15 अगस्त 2017
रह गई अब अव्यक्त जो, हूँ वही इक कहानी मैं!आरम्भ नही था जिसका कोई,अन्त जिसकी कोई लिखी गई नहीं,कल्पना के कंठ में ही रुँधी रही,जिसे मैं परित्यक्त भी कह सकता नहीं। चुभ रही है मन में जो, हूँ वही इक पीर पुर