इंडिया संवाद ब्यूरो
पटना: दुनिया चाहे 21वीं सदी में पहुंच चुका हो, लेकिन अंधविश्वास ने आज भी हमारे गांवों को जकड़ा हुआ है। इसका ताजा उदाहरण बिहार के गोपालगंज के सरकारी स्कूल में देखने को मिला। हालांकि, जिला न्यायाधीश राहुल कुमार ने एक ऐसा तरीका निकाला जिससे उन्होंने न केवल एक जरूरतमंद महिला की मदद की बल्कि गांववालों का अंधविश्वास दूर करने में ही अहम किरदार निभाया।
जिला न्यायाधीश बने हीरो
गोपालगंज के जिला न्यायाधीश राहुल कुमार गांववालों के बीच तब हीरो बन गए, जब बिल्कुल अलग अंदाज में आगे बढ़कर उन्होंने एक विधवा की मदद की। दरअसल, बिहार के गोपालगंज स्थित एक सरकारी स्कूल में एक महिला (सुनीता कुंवर) को मिड-डे मील बनाने से सिर्फ इसलिए रोका जा रहा था क्योंकि वह विधवा है। स्थानीय लोगों का मानना है कि विधवा द्वारा पकाया गया भोजन खाना उनके लिए बदनसीबी लेकर आएगा।
न्याय के लिए भटक रही थी
अंग्रेजी अखबार टेलीग्राफ के मुताबिक, सुनीता ने उन्हें बताया कि उसका दोष सिर्फ यह है कि वह विधवा है। सुनीता ने कहा, "मुझे अपने दो बच्चों की परवरिश करनी है। पिछले 21 महीनों से न्याय के लिए एक से दूसरे दरवाजे के चक्कर काट रही हूं। अकेले ही अपनी लड़ाई रही हूं।"
सुनीता ने नहीं हारी हिम्मत
गौरतलब है कि सुनीता की परेशानियों का यह सिलसिला इस साल की शुरुआत यानी जनवरी माह में ही शुरू हो गया था, तब पति की मृत्यु के बाद इसी गांव के लोगों ने उसे यह नौकरी दिलाने में मदद की थी। फिर उसके चरित्र को लेकर बातें की जाने लगी। उसे बुरा-भला कहा जाने लगा हालांकि इन सबके बावजूद उसने हिम्मत नहीं हारी।
खाया सुनीता के हाथ का पका खाना
आखिरकार सुनीता गोपालगंज के जिला न्यायाधीश राहुल कुमार से मिलीं, जिन्होंने उसी स्कूल में उसकी बहाली का आश्वासन दिया और मदद के लिए पहुंचे। उन्होंने सुनीता की मदद करने का एक अनूठा तरीका निकाला। गांववालों के अंधविश्वास को दूर करने के लिए उन्होंने सुनीता को खाना पकाने के लिए कहा और पूरे गांव के सामने उसके हाथ का पका खाना खाया।
गांववालों ने वापस लिया धरना
कुमार ने कहा, "जिला शैक्षणिक अफसर के साथ मैं स्कूल पहुंचा और छात्रों के लिए महिला द्वारा पकाया भोजन खाया। ऐसा करने के बाद गांववाले, जो इसके खिलाफ धरने पर बैठे थे, ने धरना वापस ले लिया।"
अंधविश्वास दूर कर मिसाल बने
कहना होगा कि जिला न्यायाधीश ने जो किया, उसने न केवल सुनीता की मदद की बल्कि अंधविश्वास दूर करने के क्रम में आगे बढ़कर एक मिसाल भी पेश किया है। सुनीता को यकीन है कि अब फिर से उसे यह नौकरी मिल जाएगी।