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परछाई हूॅं

19 नवम्बर 2022

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इग्नोर ही तो किया है 
तुमने हमेशा मुझे 
कभी परिवार के लिए 
कभी दोस्त यार के लिए 
मैं तो बस परछाई हूॅं 
जिसे तुम वक्त के 
अनुसार तवज्जो देते हो 
कभी आगे आगे चलाते हो 
कभी पीछे छोड़ देते हो 
और कभी तो 
पास में भी नहीं रखते हो 
अपनी जिंदगी से 
दूर छिटक देते हो 
पर मैं भी परछाई हूॅं 
आसानी से नहीं छोडूंगी 
मत भूलो ये बात 
मुझे छोड़ने के लिए 
तुम्हें भी सहना पड़ेगी
धूप की तपन 

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

बहुत खूबसूरत लिखा है आपने बहन 😊🙏

15 अगस्त 2023

भारती

भारती

8 सितम्बर 2023

बहुत बहुत आभार आपका 🙏☺️

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रचनाएँ
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0.0
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