किसी व्यक्ति के लिए इस संसार का आधार उसका मानव शरीर ही तो है और आप कल्पना कर सकते हैं कि अगर उसके शरीर से कोई महत्वपूर्ण आर्गन ही चोरी कर लिया जाए तो उसकी क्या दशा होगी! जी हाँ, डॉक्टर्स जिन्हें भगवान कर दर्जा दिया जाता है और अस्पताल जिन्हें मंदिर कहा जाता है, वहीं से अगर इस तरह का अनैतिक, आपराधिक और घृणित कार्य होने लगे तो फिर समाज को सोचने पर विवश होना पड़ता है कि आखिर वह भरोसा करे भी तो किस पर करे? बचपन में हम लोग सुनते थे कि अमुक व्यक्ति शहर में कार्य करने गया था और वहां उसकी किडनी चोरी कर ली गयी तो समझ में नहीं आता था कि आखिर ऐसा क्यों और कैसे किया गया होगा, लेकिन अब ऐसे गिरोहों की सक्रियता, वह भी देश के नामी गिरामी अस्पतालों में देखकर समझ आ जाता है कि धन के लिए पर और बाहुबल के आधार पर ऐसे कार्यों को बखूबी अंजाम दिया जाता है. आये दिन कई अस्पतालों के बारे में कोई ना कोई विवाद सामने आता ही रहता है. अभी-अभी दिल्ली ही नहीं देश के जाने-माने अपोलो अस्पताल पर विवाद उठा है. अपोलो अस्पताल से संबंधित एक रैकेट का भंडाफोड़ हुआ है. यह रैकेट किडनी चोरो का है, जो मरीजों की आपरेशनों के बहाने किडनियां चुराकर लाखों में बेच दिया करते हैं. इस गिरोह में बाकायदा 'बिजनेस-मॉडल' का इस्तेमाल किया गया है, जिसे देखकर कोई बड़ी से बड़ी कंपनी भी भौंचक्की हो सकती है. मिली जानकारी के अनुसार, यह एक ऐसा रैकेट है जो देश के कई राज्यों के साथ साथ विदेशों से भी ताल्लुक रखता है, मतलब जहाँ बढ़िया पैसा मिल जाए, वहां किडनियां बेच दो, बेशक नैतिकता और देश का कानून इसे मना करता हो!
ऐसा नहीं है कि इस रैकेट में केवल धोखाधड़ी ही होती थी, बल्कि इससे जुड़े लोग भोले-भाले लोगों को बहला-फुसलाकर किडनी बेचने के लिए तैयार करते थे. उसके बाद दिल्ली के अपोलो अस्पताल के डॉक्टरों और कर्मचारियों की मिली-भगत से उनकी किडनी निकाली जाती थी. किडनी के डोनर को सिर्फ 3 - 3.5 लाख देने के बाद किडनी लेने वालों से 20 - 30 लाख रूपये वसूले जाते थे. गौरतलब है कि इसके लिए दिल्ली पुलिस के शक के दायरे में नामी अस्पताल अपोलो के डॉक्टर भी है. राजधानी दिल्ली के इस आधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण अस्पताल में देश के नेता-अभिनेता के साथ साथ कई बड़ी हस्तियां यहाँ इलाज करवाना अधिक पसंद करती हैं. गौर करने वाली बात यह भी है कि अपोलो हॉस्पिटल के ठीक सामने सरिता विहार थाना और साउथ ईस्ट ज़िले के डीसीपी ऑफिस हैं, लेकिन किसी को कानों-कान भी खबर नहीं हुई कि यहाँ इतने बड़े स्तर पर किडनी बेचने का काम चल रहा है. अनुमान लगाया जा रहा है कि यह रैकेट किडनी से देश और विदेशों में करोड़ों रुपए का कारोबार कर चुका है. हालाँकि, यह तो अभी एक मामला सामने आया है, लेकिन अगर सच में इसकी खोजबीन पूरे देश में सघनता से की जाए तो इसके कई मामले सामने आ सकते हैं, जो न केवल डॉक्टरी के पेशे को बदनाम करने वाले होंगे, बल्कि काली कमाई का बड़ा श्रोत भी साबित होंगे! यह भी बेहद दिलचस्प है कि इस रैकेट का पर्दाफाश एक दंपति के झगडे को सुलझाने में हुआ. सरिता विहार थाने में अपने आपसी लड़ाई की शिकायत करने आये इन जोड़ों के बीच पैसे को लेकर लड़ाई हुई थी, जो किडनी के धंधे वाले रैकेट से मिला था. पुलिस जब उनकी आपसी सुलह करने के लिए उनसे बात करने लगी, तभी उनको इस रैकेट की भनक लग गई. इस मामले में अभी तक छह मुलाजिम गिरफ्तार हो चुके हैं, लेकिन इस बात में कोई शक नहीं है कि यह सिर्फ मोहरे भर हैं और इन गिरोहों का सरदार कहीं सफेदपोशों के बीच मजे लूट रहा होगा! वैसे धंधे का मुख्य सरगना राजकुमार राव फरार बताया जा रहा है, लेकिन ऐसा मुमकिन नहीं कि बिना बड़े हाथ के यह धंधा, वह भी अपोलो जैसे हॉस्पिटल में चल रहा हो! खैर, यह जांच का विषय है और इस रैकेट के इसी पहलू को खंगालने के लिए पुलिस दिल्ली के अलावा कोलकाता, चेन्नई और कोयंबटूर में भी सक्रिय हो गई है.
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इस गोरखधंधे को बेहद सटीक ढंग से चलाया जा रहा था. इसमें फ़र्ज़ी कागजी कार्यवाही में अस्पताल के कर्मचारी भी साथ देते थे जिसमें 'डोनर को रिसीवर' का रिश्तेदार बताया जाता था. उसके बाद सिर्फ 10-15 दिन में सारा काम पूरा हो जाता था. इसमें सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि इसके लिए काम कर रहे लोगों को एक-एक लाख रूपये और डोनर को 3 से 4 लाख रूपये दिए जाते है, जबकि किडनी के रिसीवर से 20 से 25 लाख वसूले जाते हैं. ऐसे में यदि रिसीवर विदेशी हुआ तो रकम इससे भी ज्यादा होती है. जाहिर है इसके पीछे किसी बड़ी शख्सियत का हाथ होना अवश्यम्भावी है, तो इसी अस्पताल का कोई डॉक्टर इनसे जुड़ा होना ही चाहिए. पुलिस ने अपोलो अस्पताल प्रबंधन को भी सवालों की एक लंबी सूची सौंपी हैं, लेकिन अस्पताल का तंत्र इतना मजबूत है कि शायद ही उसका बाल बांका हो! वैसे भी, अपोलो अस्पताल की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि "पुलिस ने अस्पताल से एक किडनी रैकेट को लेकर मुलाकात की और असपताल ने पुलिस को सहयोग किया. अस्पताल ने यह भी कहा कि उनके यहां जो भी किडनी ट्रांसप्लांट होती है, वो सभी जरुरी डाक्यूमेंट के साथ ही की जाती है. जाहिर है अस्पताल तो कानूनी प्रकिया की दुहाई देगा ही और कहेगा ही कि उन्हें इस घटना की जानकारी नहीं थी, पर जगह-जगह पर लगे सीसीटीवी कैमरे और उनका हाई प्रोफाइल स्टाफ क्या घास छीलने के लिए है? यह बात अलग है कि पकड़े गए दोनों पीएस अपोलो के स्टॉफ नहीं है बल्कि डॉक्टरों के पीएस हैं, लेकिन यही क्या काम बड़ा सबूत है?
देखा जाय तो ऑर्गन डोनेशन के लिए जो सरकारी कानून (ह्यूमन आर्गन ट्रांसप्लांट एक्ट 1994) बनाए गए हैं, उसमें बेहद साफ़ तौर पर कहा गया है कि डोनर और रिसीवर के बीच खून का रिश्ता होना चाहिए और इसके लिए एक खास कमेटी के साथ साथ डॉक्टर्स की उपस्थिति भी अनिवार्य है. हर अस्पताल में किडनी डोनेशन के लिए बाकायदा एक असेस्मेंट कमेटी मौजूद होती है, तो किडनी ट्रांसप्लाट प्रकिया की वीडियोग्राफी कराना भी अनिवार्य है. जाहिर है, अपोलो जैसे बड़े अस्पताल में जब इन नियमों को धत्ता बता दिया गया तो फिर बाकी छोटे बड़े अस्पतालों की क्या हालत होगी, इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है. इतने कड़े कानून होने के बावजूद भी यह सब बड़ी आसानी से हो रहा है तो फिर प्रशासन पर भी शक की सूई घूम ही जाती है. आखिर, कुछ रूपयों का लालच देकर धनबल के आधार पर देश के गरीबों के साथ खिलवाड़ किया जाए तो यह लोकतंत्र के नाम पर शर्मनाक बात ही है. यह भी ध्यान देने वाली बात है कि मेडिकल क्षेत्र की कई जगहों पर नकली दवाइयां, ब्लड डोनेशन में हेरफेर भी बड़ी समस्याओं के रूप में सामने आये हैं. ऐसे में मनुष्य के अंगों की कालाबाजारी पर जितनी जल्दी और सख्त से सख्त कार्यवाही की जाए, दूसरों के लिए यह उतनी ही सटीक नजीर होगी अन्यथा मामला ठन्डे बस्ते में भेजे जाने से यह गोरखधंधा रूक-रूक, छुप-छुप चलता ही रहेगा और सिसकता रहेगा हमारा लोकतंत्र! आखिर, किडनी चोरी और धोखाधड़ी का शिकार तो बिचारा वही होता है, या फिर किसी अमीर को भी इसका शिकार होते आपने सुना है?
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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