नई दिल्ली : यूपीए सरकार के दौर बनी सीबीआई की छवि को सुधारने के लिए मोदी सरकार ने शुरुआत से ही प्रयास करने की कोशिश की। इसके संकेत तभी दे दिए गए थे जब सीबीआई के डायरेक्टर अनिल सिन्हा को नियुक्त करने से पहले उन्होंने चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया एच एल दत्तू और विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे से मशविरा किया। 2 दिसंबर को सीबीआई के मौजूदा डायरेक्टर अनिल सिन्हा रिटायर हो रहे हैं। ख़बरों की माने तो 26 नवम्बर को कॉलेजियम की मीटिंग में नए सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति पर फैसला हो जायेगा। इसमें प्रधानमंत्री के अलावा चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया, नेता विपक्ष शामिल होंगे। सूत्रों की माने तो केंद्र 1979 से लेकर 1982 के आईपीएस अफसरों की एक सूची भी इसके लिए तैयार कर चुकी है, जिसमे से सीबीआई का नया डायरेक्टर चुना जायेगा।
सीबीआई डायरेक्टर अनिल सिन्हा को मोदी सरकार ने जिस तरह की उम्मीद के साथ चुना था उस पर वह खरे नही उतरे क्योंकि अभी तक मोदी सरकार के दौर में सीबीआई कोई ऐसी कार्रवाई करती नही दिखी जिससे सरकार की भी प्रतिष्ठा बढे। जानकारों बताते हैं कि पीएम मोदी सीबीआई के कामकाज से संतुष्ट नही हैं। उन्हें सीबीआई से उम्मीद थी वह भ्रष्टाचार के खिलाफ देशभर में एक मुहिम छेड़े जिससे लगे कि उनके दौर में देश की सबसे बड़ी जाँच एजेंसी काम के रही है।
भ्रष्टाचार के कई मामलों में सीबीआई के हाथ खाली ही रहे। एयर इंडिया घोटाला, अगुस्ता वेस्टलैंड और डेफेंस डील जैसे बड़े मामलों को लेकर सीबीआई ने यह कहकर अपनी मजबूरी जाहिर की कि इन मामलों के तार विदेशों से जुड़े हैं और सीबीआई उसके चलते कुछ कर नही पा रही है। अनिल सिन्हा के डायरेक्टर रहते देश की सबसे बड़ी जाच एजेंसी सीबीआई ने ज्यादातर ध्यान आपराधिक मामलों पर ही रखा। सीबीआई द्वारा दिल्ली के सीएम अरविन्द केजरीवाल के दफ्तर में उनके प्रधान सचिव राजेन्द्र कुमार पर की गई कार्रवाई से तो मोदी सरकार को राजनीति क नुकसान उठाना पड़ा। दिल्ली के सीएम अरविन्द केजरीवाल के प्रधान सचिव पर छापेमारी के बाद मेसेज गया कि मोदी सरकार ने केजरीवाल को सीबीआई के जरिये निशाना बनाया है।
सूत्रों की माने तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगर सीबीआई के डायरेक्टर अनिल सिन्हा को हटाने के मामले में चलती तो वह उन्हें ठीक उसी तरह हटा देते जैसे उन्होंने गृह सचिव एलसी गोयल को हटा दिया था। एलसी गोयल के कामलकाज के तरीके से पीएम मोदी और गृह मंत्री राजनाथ सिंह खुश नही थे लेकिन सीबीआई डायरेक्टर को हटाना पीएम के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
सीबीआई को एक स्वतंत्र संस्था के रूप में देखा जाता है और इसके डायरेक्टर का कार्यकाल दो साल का सुनिश्चित है। अब जब सीबीआई के डायरेक्टर अनिल सिन्हा का कार्यकाल समाप्ति की तारिख नजदीक आ रही है तो ऐसे में पीएम मोदी एक ऐसे सीबीआई डायरेक्टर की तलाश में जरूर होंगे जो उनके लिए प्रभावी और सरकार को प्रतिष्ठा दिलाने वाला हो।