रावण का पुत्र वीर योद्धा मेघनाथ यह जान गया था की श्रीराम "भगवान" नारायण का अवतार है उन्होंने अपने पिता रावण को समझाया की श्रीराम स्वम नारायण का अवतार है पर रावण ने कहा की एक योद्धा का कर्तब्य युद्ध में लाभ हानि देखना नही वल्कि युद्ध करना है
इन्द्रजीत मेघनाथ ने कहा की यदि वो नारायण भी है तो पुत्र का कर्तब्य निभाते हुए भगवान के हाथो मेरी म्रत्यु भी हो जाए तो वह भी मेरी विजय का रूप ही होगा !!!
मेघनाथ की माँ मंदोदरी ने कहा की पुत्र अगर वो नारायण है तो तुम अकेले ही उनकी शरण में चले जाओ मुक्ति के पथ पर प्राणी अकेला ही जाता है " मेघनाथ का जबाब था की माता जो पुत्र अपने पिता से विमुख होकर पिता को शत्रु के वीच अकेला छोड़कर मुक्त होने जाता है उसका देवता तो क्या भगवान् भी कभी आदर नही करेंगे पुत्र का यही धर्म है की वह अपने पिता के चरणों में अपना शुख,संपत्ति,वैभव यहाँ तक की अपनी मुक्ति का भी वलिदान दे देना !!! स्वम श्रीराम जी" ने भी यही आदर्श सिखाया है !!!
!!! आज कई लोग भगवान श्रीराम जी की पूजा करते है उनके आदर्शों की बात करते है और पिता का सम्मान नही करते पिता ब्रदाश्रम जैसा जीवन यापन कर रहे है!!!!
!!! रावण, का पुत्र एक राक्षस कुल में पैदा हुआ ,स्वम श्रीराम जी से शत्रुता रखता है उनसे युद्ध करता है पर श्रीराम जी के आदर्शों का पालन करते हुए पिता के लिए प्राणों का वलिदान देता है वह यह जानकार भी की श्रीराम जी नारायण का अवतार है उनसे युद्ध करके वीरगति को प्राप्त होगा उसके बाबजूद उस वीर योद्धा ने पित्र भक्ति और उसके माध्यम से इश्वर भक्ति दोनों ही निभाई और वीरगति को प्राप्त होकर हरिधाम को गया !!!
!!! मेघनाथ राक्षस कुल में जन्म कर भी पिता के लिए प्राण न्योछावर कर दिए अर्थार्थ - पित्रभक्ति निभाई !!!!
!!! आज कल के नौजवानों की प्रवृति क्या राक्षसों से भी गयी गुजरी है जो अपने पिता और पूर्वजो का सम्मान नही करते !!!!