हॉकी के मैदान पर गोल दागने वाले नेशनल खिलाड़ी तारा सिंह का नया पता है अंबाला रेलवे स्टेशन। रेलवे में खेल कोटे से उन्हें मुलाजिम होना था पर वे कुली बनने को मजबूर
नई दिल्लीः अंबाला रेलवे स्टेशन पर अगर कोई नौजवान कुली आपसे मिले और पूछे कि बाबूजी कहां सामान ले चलना है तो जरा उसका नाम जरूर पूछ लीजिएगा। हो सकता है कि सितारे गर्दिश में होने के कारण कुली बना यह शख्स तारा सिंह हो। अगर तारा सिंह मिलें तो जरा प्यार से दो लफ्ज बोल देना। तारा सिंह को अहसास करा दीजिएगा कि उनके बुरे दिन से आपको भी सहानुभूति है। बेशक आपके लफ्जों से इस शख्स की जिंदगी नहीं संवरेगी मगर गम थोड़ा जरूर हल्का हो जाएगा। यह कहानी है तारा सिंह नामके ऐसे शख्स की जिसकी स्टिक हॉकी मैदान में कभी गोल उगलती थी मगर किस्मत ने आज उसे अंबाला स्टेशन पर लाकर पटक दिया है। इस स्टेशन पर खेल कोटे से उन्हें सरकारी मुलाजिम बनकर नौकरी करनी थी मगर वे कुली के रूप में काम करने को मजबूर हैं। सिर्फ इसलिए कि बेरोजगारी और तंगहाली में कुछ भी काम करना पड़ जाए पर घर में छोटे-छोटे मासूम भूखे न रहें। उनका परिवार कभी बिना खाए रात को न सोए।
नेशनल लेवल पर लगा दी मेडल की झड़ी
तारा सिंह ने जिले से लेकर नेशनल लेवल तक के टूर्नामेंट में भाग लिए। दर्जनों मेडल जीते। कई मौकों पर टीम की अगुवाई भी की । तारा सिंह जब स्टिक लेकर मैदान में फर्राटे भरते तो विरोधी खेमे की सांसें अटक जातीं थीं। जिंदगी के कई साल हॉकी को देने के बाद भी इस खिलाड़ी की जिंदगी नहीं संवर सकी।
झूठा निकला सरकारी नौकरी का वादा
नेशनल लेवल पर अच्छे प्रदर्शन के बाद सरकार ने तारा सिंह को खेल कोटे से तृतीय श्रेणी की नौकरी देने का वादा किया। तब से तारा सिंह सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाते रहे। मगर सरकार का वादा झूठा निकला। नौकरी नहीं मिली तो जीवनयापन का कोई रास्ता भी नहीं बचा। धीरे-धीरे परिवार भुखमरी की कगार पर पहुंच गया। बच्चे भूखे रहने लगे तो तारा सिंह ने अंबाला स्टेशन पर कुली का काम शुरू कर दिया। जो भी दिहाड़ी मिलता है अब उसी से बीवी और बच्चों का पेट पालते हैं।
नहीं बताते कि मैं कभी खिलाड़ी था
नेशनल लेवल के खिलाड़ी होने के बाद कुली का काम करने को मजबूर हुए तारा सिंह अब किसी ने नहीं बताते कि वे हॉकी खिलाड़ी रहे हैं। उनका कहना है कि इससे लोग उनसे तमाम सवाल करने लगते हैं। मसलन, कुली कैसे बन गए, अरे तुम्हें तो वहां होना चाहिए था, नौकरी क्यों नहीं मिली। अब तारा सिंह किसको-किसको यह जवाब देता फिरें। इसलिए अब वे अपने अतीत से किसी को रूबरू नहीं कराना चाहते।
प्रैक्टिस कराने पर बच्चे कहते हैं कि पापा हॉकी खेलने से क्या होगा
तारा सिंह भले ही हॉकी के उम्दा खिलाड़ी होकर भी तंगहाली में जी रहे हैं फिर भी उनका इस खेल से बेइंतहा प्यार है। अपने बच्चे को हर शाम मैदान में कड़ी प्रैक्टिस कराने ले जाते हैं। कभी-कभी उनका मासूम बच्चा पूछ लेता है कि पापा हॉकी खेलने से क्या होगा, आप भी खेलते थे तो तारा सिंह की आंखों से आंसू निकलने लगते हैं।
क्या सरकार जागेगी
देश में क्रिकेट के आगे अन्य सभी खेलों के खिलाड़ी एकसमय के बाद गुमनामी में खो जाते हैं। नौकरी नहीं मिलती तो वे छोटे-मोटे काम कर परिवार का पेट पालने को मजबूर होते हैं। ऐसे में नेशनल लेवल के हॉकी खिलाड़ी ताराचंद का कुली बनना देश के सिस्टम को शर्मसार करता है। क्या हरियाणा राज्य सरकार या केंद्र सरकार ऐसे खिलाड़ियों का कुछ भला कर सकती है। यह सवाल हर किसी के मन में उठता है जब वह इस खिलाड़ी को अंबाला स्टेशन पर लोगों के सामान उठाते देखता है।
भूखे बच्चों को रोटी खिलाने के लिए तंगहाली में कुली बन गया देश का यह नेशनल हॉकी खिलाड़ी