नई दिल्ली : यूपी में समाजवादी परिवार में मची घमासान के चलते सीएम अखिलेश सरकार की कई महत्वाकांछी योजनाएं बलि चढ़ गयीं. जिस विकास के मुद्दों को लेकर अखिलेश चुनाव लड़ने का मूड बना रहे थे वह अब नींद में आये सपने जैसा ही रह गया है. पिछले कई महीनों से सिंचाई और लोक निर्माण विभाग में काम करने वाले ठेकेदारों के पैसों का ना ही कोई भुगतान किया गया है और ना ही कोई नई योजनाएं चाचा शिवपाल और भतीजे अखिलेश की लड़ाई के चलते शुरू की जा सकीं हैं. यही नहीं मुख्यमंत्री कई जरुरी योजनाओं का उद्घाटन आनन-फानन में कर अपने ड्रीम प्रोजेक्ट मेट्रो रेल को भी नहीं शुरू करा सके हैं.
शिवपाल को पैदल करने से काम ठप
सूत्रों के मुताबिक सीएम अखिलेश ने अपने चाचा शिवपाल को आर्थिक रूप से पैदल करने के चक्कर में अपनी ही सरकार के पैरों में कुल्हाड़ी मार ली है. जिसके चलते शिवपाल से कृषि विभाग छीनते ही सरकार की कई जरुरी योजनाओं पर पानी फिर गया. इतना ही नहीं लोक निर्माण विभाग में भी कोई कामकाज नहीं हुआ, और तो और कई सड़कें बनाये जाने का प्रस्ताव भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. बताया जाता है कि सपा परिवार में छिड़े इस शीतयुद्ध के चलते ठेकेदारों का भुगतान जरूर रुक गया है. असल में जिन ठेकेदारों ने काम कराया वह शिवपाल के करीबी थे, जिनको भुगतान करने पर अखिलेश ने रोक लगा दी.
गोप के विभाग में भी लटके पड़े हैं काम
यही नहीं सरकार के मंत्री अरविंद सिंह गोप के विभाग में भी कोई कामकाज परिवार में चल रही लड़ाई के कारण नहीं हो सका. जबकि सरकार की कई महत्वाकांछी योजनाएं इसमें शामिल थीं. गौरतलब है कि सीएम अखिलेश के सबसे बड़े ड्रीम प्रोजेक्ट यमुना एक्सप्रेस वे कि भी सड़क का काम आधा अधूरा हो पाया है. हालांकि अचार संहिता से पहले यूपी में जिस तेजी के साथ सीएम अखिलेश यादव विकास की गंगा बहाते चल रहे थे. वो सभी परिवार में मची घमासान की भेंट चढ़ गयीं.
सपा में ना होता संग्राम तो अखिलेश बहा देते विकास की गंगा
यूँ तो अचार संहिता 4 जनवरी से सूबे में लागू हुई. लेकिन इससे पहले के तीन महीने में सूबे की हालत बिगड़ गयी. अगर सपा परिवार में मची घमासान नहीं हुई होती तो अखिलेश यादव बहुत सी परियोजनाओं का लोकार्पण कर सकते थे. फिलहाल चाचा शिवपाल और अखिलेश की चल रही इस लड़ाई के बाद बाप मुलायम और बेटे के बीच शुरू ही घमासान ने तो सब कुछ बंटाधार कर दिया. इस दौरान कई बड़े अफसरों के तबादले भी नहीं किये जा सके. आलम यह है कि डीएम हो या एसपी सब बेलगाम है. कोई किसी की नहीं सुन रहा है.