.... आरक्षण की आड़ में राजनीतिक पार्टियों का वोट-बैंक का प्लान रहता ही है, क्योंकि यदि आरक्षण आर्थिक आधार पर हुआ तो समान्य गरीब वर्ग को भी राहत मिलेगी और तब जातियों के मध्य विभाजन और वोट-बैंक पर कुंडली मारने के प्रयास समाप्तप्राय हो जायेंगे. ऐसे में राजनेताओं की तो दूकान ही बंद हो जाएगी और फिर वह कैसे एक-दुसरे को लड़ाएंगे? देखा जाए तो बीते दस साल में ख़ुद को 'ओबीसी' बताने वाले दस प्रतिशत बढ़कर 44% हो गए हैं तो बीस प्रतिशत अजा और नौ प्रतिशत अजजा है. इस तरह कुल 73% को आरक्षण की पात्रता है. यदि इनमें नई आंदोलन कर रही जातियों को भी जोड़ लिया जाए तो यह आंकड़ा 80-81% तक पहुंच जाएगा. देश में अब राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक तीनों रूप से ताकतवर जातियां आरक्षण मांग रही हैं. गुजरात के पटेल, हरियाणा में जाट, ऐसे में ग़रीब सवर्ण ख़ुद को बुरी तरह ठगा हुआ महसूस कर रहा था. ऐसे में गुजरात सरकार के फैसलों का चाहे जो मतलब निकाल जाए, किन्तु इससे इस बात की चर्चा जरूर शोर पकड़ सकती है कि अब जाति की बजाय, आरक्षण 'कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि' के लोगों को दिया जाए, वह भी बेहद कम मात्रा में, ताकि इससे 'निकम्मापन' न बढे! हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने 50% से अधिक आरक्षण पर रोक लगा रखी है और ऐसे में गुजरात सरकार का फैसला कितने लम्बे समय तक चल पाएगा, यह देखने वाली बात होगी, क्योंकि राजस्थान में कोई दस साल पहले गुर्जर सहित ...