रिश्तों की अनमोल डोर
होता है परिवार ,, मिलजुलकर जहां रहते हैं सभी प्रेम से वही होता है परिवार..
दादा-दादी नाना-नानी मामा-मामी चाचा-चाची
सबका होता है सहयोग और प्यार इसको ही कहते हैं परिवार ,,
आजकल सब बंट गये रिश्ते और और बंट गया है
परिवार..
संयुक्त परिवार की डोर टूट
गयी बिखर रहा है परिवार ,
नींव हिल रही आधार टूट
रहा है क्योंकि अब कोई नही रखना चाहता है ,,
बुर्जगों को अपने साथ..
माता-पिता भाई-बहन किसी में अब नही रह गया
है पहले जैसा प्यार ,,
हर कोई रहना चाहता है अकेला इसलिए टूट रहा है
परिवार..
किसी को पैसा प्यारा किसी को प्यारी है जायजात ,,
रिश्तों में अब प्रेम नही है
इसलिए टूट रहा है परिवार!!
स्वरचित (स्वैच्छिक) मौलिक
सरिता मिश्रा पाठक "काव्यांशा