नई दिल्लीः पिछले साल बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की लहर चल रही थी। भाजपा विरोधी दलों के इस मोर्चे में समाजवादी पार्टी भी शामिल थी। अचानक चुनाव से ऐन वक्त पहले सपा मुखिया बोरिया-बिस्तर बांधने लगे। नए-नए समधी बने लालू यादव की मान-मनुहार का भी असर नहीं पड़ा। और मुलायम महागठबंधन से नाता छोड़ यूपी घर आ गए। चुनावी नतीजा आया और महागठबंधन ने भाजपा को धूल चटाकर सरकार बनाई। उस वक्त सब चौंके थे कि बिहार में मलाई खाने का मौका नेताजी ने जानबूझकर क्यों छोड़ दिया। फिर बाद में पता चला कि सीबीआई की जांच में फंसे मुलायम को केंद्र से मिले कुछ संकेतों ने ऐसा करने से मजबूर कर दिया। जी हां कभी बिहार चुनाव में मुलायम सीबीआई के हंटर के खौफ से भाजपा के इशारे पर महागठबंधन छोड़कर भाग खड़े हुए। अब उनके चचेरे भाई भी सीबीआई के इशारों पर नाचने को मजबूर हैं । कहा जा रहा है कि मुलायम कुनबे में जब आग ठंडी होने को होती है तब प्रो. रामगोपाल किसी बयान या लेटर का मुद्दा उठाकर उसमें घी डालकर विघटन का हवन जलाए रखना चाहते हैं। इसके पीछे मजबूरी बताई जा रही है सीबीआई के फंदे में गिरेबान फंसे होने की ।
सीबीआई से बचना है तो आग भड़काए रहो
सूत्र कह रहे हैं कि जिस तरह से बिहार में सीबीआई का भय दिखाकर भाजपा ने मुलायम सिंह यादव को कंट्रोल किया, उसी तरह से अब रामगोपाल को सीबीआई का हंटर दिखाया जा रहा है। मध्यस्थों के जरिए शाह एंड कंपनी ने रामगोपाल तक संदेश पहुंचा दिया है कि अगर उन्हें खुद और बेटे को सीबीआई के चंगुल से बचाना है तो चुनाव तक यादव फेमिली के ग्रेट ड्रामे को खींचते रहें। जब कलह की आग ठंडी हो तब एक लेटर लिखकर उसमें घी डालकर लपटें और तेज करते रहें। नहीं तो यादव सिंह मामले में पुख्ता सुबूतों के आधार पर सीबीआई उन्हें और उनके बेटे को चुनाव से पहले पूछताछ के लिए बुला ली तो मुसीबत हो जाएगी। शिवपाल के खिलाफ अब तक अपने जिस सफेद कुर्ते के दम पर रामगोपाल उछल रहे हैं तो पूछताछ के लिए हाजिर होने के बाद कुर्ते पर दाग लगेगा तो फिर पार्टी में इज्जत का बाजा बज जाएगा।
क्यों सीबीआई से डर रहे प्रो. रामगोपाल
प्रो. रामगोपाल बेटे अक्षय समेत सीबीआई की जांच में फंसे हैं। बहुचर्चित काले धन के इंजीनियर यादव सिंह को लाभ पहुंचाकर खुद लाभ कमाने का आरोप है। नोएडा अथॉरिटी से निलंबित चल रहे यादव सिंह के घर सीबीआई के छापे में 62 पेज का दस्तावेज बरामद हुआ था। जिसमें रामगोपाल यादव और बेटे अक्षय का जिक्र रहा। कागजातों से खुलासा हुआ कि बेटे रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव को यादव सिंह ने अपने करीबी व्यक्ति की कंपनी में नौ हजार से ज्यादा शेयर दिलवाया एनएम बिल्डवेल नामक दिल्ली की कंपनी के 9995 शेयर राजेश मनोचा से महज दस रुपये प्रति शेयर के रेट पर यादव सिंह ने अक्षय को बिकवाया था। इसके दम पर बसपा सरकार जाने के बाद भी यादव सिंह का बाल भी बांका नहीं हुआ। उल्टे उन्हें रामगोपाल की कृपा पर अखिलेश सरकार में नोएडा अथॉरिटी की फिर से कमान मिल गई। ए
चार करोड़ की कंपनी को एक लाख में खरीदवाया
950 करोड़ के नोएडा ऑथरटी घोटाले में फंसे पूर्व सीईओ यादव सिंह ने कई तरह से प्रो. रामगोपाल के बेटे को लाभ पहुंचाया। शिकायतों के मुताबिक अक्षय यादव ने जिस कंपनी को महज एक लाख रुपये में खरीदा, उसकी कीमत करीब चार करोड़ रुपये रही। जब यादव सिंह का मामला उजागर हुआ था तो अखिलेश सरकार सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई जांच रुकवाने पहुंची थी। तब लोग हैरान हुए थे कि एक इंजीनियर से सपा सरकार को इतना मोह क्यों। बाद में जब यादव सिंह की डायरी में रामगोपाल व उनके बेटे के माल कमाने का ब्योरा मिला तब सबको समझ में आया कि अखिलेश अपने सलाहकार और सगे चाचा से ज्यादा प्रिय चचेरे चाचा रामगोपाल को बचाने के लिए सीबीआई जांच रुकवाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिए।