नई दिल्ली : मई 2012 में कालेधन पर बनी सीबीडीटी की समिति ने जो रिपोर्ट वित्त मंत्रालय को भेजी थी उसमे साफ़ कहा गया था कि विमुद्रीकरण से कालेधन का स्थाई समाधान नही हो सकता। 8 नवम्बर को लागू की गई मोदी सरकार की नोटबंदी के बाद आये आंकड़े कुछ ऐसा ही कह रहे हैं। नोटबंदी लागू करने के पीछे सरकार का सबसे बड़ा मकसद कालेधन को बाहर लाना था। सरकार का कहना था कि इससे सिस्टम में 500 और 1000 के नोटों में छिपी 3 से 4 लाख करोड़ की ब्लैकमनी बाहर आएगी।
नोटबंदी के जरिये जो पैसे बैंकों में आये उनके ताज़ा आंकड़ों ने सरकार के सामने बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है। आरबीआई के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार सिस्टम में कुल 14.5 लाख करोड़ की रकम के बराबर 500 और 1000 के नोट थे और उनमे से 11 लाख करोड़ बैंकों में आ चुके हैं। जिस गति से बैंकों में लोग पैसे जमा कर रहे हैं उसे लग रहा है कि आने वाले 30 दिसंबर तक कुल रकम 15 लाख तक भी पहुँच सकती है। आर्थिक जानकारों का मानना है कि इससे एक बात तय हो गई है कि लोगों ने कालेधन को सफ़ेद करने का रास्ता निकाल लिया है। यानी जो कालधन लोगों के पास था वह अब वाइट सिस्टम में आ गए हैं।
इनकम टैक्स विभाग के पास लोग नही
आंकड़ों की माने तो कालेधन को सफ़ेद करने वालों को इसलिए भी नही पकड़ा जा सका क्योंकि इनकम टैक्स विभाग के पास मैनपावर की भी कमी है। इनकम टैक्स विभाग में 30 फीसदी पद अभी खाली हैं। इनकम टैक्स विभाग को 70000 लोगों की जरूरत है लेकिन अभी उसके पास सिर्फ 48000 कर्मचारी हैं।