
देहरादून: उत्तराखंड में HIV/AIDS की रोकथाम पर हर बरस करोड़ों खर्च करने के बाद भी एचआईवी/एड्स के साथ जी रहे लोगों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। प्रदेश में 2002 में 23 लोग ही इसकी चपेट में आए थे, जबकि इस समय 2786 एड्स रोगियों का इलाज चल रहा है। इनमें गर्भवती महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं। हालांकि इनमें कुछ लोग उत्तर प्रदेश और नेपाल के भी हैं, लेकिन पिछले सात माह में ही नए रोगियों की संख्या 499 तक पहुंच गई है।
देहरादून जो कि आर्थिक रूप से समृद्ध ज़िला है वो 207 रोगियों के साथ पहले स्थान पर है, वहीं नैनीताल 80 लोगों के साथ दूसरे नंबर पर है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि प्रदेश में एंटी रेट्रो ट्रीटमेंट (एआरटी) केंद्रों की स्थापना से लेकर पिछले माह तक इस बीमारी से 882 व्यक्तियों की मौत हो चुकी है। अभी तक एड्स से 48 बच्चों की भी जान जा चुकी है। यह सही है कि प्रभावितों को रोगमुक्त नहीं किया जा सकता, लेकिन समय-समय पर एंटी रेट्रो वायरल दवाएं देकर और काउंसलिंग कर उनकी आयु बढ़ाई जा सकती है। ऐसे लोगों से सामाजिक भेदभाव आम बात है, लेकिन सरकार भी उन्हें गंभीरता से नहीं ले रही। राज्य निर्माण के 16 साल बाद भी एचआईवी/एड्स के साथ जी रहे लोगों को सरकार एआरटी केंद्र तक हर माह आने-जाने की निशुल्क सुविधा नहीं दे सकी है, जबकि स्वास्थ्य मंत्री सुरेंद्र सिंह नेगी ने पिछले साल ही यह सुविधा देने की बात कही थी।
सरकार के पास भेजा निशुल्क सुविधा देने का प्रस्ताव
राज्य एड्स नियंत्रण सोसाइटी के एडी गगनदीप लूथरा ने कहा कि इस आशय का प्रस्ताव सरकार के पास भेजा गया है, लेकिन अभी तक मंज़ूरी नहीं मिली है। जांच की सुविधा प्रदेश में दून अस्पताल, सुशीला तिवारी राजकीय मेडिकल कॉलेज, हल्द्वानी और जिला अस्पताल पिथौरागढ़ में है। इन तीनों केंद्रों पर 5318 लोगों का पंजीकरण हो चुका है, जबकि 2786 को एआरटी उपचार दिया जा रहा है। पिथौरागढ़ में नेपाल के संक्रमित लोग भी इलाज करा रहे हैं, वहीं एसटीएच में उत्तर प्रदेश के लोग भी उपचार कर रहे हैं। हालांकि पर्वतीय क्षेत्रों में घर से दूरी अधिक होने की वजह से भी कई लोग जांच कराने के लिए तय सेंटर पर नहीं पहुंच पाते। इसके कारण भी यह मर्ज बढ़ रहा है।
गगनदीप लूथरा ने बताया प्रदेश में एड्स रोगियों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानक के मुताबिक एचआईवी के विषाणु को मल्टीप्लाई होने से रोकने के लिए उत्तराखंड में भी अब 500 से नीचे ब्लड सेल्स काउंट होने पर रोगियों को दवाइयां दी जा रही हैं। पहले 350 काउंट होने पर दवाएं दी जाती थी। लूथरा के मुताबिक समय पर दवा नहीं मिलने पर ये वायरस सीडी-4 कोशिकाओं को नष्ट कर डालते हैं, जिससे मरीज की जान खतरे में पड़ जाती है।
चौंका रहे चमोली और चंपावत के आंकड़े
उत्तराखंड में एकीकृत एवं परीक्षण केंद्र में एचआईवी पाजिटिव के साथ जीने वाले पिछले वित्तीय वर्ष में चमोली में जहां 3 रोगी दर्ज हुए थे, वहीं इस वित्तीय वर्ष में अक्तूबर में यह संख्या बढ़ 21 हो चुकी है। दूसरी तरफ पिछले सात माह में चंपावत में ऐसे लोगों की संख्या 10 दर्ज की गई है, जबकि पिछले वित्तीय वर्ष में 9 पंजीकृत हुए थे। राहत भरी बात यह है कि अल्मोड़ा, बागेश्वर, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी आदि जिलों में अपेक्षाकृत कम मरीज दर्ज किए गए हैं। वित्तीय वर्ष 2015-16 में प्रदेश में एचआईवी पॉजिटिव मरीजों की संख्या 729 दर्ज की गई थी। यूपी से सटे हरिद्वार में विगत वित्तीय वर्ष 76 लोग एचआईवी पॉजिटिव मिले थे, वहीं पिछले सात माह में ही 76 लोग इसकी चपेट में आए गए हैं। हालांकि सुकून देने वाली बात यह है कि ऊधमसिंह नगर जिले में प्रभावितों की संख्या में कमी आई है। जिले में पिछले वित्तीय वर्ष में 79 एचआईवी पाजिटिव थे, वहीं इस वित्तीय वर्ष में अक्तूबर तक यह आंकड़ा 46 तक ही पहुंचा है।
35 गर्भवती महिलाएं भी चपेट में आईं
अप्रैल से अक्तूबर तक यानी पिछले सात माह में प्रदेश में 48062 महिलाओं की रक्त की जांच हुई, जिनमें 35 महिलाएं एचआईवी पॉजिटिव हैं। वहीं 50713 अन्य लोगों की जांच में 464 लोगों में एचआईवी का पता लगाया गया। वित्तीय वर्ष 2015-16 में एचआईवी पॉजिटिव के साथ जीने वाली गर्भवती महिलाओं की संख्या 46 थी, जो ऐसी महिलाओं की संख्या 2012-13 में 54 थी। कहा जा सकता है कि असुरक्षित यौन संबंधों से गर्भवती महिलाएं भी एड्स की शिकार बन रही हैं।
आंकड़ों पर सवाल
उत्तराखंड राज्य एड्स नियंत्रण समिति की ओर अमर उजाला को भेजे गए आंकड़े में प्रदेश में एआरटी केंद्रों की स्थापना से लेकर पिछले माह तक इस बीमारी से 882 व्यक्तियों की मौत होने की जानकारी दी गई है, जबकि यूएसएसीएस ने पिछले साल ही सूचना अधिकार अधिनियम के तहत एआरटी केंद्रों की स्थापना से लेकर अक्तूबर तक एआरटी से पहले और एआरटी के दौरान एड्स से कुल 1013 लोगों की जान जाने का खुलासा किया था। इनमें 703 पुरुष, 258 महिला, 4 टीएस/टीजी और 48 बच्चे शामिल थे। ऐसे में सवाल उठता है कि समिति की ओर से कहीं तथ्य छुपाए तो नहीं जा रहे हैं।