लखनऊ ब्यूरो-: जगमोहन यादव, अनिरुद्ध सिंह यादव और अनिल यादव। अखिलेश सरकार में उनकी यादव बिरादरी के चहेते अधिकारियों की तूती किस कदर बोलती रही, इसकी बानगी के तौर पर पेश किये जा रहे हैं ये सिर्फ तीन नाम। इनमें से जगमोहन यादव को प्रदेश का पुलिस महानिदेशक बनाकर उनके हाथ में कानून और व्यवस्था की बागडोर थमा दी गयी थी। शेष दोनों यादवों को पारी पारी उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग का अध्यक्ष बनाया गया है। इनके जिम्मे सुशिक्षित और योग्य युवकों को नौकरी देना रहा है। लेकिन, इनकी चाल बडी बेहूदी और बदरंग रही है कि आयोग में यादव बिरादरी के अभ्यर्थियों का ही रंग चोखा रहा। शेष दूसरे समुदायों के योग्य युवाओं को हाशिये पर ही डाला जाता रहा है। कल्पना कीजिये कि प्रदेश की युवा पीढी पर किया गया यह अत्याचार कितना जघन्य और निर्मम रहा है।
हिस्ट्रीशीटर को उ.प्र.लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष बनाया गया
इस पद पर पहले अनिल यादव को आसीन किया गया। इन पर हिस्ट्रीशीटर होने को आरोप है। लेकिन, ‘जाको पिया चाहे वही सुहागन‘ की कहावत को चरितार्थ करते हुए अखिलेश यादव ने ऐसे व्यक्ति कों ही इतने महत्वपूर्ण पद पर आसीन किया था। इन पर लगे इस अत्यंत गंभीर आरोप को लेकर जब हाइकोर्ट ने अखिलेश सरकार से संबंधित पत्रावली मांगी, तो आरोप है कि ‘ऊपर‘ के दबाव पर आगरा पुलिस से इनकी हिस्ट्रशीट ही फाड दी और इनसे जुडे अन्य आपराधिक मामलों के रिकार्ड भी नष्ट कर दिये। लेकिन, अंततः इलाहाबाद हाइकोर्ट के आगे अखिलेश यादव की नहीं चल सकी। लिहाजा, अक्टूबर, 2015 को कोर्ट के आदेश पर उन्हें अपने इस बेहद चहेते रहे अधिकारी को बर्खास्त करना ही पड गया।
अखिलेश पर सवार था बिरादरी प्रेम का जिन्न
लगता है कि इनकी बर्खास्तगी के बाद भी पूर्व मुख्य मंत्री अखिलेश यादव की आंखें नहीं खुली। उनके सिर पर सवार बिरादरी का भूत नहीं उतर सका। इसी के चलते उन्होंने इनके बाद अनिरुद्ध सिंह यादव को ही उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग अध्यक्ष बनाया। इनका भी वही हाल। इनके जमाने में भी एक जातिविशेष के अभ्यर्थी ही दनादन नौकरी पाते रहे और शेष दूसरे समुदायों के योग्य अभ्यथियों को किनारे किया जाता रहा है। भाजपा विधायक देवेंद्र प्रताप सिंह की शिकायत पर मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ के आदेश पर आयोग द्वारी की जाने वाली सारी भर्तियों पर तत्काल रोक लगा दी गयी है। इसी तरह रायबरेली की एक पीडित प्रतियोगी छात्रा की गुहार से प्रधान मंत्री मोदी तक के द्रवित हो जाने पर उनके हनुमान योगी भला कैसे शांत होकर बैठ सकते थे। लिहाजा, उनके तलब किये जाने पर कल अनिरुद्ध सिंह यादव ने लखनऊ आकर मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ से लंबी वार्ता की थी। लेकिन, इस बैठक के बाद जाते समय उनके चेहरे की मुस्कुराहट को देख कर कुछ ऐसा लगा कि जैसे उन्हें अभी भी अपने पूरानें आका पर ही बहुत भरोसा है।
डी.जी.पी. रहे जगमोहन यादव की कथित चंगेजी दास्तान?
अब चर्चा प्रदेश के डी.जी.पी बना दिये गये जगमोहन यादव के एक ताजे कारनामे की। वह भी उस समय जब प्रदेश में अखिलेश यादव की नहीं, योगी आदित्य नाथ जैसी शख्सियत की सरकार है। सिर्फ इतने से ही इस बात का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि यादवी सरकार में इनका हौसला कितना बुलंद रहा होगा और इन्होंने कौन कौन से गुल नहीं खिलाये होंगे?
कल ही सीधे शासन के हस्तक्षेप से शहीद पथ पर अवधबिहार योजना में भूमि पर कब्जे के विवाद को लेकर इनके खिलाफ आवास विकास परिषद के अवर अभियंता सुरेंद्र कुमार विश्वकर्मा की तहरीर पर लखनऊ के थाना गोसाईगंज में एक मुकदमा दर्ज किया गया है। इस बाबत थाना गोसाईगंज के प्रभारी संजीव कांत मिश्र का कहना है कि इस मामले में जहां सुनीता रावत सहित अन्य लोगों के खिलाफ विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज किया है वही पूर्व पुलिस महानिदेशक जगमोहन यादव के खिलाफ षड्यंत्र का मामला दर्ज किया गया है।
अभियंताओं पर प्राणघातक हमले
बताया जाता है कि अर्सा पहले आवास विकास परिषद ने अवध बिहार योजना के तहत ग्राम हरिपुर की जमीन का अधिग्रहण किया था। इस भूमि का विधिसम्मत तरीके से मुआवजा भी दे दिया गया था। इसी रविवार को आधा दर्जन से अधिक लक्जरी कारों से आये लोगा ने इसी भूमि के गाटा संख्या 636 तथा 637 पर कब्जा करने का प्रयास किया। इसकी सूचना मिलते ही आवास विकास परिषद के कई अधिकारियों ने तत्काल मौके पर पहुंच कर इन लोगों को रोकने का प्रयास किया। इस पर आरोपियों ने उन पर हमला कर दिया, जिसमें कई अभियंताओं को चोटें आई हैं।
बताया जाता है कि इस पर पीडित अभियंताओं ने जब मोबाइल से फोन कर मदद मांगने की कोशिश की तो उनके मोबाइल और गाडियां भी छीन ली गयीं। गोंसाईगंज पुलिस जगमोहन यादव के दबाव में इस कदर थी कि अभियंताओं पर किये जा रहे पथराव के दौरान वह मौके से ही भाग खडी हुई। आरोप है कि उस समय जगमोहन यादव मौके पर ही मौजूद थे। हमलावर इन्हीं का नाम लेकर अधिकारियों को धमका रहे थे। शायद यही वजह है कि पीडित अधिकारियों ने जब अवध विहार पुलिस चैकी पर जाकर इस मामले की शिकायत की, तो उनकी नहीं सुनी गयी। इस पर अभियंताओं ने लिखित तहरीर भी दी थी, लेकिन प्राथमिकी नहीं दर्ज की गयी। इसके बाद अभियंताओं ने लखनऊ के जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से मिलकर इस मामले की शिकायत की तो थाना गोंसाईगंज में मुकदमा दर्ज किया जा सका।
यह कहना है जगमोहन यादव का अपनी सफाई में
इस संबंध में पूर्व डी.जी.पी. जगमोहन यादव का कहना है कि इस घटना के दिन वह जौनपुर में थे। इनका यह भी कहना है कि दरअसल, वर्ष 2009 में गायत्री प्रजापति ने वहां गुड्डा देवी के नाम से चार बीघा जमीन खरीदी थी। उसी जमीन को दिखाकर गायत्री ने 15 बीघा जमीन बेच दी है। वहां पर जो कुछ हुआ है, उसके पीछे गायत्री प्रजापति का हाथ है। मेरे मित्र ने वहां जमीन खरीदी हैं, जिनकी मैं मदद कर रहा हूँ। मैं मौके पर नहीं था और न ही मेरी वहां कोई जमीन ही है। इसके विपरीत लोगों का कहना है कि यह बवाल पिछले कई दिनों से चल रहा था। लेकिन, पूर्व डी.जी.पी. जगमोहन यादव के दबाव में पुलिस मुकदमा नहीं लिख रही थी। अंततः, रविवार को हुए बवाल के बाद शासन ने इस मामले में सख्त कार्यवाही का आदेश दिया था।
इस संबंध में ‘इंडिया संवाद‘ को पता चला है कि पूर्व डी.जी.पी. जगमोहन यादव का गोसाईगंज पुलिस पर इस हद तक दबाव रहा है कि हमलावरों के द्वारा किये जा रहे पथराव के समय वह पीडितों को बचाने की बजाय, उनके भयवंश भाग खडी हुई थी। ऐसे में सूचना पाते ही परिषद के दर्जनों कर्मचारियों ने मौके पर पहुंच कर उनकी प्राणरक्षा की।
योगी सरकार में भी पहले से ही खौफजदा हैं आला अधिकारी
पूर्व डी.जी.पी. जगमोहन यादव पर आरोप है कि वह पिछले पांच दिनों से विवादित जमीन पर कब्जा कराने का प्रयास कर रहे थे। इन्हीं के दबाव में आवास विकास परिषद के अभियंताओं की सारी मेहनत बेकार साबित हो रही थी। इनके दबदबे के कारण पुलिस घुटनाटेक बनी हुई थी। अंततः 29 मार्च को आवास आयुक्त रुद्र प्रताप सिंह ने शासन के शीर्ष अधिकारियों से शिकायत की, तो सिर्फ कुछ ही देर तक ही काम बंद रहा। लेकिन, इसके दूसरे ही दिन फिर काम शुरू कर दिया गया और काफी ज्यादा बाउंड्री बना दी गयी।
इस जमीन की कीमत 30 करोड रु से भी अधिक बतायी जाती है। आवास विकास की अवध विहार योजना के पाकेट 2 में खुद जगमोहन यादव ही कब्जा करा रहे थे। यह आरोप आवास विकास परिषद के अधीक्षण अभियंता सुनील चौधरी का है। इनका कहना है कि 29 मार्च को खूद जगमोहन यादव मौके पर खडे होकर विवादित जमीन पर निर्माण करवा रहे थे। सूचना मिलने पर पुलिस मौके पर आई जरूर, लेकिन वहां उन्हें खडा देखकर चुपचाप वापस लौट गयी। इसके बाद आवास विकास के अभियंता पुलिस से लगातार गुहार लगाते ही रह गये, लेकिन, वह फिर लौटकर नहीं ही आई।
पूर्व डी.जी.पी. जगमोहन यादव पर लगाये जा रहे इस आरोप के संबंध में पीडित फेंकूराम की शिकायत पर जिलाधिकारी ने परगनाधिकारी सरोजनीनगर को इस मामले की जांच सौंपी थी। मौके पर जाने से परगनाधिकारी को पता चला था कि बिन्नी इंफ्रास्ट्रक्चर ने यहा कब्जे की कोशिश की थी। इस पर उन्होंने इस फर्म के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के लिये गोंसाईगंज थाना में तहरीर दी थी। लखनऊ विकास प्राधिकरण ने इस जमीन को अधिगृहीत कर रखा है।