हो हृदय में अनुराग इतना
न रहे कोई बैर ईष्या हो
बस पेम की बरसात ,,
छट जाये नफरतों का अंधेरा..
प्रेम अनुराग से भरा हो
हर हृदय न रहे कभी कोई
खाली मन ,,
खिल उठे हर मन का चमन
बस पेम की पुष्पांजली हो
सुगंधित हो जाये अनुराग से हर मन ,,
हर किसी की जिंदगी में स्नेह हो हर हृदय अनुराग से परिपूण हो..
जब चले हवा वो प्रेम की हो नफरतों की न हो कोई
जगह ,,
भर दो इक पेम का सागर
भर दो आंसमां से जमी तक प्रेम की गागर
प्रेम ही तो है पूजा अनुराग के बिन है हर जीवन अधूरा
सरिता मिश्रा पाठक 'काव्यांशा'