नई दिल्ली: अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी CIA की एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि स्वीडन की सरकार ने भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को बचाने के लिए बोफोर्स दलाली मामले की जांच रोक दी थी। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि जब भारत सरकार यह सौदा कर रही थी, उस समय उसे बोफोर्स के दागदार इतिहास की जानकारी थी। लेकिन भारत सरकार ने इसे नजरअंदाज किया। इन दस्तावेजों के अनुसार, भारत में तो बोफोर्स घोटाला 1987 में उजागर हुआ था, जबकि बोफोर्स के खिलाफ दलाली की जांच स्वीडन में 1984 से ही चल रही थी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वीडन राजीव गांधी को बचाना चाहता था। दलाली के कलंक से गांधी और नोबल इंडस्ट्रीज दोनों बचना चाहते थे। नोबल इंडस्ट्रीज ने 1985 में बोफोर्स का अधिग्रहण कर लिया था।
राजीव के दौरे के बाद रोकी जांच
सीआइए ने अपनी पुरानी रिपोर्ट में बताया, "स्वीडन ने राजीव गांधी के स्टॉकहोम दौरे के तुरंत बाद जनवरी 1988 में बोफोर्स दलाली की जांच को स्थगित कर दिया था।" स्वीडन का कहना था कि लाख कोशिशों के बावजूद स्विस बैंक से उसे बैंक खातों की जानकारी नहीं मिली। इस कारण वह दलाली दिए जाने के साक्ष्य जुटा पाने में नाकाम रहा। 1988 की इस रिपोर्ट को पिछले साल दिसंबर में लाखों अन्य गोपनीय दस्तावेजों के साथ सार्वजनिक किया गया था।
चिंतित थी स्वीडन सरकार
रिपोर्ट में स्वीडन सरकार और वहां के हथियार निर्माताओं की एक चिंता का जिक्र किया गया। इन दोनों को लगता था कि दुनिया के अशांत देशों में हथियार निर्यात करने की पाबंदी से उन्हें नुकसान हो सकता है। इसी डर की वजह से सरकार ने हथियार निर्माताओं के विवादित लेन-देन से मुंह फेर रखा था। लेकिन 1984 में बोफोर्स कांड ने सरकार को जांच शुरू करने पर मजबूर कर दिया।
बोफोर्स को बलि का बकरा बनाया
इस समझौते में हथियार निर्यात करने का सारा दोष बोफोर्स के सिर मढ़ा जाना था। इसके अलावा दो अन्य के खिलाफ केस चलाया जाना था। बोफोर्स मामले में स्वीडन की सरकार ने दो लोगों को दोषी ठहराया। लंडबोर्ग और स्कीमिट्ज पर बोफोर्स घोटाले में स्वीडन के कानून के उल्लंघन का आरोप लगा। ये वही दो हथियार सौदागर हैं, जिन पर दोष मढ़ने का सौदा नोबल इंडस्ट्रीज के मुखिया कार्लबर्ग ने स्वीडन सरकार से किया था।
संजय गांधी को आगे बढ़ाने को गंभीरता से नहीं लेता था रूस
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा छोटे बेटे संजय गांधी को अपने उत्तराधिकारी के तौर पर आगे करने को तत्कालीन सोवियत संघ गंभीरता से नहीं लेता था। सीआइए के मुताबिक, जब संजय के निधन के बाद राजीव गांधी उनके उत्तराधिकारी बने, तो सोवियत संघ ने फिर से वह गलती नहीं की। राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद सीआइए को लगा कि सोवियत संघ अंदरूनी राजनीति में उनको मजबूत करने के लिए काम करेगा।