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बांझ का केहर

10 सितम्बर 2024

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यह कहानी एक ऐसी स्त्री की है जो बांज की कसौटी पर उत्तर पड़ती है। इस किताब की लेखिका है साक्षी तिवारी। इस कहानी में यह दर्शाया गया है कि कैसे एक स्त्री का अपमान करते हैं लोग या समाज। बांझ कहकर उसे स्त्री का अपमान हर जगह हर कोने हर देश विदेश में जताया गया है। राधिका नाम की एक लड़की होती है जो पढ़ने में लिखने में बहुत होशियार होती है और वह उत्तर प्रदेश की एक छोटे से कस्बे में रहने वाली एक लड़की है जो आगे की कहानी में सबसे बड़ा रोल वही निभाएगी।एक दिन राधिका का दाखिला एक अच्छे कॉलेज कॉमर्स कॉलेज में उसका दाखिला हो जाता है उसकी तीन सहेलियां होती हैं रुचि अंबिका और निभा यह सब वहां पर दाखिला लेती हैं कॉमर्स कॉलेज में और वहां पढ़ाई करने लगते हैं कुछ दिनों बाद वह पढ़ने में इतनी तेज हो जाती है कि वहां की अध्यापिका उसे प्रोत्साहन करने लगते हैं रहती है कि तुम एक काबिल विद्यार्थी हो जब उसका लास्ट ईयर होता है तब वह एग्जाम देती है और उसमें टॉप करती है पूरे कॉलेज में वह टॉप कर एक अच्छी विद्यार्थी  नाम रोशन करती है और अपने मां-बाप का भी फिर क्या होता है कि एक दिन उसके लिए एक रिश्ता आता है लेकिन वह शादी नहीं करना चाहती थी उसका मन था कि मैं और आगे पढ़ लिखो बानो फिर कुछ सोचूं लेकिन उनके मां-बाप यह नहीं चाहते थे उनके माता-पिता कहते थे कि नहीं राधिका तुम्हें शादी करनी है। राधिका का मन बिल्कुल नहीं था कि वह शादी करें लड़के की तस्वीर दिखाई जाती है राधिका को लडके की तस्वीर लड़के को राधिका की तसवीर दिखाई जाती है एक दूसरे को वह देखते हैं और एक दिन मिलने का समय निकाल के रिश्ता पक्का करते हैं और दोनों लोग एक दूसरे को देखकर हामी ही भरते हैं फिर विवाह की तैयारी शुरू हो जाती है जोरों शोरों। राधिका तब भी खुश नहीं थी वह चाहती थी कि कुछ ना कुछ मैं अपने पैरों पर खड़ी हो जाऊं तब मैं इस विवाह को करूं लेकिन माता-पिता का जोर उसके सर पर था और तभी उसने हामी ही भरी जब उसकी शादी हो गई वह अपने ससुराल चली गई और ससुराल में उसको बड़ा प्यार मिला साथ से ससुर से देवर से और नंद से एक भरा पूरा परिवार उसका था वह इतनी खूबसूरत थी कि जब वह सस्ती थी तो लोग उसे कहते थे की कितनी खूबसूरत बहू लेकर आए अब तो चांद सा बेटा चाहिए वहां के लोग वहां के रिश्ते नाते सब यही चाहते थे कि उसका एक बेटा या बेटी हो जाए लेकिन अभी वह अपनी जिंदगी को इंजॉय कर रही थी । एक दिन उसके पिता की खबर आई कि उसके पिता अब नहीं रहें रोते हुए अपने मायके पहुंची और अपने लोगों को देख कर वह बहुत ज्यादा दुखी हुई और अपने पिताजी की अर्थी को देखकर वह बहुत रोई बहुत रोई तभी उसके पति ने कहा तुम परेशान ना हो मैं तुम्हारे साथ हूं तुम्हें कभी भी कोई कमी महसूस नहीं होने दूंगा और तुम्हारा साथ हमेशा दुख सुख में देता रहूंगा वह यह सब देखकर बहुत दुखी भी थी लेकिन उसको एक एहसास हुआ कि मेरे ससुराल वाले मुझे बहुत सुखी रखते हैं मैंने जो शादी का निर्णय लिया था वह सही था और मैं आनंद में मैं अपनी जिंदगी बीता दूंगी

धीरे-धीरे वह अपनी पढ़ाई को आगे बढ़ने लगी और अपने ससुराल से ही वह पढ़ाई लिखाई का काम शुरू कर दी और फिर उसने एमबीए किया फिर उसने सोचा चलो अब मैं जॉब करती हूं और वह जब भी करने लगे लेकिन कोई रोक-टोक नहीं थी न सास की तरफ से ना ससुर की तरफ से ना किसी और की तरफ से उसका ससुराल उसके लिए एक मिसाल बन गया था। सब कुछ तभी अच्छा चल रहा था तभी उसकी सास ने का बेटा अब मुझे तो एक बेटा चाहिए और मैं इसका इंतजार कर रही हूं 8 साल गुजर गए लेकिन कोई  खुशखबरी नजर नहीं आई लेकिन और तब भी हार नहीं मानी अभी उसने कोशिश की कि नहीं मैं एक दिन जरूर बनूंगी फिर उसकी सास ने कहा कुछ दर्शन या पूजा पाठ कर लो पूजा पाठ हो रहे थे हवन हो रहे थे सब जगह माथा टेका और कुछ नजर नहीं आया बहुत परेशान राधिका को क्या करती धीरे-धीरे ससुराल में भी लोग बदलने लगे लोगों का नजरिया बदलने लगा लोगों की सोच बदलने लगी लेकिन उसने उफ़ तक नहीं किया एक दिन उसकी सहेली की गोद भराई थी उसका सब परिवार गोद भराई में गया निभा बड़ी खुश हुई कि तुम सब आए हो और उसने कहा राधिका में बहुत खुश हूं की खास तुम मेरे घर आई मेरी एक खुशी में शामिल हुई और मैं बहुत खुश हूं उसकी सास ने देखा मां बनने वाली है फिर राधिका की ओर देखने लगी कुछ बोल ना सके लेकिन अपनी चुप्पी साधी रही फिर अपनी एक प्रिय मित्र से मिली वह भी पूछने लगे और बताओ मैं तुम्हारी बहु कब खुशखबरी दे रही है मैं तो इसकी चाचिया सास हूं इसलिए मैं तो इसको आशीर्वाद देने आई हूं अब मैं तुम्हारे यहां भी कब पधारो अपनी बेटी को आशीर्वाद देने को तुम्हारी बहू का इंतजार है कब पोते का मुंह दिखाओगी यह सुनकर सास गुमसुम हो गई और वह कुछ नहीं बोली। घर आकर राधिका कि सास

बिल्कुल चुप बैठी हुई थी उनके मानो कि उनके चेहरे पर साफ सुंगाया हों  और तभी राधिका बोली मां चाय नहीं पियेंगे मैं चाय बना कर लाती हूं आपके लिए उन्होंने मना कर दिया नहीं मुझे चाय नहीं पीनी है तुम मुझे चाय मत दो मैं मुझे मेरा मन नहीं है वह कुछ बोली भी नहीं और वह चुपचाप अपने कमरे में चली गई लेकिन राधिका वही थी खड़ी-खड़ी मां को देखते रही और वह चुप हो गई तभी उसकी नंद ने कहा भाभी हम कब तक लोगों के गोद भराई में जाते रहेंगे कब तुम तुम्हारी गोद भराई होगी और कब हम तुम खुशियों को मनाएंगे। उसके पति ने बोला अरे कुछ नहीं सब सही हो जाएगा परेशान मत हो कोई ना कोई दिन तो तुम खुशखबरी सबको दोगी मुझे इसका इंतजार है तुम परेशान मत हो यह सुनकर राधिका सुनकर नॉर्मल हो गई और फिर से वह अपना काम आम घर का निपटान लगी कुछ सालों बाद घर के बगल में किसी के यहां गोद भराई थी सबको उन्होंने कार्ड बनता और वह देने भी आए उनकी जो शास्त्री वह बड़ी खुश हुई थी ठीक-ठीक मैं आऊंगी तभी राधिका ने कहा नहीं मान क्या जरूरत है जाने की फिर कुछ कहा जाएगा और आप उसको सुनकर बैठ जाओगे तो उनकी सास ने बोला मैं तुम्हारे कहने से आने जाने का रास्ता नहीं बंद कर सकती जो भी मुझे कोई बुलाएगा तो मैं जाऊंगी क्योंकि लोग मेरे घर भी एक दिन आएंगे यह कहकर वह चली गई और वहां पर जाने के बाद उनकी सास को लोगों ने कड़ी खोटी सुनाई देखो देखो यह आई है उनकी बहू के बेटा ना बेटी और चली आई तभी राधिका को लगा कुछ प्रॉब्लम ना हो जाए इसलिए वह भी पीछे-पीछे अपनी सास के चली गई जब उसने यह सब बातें सुनी तो राधिका ने लोगों को सुनाया कि नहीं आप कैसे बोल रहे हो यह सब बातें शोभा नहीं देती हैं आप लोग को आप लोग यहां फंक्शन कर रहे हो कि यहां पर पंचायत तभी वह कहती है उसकी सास की तुम चुप रहो राधिका तुम्हारा बोलना उचित नहीं है तभी वहां पर तो कुछ औरतें मिलकर बोलते अरे यह तो बंद है बांज यह हां यह मेरी मेरी बहू को नजर लगाने के लिए मेरी बहू का गोद भराई हो रही है और उनकी बहू मेरे घर पर आकर मेरी बहू के ऊपर नजर मार रही है कुछ मेरे पोते आया पोती को कुछ हो गया तो या निकलो निकलो यहां से यह तो बांज है। तभी राधिका रोते हुए अपने घर पहुंची और वह बहुत रोई बहुत रोई दरवाजा बंद कर ले तभी उनकी सास पहुंची स में पूरी कथा बताइए कि राधिका के साथ क्या हुआ और मेरे साथ क्या हुआ तभी उसका पति भी यह सच में पड़ गया कि कुछ तो हमें हमारे किस्मत खराब है जो मैं मैं उससे शादी की तभी उसका पति कहने लगा खोलो दरवाजा मुझे तुमसे जरुरी बात करनी है तब वह दरवाजा खोलती है तब उसका पति उसे बोलना है कि राधिका अगर मुझे पता होता कि तुम हमें खुशखबरी नहीं दे सकती तो आज मैं तुम्हें अपने घर की बहु ना बनता और मैं ना तुम्हें अपने घर में लता उनकी सास नंद देवर सपना बोलना शुरू करिए राधिका रो-रो से बुला पूरा हाल हो गया उसने अपनी नौकरी छोड़ दी सबको सब कुछ अपना रोते हुए भी लगाते हुए एक कमरे में बिताती थी और उसे यहां तक कहा जाता था कि तुम मेरे किचन में नहीं आऊंगी तुम अपना चेहरा नहीं दिखाओगे यह सब सुन सुन के राधिका बिल्कुल टूट चुकी थी और फिर वह उसको मायके छोड़ दिया  उसके पति ने बोला तुम यहां से चली जाओ और अपने मायके में अपनी जिंदगी बिता मैं अब चाहता हूं कि मैं दूसरी शादी करूं अब उससे जो भी मुझे खुशी प्राप्त होगी वह हमें आगे के वंश या कोई भी हो हम उसको आगे बढ़ाएंगे लेकिन हम तुम्हें अब आगे तुमसे रिश्ता रख नहीं सकते और हम सब बहुत निराश हैं राधिका तुम आजाद हो और तुम यहां से जा सकती हो राधिका को बहुत दिल टूट गया राधिका रोते हुए हुए अपने घर पहुंची रही थी तभी उसने सोचा क्यों ना मैं अपनी जिंदगी खत्म कर लऊं वह एक नदी के पास पहुंची और उसने सोचा कि क्यों ना इसमें छलांग लगा दूं और इस जिंदगी को खत्म करना तभी अच्छा होगा लगने लगा कुछ ऐसा उसको महसूस हुआ जैसे लगा किसी ने पुकारा पीछे से लगा उसको कोई बोल रहा है जब उसने मुड़ के देखा तो कोई नहीं था फिर से वही आवाज सुनाई दी मां लेकिन उसको तब भी यकीन नहीं होता कौन बोल रहा कौन बच्चा बोल रहा है वह इधर-उधर मुड़ मुड़ के देख रही थी कुछ भी नहीं पता लेकिन जब वह घर की जगह चलांग लगाने जाती तभी एक बूढ़े बाबा आए बोला बेटा

चाहते हैं गुरुदेव का कुछ नहीं तुम बेटा अपने घर जाओ जब वह यह बात सुनकर सीधे अपने घर की ओर मुड़ गई और अपने घर में जाकर सारी बातें बताएं तब उन लोगों ने कहा परेशान ना हो तुम बैठो कुछ दिन बाद उसको लगने लगा कुछ अजीब सा उसको चक्कर आना उल्टी आना और कहीं-कहीं वह बेहोश हो जा रही थी अभी डॉक्टर के यहां लेकर उसके मां और भाई लेकर गए और तभी पता चला कि वह मां बनने वाली है वह खबर उनके ससुराल में पहुंचाई जब तब उसे उसके पति को तब पता चला कि वह मां बनने वाली है उसके पति ने रोका तोड़ दिया और सीधे अपनी पत्नी से मिलने चला गया और उससे बोला क्या तुम मां बनने वाली हो अगर तुम मां बनने वाले मुझे माफ कर देना जो भी मैं तुमसे अप शब्द बोले हो उसको तुम अपने दिल पर मत लेना तब उसने बोला नहीं अब मैं इस बच्चे को आपके साथ नहीं अकेले जन्म दूंगी और आपके साथ रहना मेरे लिए एक मेरे लिए एक स्वाभिमान पर ठेस पहुंचाने की बात होगी इसलिए अब मैं आपके साथ 1 मिनट भी इस पल को आपके साथ बाट नहीं सकती यह सुनकर उसका पति बोलने लगा नहीं नहीं ऐसी कोई बात नहीं चलो हम लोग फिर से वैसे ही रहेंगे सुखी जीवन जिएंगे नहीं मैं अब आपके साथ नहीं रह सकती और भगवान ने मेरी गोद भरी है आपका यह बच्चा नहीं यह मेरा बच्चा है और ना आपके परिवार का वंश चाहिए नहीं कभी नहीं  परिवार वालों को पता चला वह भी सब आते हैं उसको मनाने की कोशिश करते नहीं बेटा राधिका हमसे गलती हुई हमें माफ कर दो नहीं अब तुम आप सब लोग अब हमसे दूर हो जाए यह बेटा या बेटी जो भी होगी वह मेरा होगा वह आपका नहीं होगा इसलिए अब आप लोग हमारे घर से निकल जाइए और कभी भी मेरी तरफ मुड़ के मत देखना मैं एक पढ़ी-लिखी लड़की हूं और मैं एक काबिल हूं और मैं अपने बच्चों को संभालना जानती हूं जब काम करसकती सकती हूं खा सकती हूं तो अपने बच्चों को भी पाल सकती हूं जैसे आपके घर में रहती थी वैसे ही मैं यहां रहूंगी अपने बच्चों को एक अच्छा भविष्य अच्छे संस्कार दूंगी कि कभी किसी औरत को या कभी किसी बहन को कभी किसी बेटी को कटु वचन ना बोले मैं आपसे विनती करती हूं आप लोगो का यहां से जाना उचित होगा धन्यवाद आपकी हर चीजों के लिए। अभी एक बच्चे को जन्म देती है और वह होता है एक लड़का और फिर उसको एक काबिल अफसर बनती है और इस दिन इस जिंदगी को एक खुशी बड़ा खत लिखती है कभी किसी के साथ या कभी किसी औरत के को यह सब दुख ना देखना पड़े क्योंकि कोई किसी का नहीं होता ना कोई किसी को पाल सकता है ना कर सकता है एक औरत ही होती है जो अपने दम पर जी सकती है पाल सकती है बड़ा कर सकती है और आगे अच्छे संस्कार भी दे सकती है यही कहानी का अंत है कभी किसी औरत को कमजोर ना समझा जाए और भूल न करें कि वह कमजोर है।

मीनू द्विवेदी वैदेही

मीनू द्विवेदी वैदेही

एक मार्मिक विषय का चयन किया है आपने और बहुत सटीक एवं सुंदर लिखा है। आप मेरी कहानी प्रतिउतर और प्यार का प्रतिशोध पर अपनी समीक्षा और लाइक जरूर करें 🙏🙏🙏

11 सितम्बर 2024

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

बहुत सटीक और विचारणीय लिखा है आपने बहन औरत का बांझ होना उसके लिए अभिशाप बन जाता है पति हो या सास-ससुर, सोचना चाहिए कि इसके लिए औरत ही दोषी नहीं होती,कमी पुरुष में भी हो सकती है और दूसरी बात देने वाला तो ईश्वर है औरत कहां से दोषी हो गई जो उसका तिरस्कार करा जाए या अपमानित किया जाए 😊🙏 कृपया होम पेज पर मेरी कहानी कचोटती तन्हाइयां पढ़कर सभी भागों पर अपना लाइक और रिव्यू देकर आभारी करें 😊🙏

10 सितम्बर 2024

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रचनाएँ
बांझ का केहर
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राधिका पढ़ लिखकर एक अच्छा काबिल ऑफिसर बनना और अपने घर को चलाना यह बस एक ड्यूटी है पर जो प्रथाएं जो रूढ़ि वादियां यह सब चीज औरत पर ही डाली जाती है भलाई वह गलत हो या सही है राधिका भी उनमें से एक थी और उसके ऊपर भी यह सब चीज डाली गई संपूर्ण संपन्न जो हर औरत में देखा जाता है और उसी से विवाह किया जाता है कि मेरे घर को भी सबको संपन्न बीवी मिलेगी या बहु मिलेगी लेकिन अगर औरत में कोई कमी निकलती है तो वह गलत है वह घर में रहने लायक नहीं वह घर की बहू कहेनने लायक नहीं यही राधिका के साथ हुआ राधिका ने उस केहर को झेला। अपने बेटे को उसने एक लायक इंसान बनाया कि उसके घर वाले भी ना बना पाते। इस कहानी से एक यह सीख मिलती है कभी भी अपने आप को कमजोर नहीं समझना चाहिए उसे स्थिति से या परिस्थिति से हमें जूझकर निकालना चाहिए क्योंकि कभी ना कभी हम इस केहर से या कोई और प्रथा से हमें हमें जूझना पड़ता यह कहानी आपको एक सिख दे अब हम इस कहानी मैं क्या हुआ

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