाल से रामगोपाल पर कराया जुबानी हमला
शिवपाल और रामगोपाल में पटरी नहीं खाती। इसे देखते हुए रामगोपाल से खुन्नस निपटाने के लिए अमर सिंह ने शिवपाल को भड़काया। बताया गया कि रामगोपाल के चेले लोग इटावा के आसपास जमीनों पर कब्जे कर रहे हैं। वहीं इटावा में रामगोपाल के शिष्य नगरपालिका अध्यक्ष कुलदीप गुप्ता तमाम घोटाले में शामिल हैं। शिवपाल भी मर्जी के विपरीत नपा अध्यक्ष बने कुलदीप को निपटाना चाहते थे। उन्होंने कार्रवाई का अफसरों को निर्देश दिया, मगर कुछ नहीं हुआ। यही वजह रही कि बीते
छह अगस्त को चौधरीचरण कालेज में पहली बार शिवपाल ने सार्वजनिक दुखड़ा रोया। कहा कि सरकार में अफसर उनकी सुनते नहीं। पार्टी के लोग ही जमीनों पर कब्जे करवाकर जनता पर अत्याचार करा रहे हैं। शिवपाल का यह निशाना सीधे-सीधे रामगोपाल यादव पर रहा। फिर 14 अगस्त को भी मैनपुरी की सभा में शिवपाल ने जमीनों पर अवैध कब्जे न रुकने पर इस्तीफे की चेतावनी दे दी। मामला बढ़ने पर 15 अगस्त को मुलायम सिंह यादव को हस्तक्षेप करना पड़ा। उन्होंने लखनऊ पार्टी मुख्यालय पर आयोजित समारोह में शिवपाल के खिलाफ पार्टी में साजिश की बात कही। खैर इस बीच शिवपाल के कहने पर मुलायम ने इटावा नगर पालिका अध्यक्ष कुलदीप गुप्ता संटू के खिलाफ जांच व कार्रवाई के लिए नगर विकास मंत्री आजम खान को पत्र जारी किया। जिसके बाद अब रामगोपाल के करीबी नगरपालिका अध्यक्ष के खिलाफ जांच शुरू हो गई।
अब अमर ने अखिलेश से भी लड़ा दिया
चूंकि बतौर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव चाचा सरीखे अमर सिंह को अब भाव देना बंद कर दिए। न जयाप्रदा को फिल्म विकास परिषद का चेयरमैन बनाने में रुचि ले रहे, न ही उनकी अन्य सिफारिशों को गंभीरता से लेने में मदद। दूसरी तरफ कुछ यही हाल शिवपाल का भी रहा। उनकी भी भतीजे के राज में कुछ कम सुनवाई हुई। यह देख अमर सिंह ने शिवपाल की दुखती रग पर हाथ रखा और अखिलेश को दबाव में लाने के लिए उनके खिलाफ भी मोर्चा खोलने का सुझाव दिया। जहां शिवपाल ने अपनी बात पार्टी के मंच पर कही तो दो दिन पहले अमर सिंह ने एक टीवी चैनल के इंटरव्यू के जरिए अपनी पूरी भड़ास अखिलेश पर निकाली। पार्टी सूत्र बताते हैं कि जिस ढंग से कूटनीतिक रूप से अमर सिंह अखिलेश पर निशाना साधे, उससे साफ पता चला कि इस खेल में उनकी भूमिका किस कदर है।