बारिश की बूंदों को जरा जुल्फों पर गिरनें दो थोड़ी
ध्वनि थोड़ी लोरी गाने दो
बारिश की बूंदों को अपनी
कशिश बताने दो बारिश की बूंदों से मिट्टी को भीग कर फिजां में खुशबू फैलाने
दो
न रोको न टोको न कुछ कहो बस इनको अपनी
लोरी सुनाने दो
लम्बा सफ़र तय करके आती हैं ये बारिश की बूंदें
इन्हें गीत गाने दो लोरी सुनाने दो..
सरिता मिश्रा पाठक "काव्यांशा"