नयन नहाये
जब से उसकी छबि में रूप बहाये।
साथ छुटा स्वजनों की,
पाँख फिर गई,
चली हुई पहली वह
राह घिर गई,
उमड़ा उर चलने को
जिस पुर आये।
कण्ठ नये स्वर से क्या
फूटकर खुला!
बदल गई आँख, विश्व
रूप वह धुला!
मिथ्या के भास सभी,
कहाँ समाये!
12 अप्रैल 2022
नयन नहाये
जब से उसकी छबि में रूप बहाये।
साथ छुटा स्वजनों की,
पाँख फिर गई,
चली हुई पहली वह
राह घिर गई,
उमड़ा उर चलने को
जिस पुर आये।
कण्ठ नये स्वर से क्या
फूटकर खुला!
बदल गई आँख, विश्व
रूप वह धुला!
मिथ्या के भास सभी,
कहाँ समाये!
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सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म वर्ष 1899 ईस्वी में बंगाल राज्य के महिषादल रियासत में जिला मोदीनी पुर में हुआ था। सूर्यकांत त्रिपाठी जी के पिता का नाम पंडित राम सहाय त्रिपाठी था, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी के पिता महिषादल रियासत में एक सिपाही की नौकरी करते थे। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी ने अपने बचपन से ही साहित्य में अपनी रुचि प्रदर्शित करना शुरू कर दिए थे और धीरे-धीरे करके इन्होंने बहुत सारी कृतियां लिख चुकी थी। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी हिंदी साहित्य के इतिहास के स्तंभ कवि में सम्मानित हैं और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी के जन्म को लोग हिंदी साहित्य के उद्गम का जन्म मानते हैं। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के पिता जब इनकी कुंडली बनवाने के लिए गए तो उनकी कुंडली के अनुसार इनका नाम सूरज कुमार रखा गया था। लोगों का ऐसा कहना है कि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की पिता का पैतृक स्थान बंगाल में नहीं अपितु इनका मूल निवास उत्तर प्रदेश राज्य के उन्नाव जिले के बांसवाड़ा नामक ग्राम है। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी जब केवल 3 वर्ष के थे तभी उनके माता का देहांत हो गया था और जब वह लगभग 20 वर्ष के हुए तब उनके पिता का देहांत हो गया। उसके बाद प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान एक ऐसी महामारी फैली, जिसके दौरान उनकी पत्नी सहित उनके परिवार के कुछ और सदस्यों की भी मृत्यु हो गई। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी ने अपने बचपन से ही साहित्य क्षेत्र में अपनी रुचि दर्शाना शुरू कर दिया था। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी ने अपने बचपन से लेकर अपनी मृत्यु तक के सफर में बहुत ही अच्छी कविताएं लिखी, जिन्हें आज पूरा भारत बहुत ही ज्यादा सम्मान देता है और इनकी कविताओं को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ कविता माना जाता है। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी ने अपनी कविताओं में मार्मिकता वीरता इत्यादि का उल्लेख किया है और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी ने बहुत से पत्रिकाओं का भी संपादन किया। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने वर्ष 1923 में में अपनी प्रथम कविता संग्रह को अनामिका नाम से प्रकाशित किया। उनका प्रथम निबंध बंग भाषा में सरस्वती पत्रिका के द्वारा प्रकाशित हुआ। वर्ष 1922 ईस्वी में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी ने महिषादल की नौकरी को त्याग दिया और उसके बाद स्वतंत्र रूप से लेखन करने लगे। वर्ष 1923 में प्रकाशित होने वाली समन्वय का संपादन भी सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने ही किया। D