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जिंदगी

18 नवम्बर 2022

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जितना सुलझाती हूॅं 
उतना ही उलझ जाती है 
ये जिंदगी तू 
क्यों इतनी सवाल बन जाती है 
आज तक समझ नहीं आया 
कितने तेरे रूप हैं 
एक को समझती हूॅं 
तब तक दूसरे में ढल जाती है 
कभी मंजिल दूर तो 
कभी डगर मुश्किल लगती है 
दोनों दिखाई दे तो 
चाहत बदल जाती है 
खुद से करूं दूर 
करीब आ जाती है 
छूने की करूं कोशिश 
दूर चली जाती है


प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

बहुत खूबसूरत लिखा है आपने बहन 😊🙏🙏 मेरी कहानी कचोटती तन्हाइयां पढ़कर अमूल्य समीक्षा व लाइक कर दें 🙏🙏😊

14 नवम्बर 2023

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रचनाएँ
शब्द मैजिक
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ये शब्द ही हैं जो किसी के चेहरे पर मुस्कान ला सकते हैं तो किसी की आंखों में पानी हर शब्द की होती अपनी अलग कहानी
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18 नवम्बर 2022
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18 नवम्बर 2022
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19 नवम्बर 2022
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19 नवम्बर 2022
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