
नई दिल्ली : द्वापर युग की सबसे बड़ी कहानी ‘महाभारत’ ना केवल भारत में बल्कि विदेश में भी प्रसिद्ध है। कई बड़े बड़े शोधकर्ता इसकी वास्तविकता को समझने के लिए समय-समय पर शोध करते आए हैं।
आपने धृतराष्ट्र, पाण्डु, गांधारी, कुंती, 5 पाण्डव, 100 कौरव और पाण्डवों की पत्नी के बारे में भी कई पौराणिक कथाएं पढ़ी होंगी। इसके अलावा पाण्डव और कौरवों के पुत्रों से संबंधित कई कहानियां इस ग्रंथ से निकलकर सामान्य लोगों तक पहुंची हैं लेकिन फिर भी एक पात्र ऐसा है जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं और वह है कौरवों की बहन ‘दुशाला’।
100 कौरवों की एक बहन
हम अक्सर यह सुनते आए हैं कि महाभारत में 100 कौरव थे, लेकिन इन 100 कौरवों की एक बहन भी थी इसका जिक्र काफी कम हुआ है। कब हुआ था दुशाला का जन्म? महाभारत के इस पात्र का किरदार कितना गहरा था? और क्या महाभरत युद्ध से दुशाला का कोई संबंध था?
कैसे हुआ दुशाला का जन्म?
महाभरत के अनुसार धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी को महर्षि वेदव्यास द्वारा 100 पुत्रों का वरदान प्राप्त था। गांधारी जब गर्भवती हुई, तो दो साल तक उनका गर्भ ठहरा रहा। लेकिन जब गर्भ बाहर आया तो वह एक लोहे का गोला था।
एक टुकड़ा बच गया था
गांधारी ने लोकलाज के चलते इस गोले को फेंकने का निर्णय लिया। जब वह इसे फेंकने जा रही थी तभी वेदव्यास आ गए और उन्होंने उस लोहे के गोले के सौ छोटे-छोटे टुकड़े किए और इन्हें से सौ अलग-अलग मटकियों में कुछ रसायनों के साथ रख दिया।
फिर हुआ दुशाला का जन्म
इन्हीं मटकियों को जब कुछ समय के बाद एक-एक करके तोड़ा गया था उसमें से 100 कौरवों का जन्म हुआ था। कहा जाता है कि जब महर्षि वेदव्यास द्वारा लोहे के उस गोले के टुकड़े किए जा रहे थे तो 100 टुकड़ों के बाद एक टुकड़ा और बच गया था। इसी टुकड़े से दुर्योधन की बहन दुशाला का जन्म हुआ था।
दुशाला का विवाह
दुशाला, राजा धृतराष्ट्र और गांधारी की पुत्री और कौरवों तथा पांडवों की इकलौती बहन थी। बचपन से ही सभी राजकुमारों की तरह दुशाला को भी हर तरह की सुख-सुविधा प्राप्त हुई। लेकिन दुशाला के लिए संकट का समय तब से आरंभ हुआ जब उनका विवाह हुआ।
सिंधु का राजा जयद्रथ
100 कौरवों की इकलौती बहन का विवाह सिंधु राज्य के राजा जयद्रथ से किया गया। राजा जयद्रथ को उनकी शूरवीरता के लिए जाना जाता था लेकिन एक और बात थी जिसके कारण जयद्रथ जाने जाते थे और वह था उनका दोहरा व्यक्तित्व।
दुशाला का वैवाहिक जीवन
किसी समय वे सबसे अच्छा व्यवहार करते थे लेकिन वहीं कई बार वे महिलाओं से बेहद बुरे व्यवहार पर उतर आते थे जिसका कई बार शिकार हुई थी दुशाला। लेकिन वह ना तो किसी से कुछ कह सकती थी और ना ही अपने पति का विरोध कर सकती थी।
जयद्रथ ने किया द्रौपदी का अपहरण
अपने इसी व्यवहार की सभी हदें जयद्रथ ने तब पार कर दीं जब उसने जबरदस्ती पाण्डवों की पत्नी द्रौपदी को अगवा किया। बेहद क्रोधित पांडव, जयद्रथ का वध करने और द्रौपदी को छुड़ाने के लिए निकल पड़े। जब अपने कुकर्मों में असफल हुआ जयद्रथ पांडवों के हाथ लगा तो पांडवों ने उसका धड़ सिर से अलग करने का प्रयास किया किंतु द्रौपदी ने उन्हें रोक दिया।
तब द्रौपदी ने बचाया दुशाला का सुहाग
द्रौपदी ने अपने पतियों को समझाया कि यह उनकी इकलौती बहन दुशाला का पति है और इसे मारने से उनकी बहन विधवा हो जाएगी। किंतु पत्नी के साथ हुआ ऐसा दुर्व्यवहार सहन करने लायक नहीं था इसलिए सजा देने हेतु पांडनों ने जयद्रथ का सिर गंजा कर दिया।
शिवजी की तपस्या
शर्मसार हुआ जयद्रथ प्रतिशोध की भावना से भरा था लेकिन वहीं वह यह नहीं चाहता था कि दुनिया उसे बुरी नजरों से देखे इसलिए अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए जयद्रथ ने शिव की तपस्या की और उसके तप से प्रसन्न होकर शिवजी ने उसे कई प्रकार के वरदान दिए।
शिवजी से मिला वरदान
जब इस बात का दुशाला को पता चला तो वह अपने पति से प्रसन्न हुई और उसके द्वारा किए गए पुरानों पापों के लिए उसे क्षमा किया। कुछ समय बाद ही दुर्योधन ने जयद्रथ को अपनी सेना के साथ कुरुक्षेत्र युद्ध में पांडवों के विरुद्ध लड़ने के लिए आमंत्रित किया। लेकिन वह नहीं जानता था कि यह युद्ध उसकी मृत्यु लाएगा।
जयद्रथ की मृत्यु
युद्ध के दौरान जयद्रथ ने धोखे से अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की हत्या की, जबकि उस समय निहत्था (बिना किसी शस्त्र) था। इसका प्रतोशोध लेने का प्रण लिए अर्जुन ने श्रीकृष्ण की माया की मदद से एक ही बार में जयद्रथ का सिर धड़ से अलग कर दिया और पल भर में दुशाला के खुशहाल जीवन का अंत कर दिया।
और फिर पुत्र की मृत्यु
कहते हैं महाभरत युद्ध की समाप्ति के कुछ वर्षों के पश्चात अश्वमेध यज्ञ हेतु अर्जुन गलती से सिंधु राज्य में प्रवेश कर गए। उस समय दुशाला का पुत्र सिंधु राज्य पर शासन कर रहा था। अपने पिता के हत्यारे अर्जुन के राज्य आने की खबर सुन दुशाला का पुत्र भय से ही अपने प्राण त्याग बैठा था।
अर्जुन ने किया प्रायश्चित
पहले पति और फिर पुत्र के वियोग में दुशाला अर्जुन के समक्ष विलाप करने लगी और उससे विनती करने लगी कि उसके वंश को बचा लो। समाधान हेतु अर्जुन ने दुशाला के पौत्र को राज्य की गद्दी पर बैठाया और पूर्ण सम्मान के साथ सिंधु राज्य का राजा बनाया।
स्टोरी कर्टसी : speakingtree