आशा और विश्वास पर है सारी दुनियां टिकी करो
भरोसा उसी का जो है तुम्हारे लिए सबसे सही..
हो चाहे सूरज की पहली किरण या अंधियारी उजियारी रात शून्यता हो या हो फिर कोई बड़ी आश
चांद ने भी खींच लिए अपने हांथ नींद भी आयी नहीं न आये कोई सपनें
किंतु पूरब में क्षितिज पर थी एक रेखा खिंची चमक रही थी स्वर्ण जैसी कोई छवि देखकर आभा उसकी मन में एक आस जगी ,,
आशा और विश्वास पर है दुनियां टिकी ,,
घास पर झलमलाती ओस की एक बूंद गिर गयी ऐसे
लग रहा था जैसे कोई है मोती पड़ी ,
समझकर 'मोती उठानें चला एक 'पथिक' देखकर रख दिया उस शबनम' पर अपना र्निदयी पग बूंद बिखर कर फैल गयी घास पर ,,
रोती सिसकती रही रात भर मन में इक आस लिए सूर्य के किरण की ,,
सूर्य पर ही था भरोसा किरणें करेंगी मोल उसका
मिठ चुकी थी पथिक के कद़मों से वो बूंदों की लरी ,,
आशा और विश्वास पर है दुनियां टिकी..
ग्रीष्म का आज था दिन बहुत तप रहा था सूर्य भीषण" जल रहा था नभ और धरा का हर एक "कण
आज "सरिता" का हृदय विह्वल हो फट गया था हर
लपट से अवनि-अंबर पट गया था ,,
किंतु वर्षा की कुछ बूंदें रवि
रश्मियों से आकर सागर के
तल में गिरीं लिख रही थी आज मैं कविता जो संमुदर की तरंगों पर लहरों से लिखी ,,
आश और विश्वास पर है दुनियां टिकी..
आज वृक्षों का विभव सब
लुटने लगा था पक्षियों के
घोसले गिर कर मिटने लगे
थे ,,
हो गयी थी सूनी सारी चमन की क्यारियां ले रही
थी प्रकृति कुछ सूनी-खाली
अंगड़ाईंयां किंतु पूरब का
पवन दे रहा था भरोसा ,,
आज़ आया है पतझड़ कल लाऊंगा वंसत बहार हर कली फिर से खिलेगी
करो भरोसा मुझपे सखी..
आशा और विश्वास पर है सारी दुनियां टिकी करो भरोसा उसी का जो तुम्हारे
लिए है सबसे सही !!✍️
मुंबई महाराष्ट्र
स्वरचित (स्वैच्छिक) मौलिक
*सरिता मिश्रा पाठक "काव्यांशा