थोड़ी सी जिंदगी है अरमान बहुत हैं हमदर्द कोई नहीं इंसान तो बहुत
हैं ,,
दिल में जो दर्द हैं वो सुनाये किसको जो दिल के करीब
हैं वो तो अंजान बहुत हैं
अभी तो अरमान बाकी थे
दिल में बहुत मुझे आजमा
रहे थे बहुत ,,
इससे पहले की कोई रुठ न
जाये हमसे धड़कते हुए हर
अरमान को कोई हम नाम
दे दें ,,
आरजू तो यही है हर अरमान रहे जिंदा मगर
प्यार ,वफा ख्वाहिशों के
दाम बहुत हैं..
दिल के अरमानों को बेदर्द
इंसानों ने तोड़ दिये बचे अरमानों पर ताले लगा दिये ,,
अब तुम ही बताओ कैसे खोलूं उन अरमानों को जिसकी चाभी भी वो बेदर्द अपने साथ ले गये..
दो हिस्सों में बंट गये ये
दिल के सारे अरमान अब
तुम ही बताओ कैसे करें
बंटवारा हम अरमानों का
जब चाभी भी नही है हमारे
पास ,,
थोड़ी सी जिंदगी है अरमान बहुत हैं हमदर्द कोई नही इंसान बहुत हैं!!
स्वरचित
सरिता मिश्रा पाठक"काव्यांशा