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बादल राग (भाग 6)

12 अप्रैल 2022

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तिरती है समीर-सागर पर

अस्थिर सुख पर दुःख की छाया

जग के दग्ध हृदय पर

निर्दय विप्लव की प्लावित माया

यह तेरी रण-तरी

भरी आकांक्षाओं से,

घन, भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर

उर में पृथ्वी के, आशाओं से

नवजीवन की, ऊँचा कर सिर,

ताक रहे है, ऐ विप्लव के बादल!

फिर-फिर!

बार-बार गर्जन

वर्षण है मूसलधार,

हृदय थाम लेता संसार,

सुन-सुन घोर वज्र हुँकार।

अशनि-पात से शायित उन्नत शत-शत वीर,

क्षत-विक्षत हत अचल-शरीर,

गगन-स्पर्शी स्पर्द्धा-धीर।

हँसते है छोटे पौधे लघुभार

शस्य अपार,

हिल-हिल

खिल-खिल,

हाथ मिलाते,

तुझे बुलाते,

विप्लव-रव से छोटे ही है शोभा पाते।

अट्टालिका नही है रे

आतंक-भवन,

सदा पंक पर ही होता

जल-विप्लव प्लावन,

क्षुद्र प्रफुल्ल जलज से

सदा छलकता नीर,

रोग-शोक में भी हँसता है

शैशव का सुकुमार शरीर।

रुद्ध कोष, है क्षुब्ध तोष,

अंगना-अंग से लिपटे भी

आतंक-अंक पर काँप रहे हैं

धनी, वज्र-गर्जन से, बादल!

त्रस्त नयन-मुख ढाँप रहे है।

जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर

तुझे बुलाता कृषक अधीर,

ऐ विप्लव के वीर!

चूस लिया है उसका सार,

हाड़ मात्र ही है आधार,

ऐ जीवन के पारावार!

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रचनाएँ
अपरा
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निराला के काव्य में बुद्धिवाद और हृदय का सुन्दर समन्वय है। छायावाद, रहस्यवाद और प्रगतिवाद तीनों क्षेत्रों में निराला का अपना विशिष्ट महत्त्वपूर्ण स्थान है। इनकी रचनाओं में राष्ट्रीय प्रेरणा का स्वर भी मुखर हुआ है। छायावादी कवि होने के कारण निराला का प्रकृति से अटूट प्रेम है
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गीत

12 अप्रैल 2022
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बादल राग (भाग 1)

12 अप्रैल 2022
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झूम-झूम मृदु गरज-गरज घन घोर। राग अमर! अम्बर में भर निज रोर! झर झर झर निर्झर-गिरि-सर में, घर, मरु, तरु-मर्मर, सागर में, सरित-तड़ित-गति-चकित पवन में, मन में, विजन-गहन-कानन में, आनन-आनन में, रव घ

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बादल राग (भाग 2)

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बादल राग (भाग 3)

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बादल राग (भाग 4)

12 अप्रैल 2022
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उमड़ सृष्टि के अन्तहीन अम्बर से, घर से क्रीड़ारत बालक-से, ऐ अनन्त के चंचल शिशु सुकुमार! स्तब्ध गगन को करते हो तुम पार! अन्धकार-- घन अन्धकार ही क्रीड़ा का आगार। चौंक चमक छिप जाती विद्युत तडिद्दा

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बादल राग (भाग 5)

12 अप्रैल 2022
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निरंजन बने नयन अंजन! कभी चपल गति, अस्थिर मति, जल-कलकल तरल प्रवाह, वह उत्थान-पतन-हत अविरत संसृति-गत उत्साह, कभी दुख -दाह कभी जलनिधि-जल विपुल अथाह कभी क्रीड़ारत सात प्रभंजन बने नयन-अंजन! कभी कि

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बादल राग (भाग 6)

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जुही की कली

12 अप्रैल 2022
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जागो फिर एक बार

12 अप्रैल 2022
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जागो फिर एक बार! प्यार जगाते हुए हारे सब तारे तुम्हें अरुण-पंख तरुण-किरण खड़ी खोलती है द्वार जागो फिर एक बार! आँखे अलियों-सी किस मधु की गलियों में फँसी, बन्द कर पाँखें पी रही हैं मधु मौन अथ

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वसन्त आया

12 अप्रैल 2022
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सखि, वसन्त आया भरा हर्ष वन के मन,   नवोत्कर्ष छाया। किसलय-वसना नव-वय-लतिका मिली मधुर प्रिय उर-तरु-पतिका मधुप-वृन्द बन्दी पिक-स्वर नभ सरसाया। लता-मुकुल हार गन्ध-भार भर बही पवन बन्द मन्द मन्

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सन्ध्या-सुन्दरी

12 अप्रैल 2022
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दिवसावसान का समय  मेघमय आसमान से उतर रही है वह संध्या-सुन्दरी, परी सी, धीरे, धीरे, धीरे, तिमिरांचल में चंचलता का नहीं कहीं आभास, मधुर-मधुर हैं दोनों उसके अधर, किंतु ज़रा गंभीर, नहीं है उसमें हास

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