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बाल काव्य

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 (१)  आहट हुई; हुई फिर "कोई है ?" की वही पुकार,  कुशल करें भगवान कि आया फिर वह मित्र उदार ।  चरणों की आहट तक मैं हूँ खूब गया पहचान,  सुनकर जिसे कांपने लगते थर-थर मेरे प्रान ।  मैं न डरूँगा पडे अग

सदी नाम के अंग्रेजी-कवि ने यह यश पाया है,  पानी का बहना कविता में जिन्दा दिखलाया है ।  उस रचना को देख एक दिन अकबर का मन डोला,  फिर बहाव पर उर्दू की ताकत को उनने तोला ।     बहुत क्रियापद जुटा दिखा

 कहते हैं, दो नौजवान  क्षत्रिय घोड़े दौड़ाते,  ठहरे आकर बादशाह के  पास सलाम बजाते।     कहा कि ‘‘दें सरकार, हमें भी  घी-आटा खाने को,  और एक मौका अपना कुछ  जौहर दिखलाने को।’’     बादशाह ने कहा

तुम रजनी के चाँद बनोगे ?  या दिन के मार्त्तण्ड प्रखर ?  एक बात है मुझे पूछनी,  फूल बनोगे या पत्थर ?     तेल, फुलेल, क्रीम, कंघी से  नकली रूप सजाओगे ?  या असली सौन्दर्य लहू का  आनन पर चमकाओगे ?

तीसरे पहर का समय था। राम और सीता कुटी के सामने बैठे बातें कर रहे थे कि एकाएक अत्यन्त सुन्दर हिरन सामने कुलेलें करता हुआ दिखायी दिया। वह इतना सुन्दर, इतने मोहक रंग का था कि सीता उसे देखकर रीझ गयीं। ऐसा

शूर्पणखा के दो भाई तो मारे गये, किन्तु अभी दो और शेष थे, उनमें से एक लङ्का देश का राजा था। उस समय में दक्षिण में लंका से अधिक बलवान और बसा हुआ कोई राज्य न था। रावण भी राक्षस था, किन्तु बड़ा विद्वान्,

कई दिन के बाद तीनों आदमी पंचवटी जा पहुंचे। परशंसा सुनी थी, उससे कहीं ब़कर पाया। नर्मदा के दोनों ओर ऊंचीऊंची पहाड़ियां फूलों से लदी हुई खड़ी थीं। नदी के निर्मल जल में हंस और बगुले तैरा करते थे। किनारे

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