नई दिल्ली : सरकार अगर चाहे तो क्या नहीं कर सकती है। अपने खिलाफ तनिक भी चूं-चपड़ करने वाले के खिलाफ एक इशारा हो जाए, तो पुलिस अपना सारा कामधाम छोड़कर उसे बर्बाद कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट के दर्जनों आदेशों को धता बताते हुए ऐसे षडयंत्र रच सकती है, जिसमें न्यायपालिका ही चक्कर खा जाए। सरकार अपनी साजिश में चाहे तो रंक को राजा, या फिर राजा को रंक बना सकती है। किसी भी होनहार उद्यमी को तबाह कर सकती है। ऐसे हालात पैदा कर सकती है, जिसमें हारे प्रताडि़त व्यक्ति के पास केवल आत्महत्या करने से अलावा कोई रास्ता तक नहीं बच सके।
कंपनी का तियां-पांचा उधेड़ डाला
मेरी बिटिया डॉट कॉम के मुताबिक दिल्ली में यही तो हुआ। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वाहनों को सीएनजी मोटरों में बदलने वाली एक कम्पनी पर दिल्ली की पूर्ववर्ती शीला दीक्षित सरकार इतनी खफा हुई, कि इस कम्पनी का तियां-पांचा तक उधेड़ डाला। फर्जी मामला दर्ज करने इस कम्पनी और उससे जुड़े ऐसे-ऐसे लोगों को आपराधिक मामलों में फंसा दिया, जो कई बरस पहले ही इस कम्पनी से हट चुके थे। लेकिन चूंकि शीला दीक्षित सरकार का इशारा था, इसलिए पुलिस ने इस मामले में जी-तोड़ साजिशें बुनीं। और लगातार 12 बरसों तक निर्दोष लोगों को थाना से लेकर कचेहरी तक के हजारों चक्कर लगवा दिये।
कई बड़े पत्रकार निदेशक थे कंपनी के
यह कहानी है रेयर फ्यूल कम्पनी की। इस कम्पनी में वरिष्ठ पत्रकार संतोष भारतीय, रीना जरीन, शीतल पी सिंह और यशवीर सिंह समेत कई लोग निदेशक थे। यह कम्पनी वाहनों पर सीएनजी मोटर पर काम कर रही थी। इसी बीच इस कम्पनी को 60 करोड़ रूपयों का काम मिला। लेकिन इसी बीच कम्पनी में कामधाम को लेकर विवाद हुआ। हुआ यह कि शीतल सिंह वगैरह निदेशकों ने कम्पनी को मिले काम पर सरकारी हस्तक्षेप पर सवाल किये थे। बहरहाल इन झगड़ों से बचने के लिए शीतल पी सिंह ने कम्पनी से इस्तीफा दे दिया। यह सन-2000 की बात है। लेकिन इन निदेशकों के बीच तनाव भड़क चुका था।
सरकार ने बंद कर दी थीं किश्ते देना
इसके बाद कम्पनी ने एक कम्पनी एचडीएफसी बैंक से लोन पर हासिल की, जिसे निदेशक यशवीर सिंह की सिपुर्दगी में दे दी गयी। इस कम्पनी से अलग किये गये, लेकिन यशवीर ने कम्पनी की यह कार अपनी ही कस्टडी में रखी। नतीजा, कम्पनी को जब कार की वापसी यशवीर ने नहीं की तो कम्पनी ने उस कार की किश्तें बैंक को देना बंद कर दिया। बैंक ने कम्पनी को कई महीनों तक नोटिसें भेजने के बाद अगस्त-03 में बैंक की एजेंसी ने वह कार सीमापुरी थाना क्षेत्र में जब्त कर ली।
बैंक ने कार को बताया अपनी संपत्ति
इस पर यशवीर ने इस मामले को बैंक, एजेंसी आदि पर डकैती की अर्जी थाने पर दे दी। पूछतांछ के दौरान बैंक ने सुप्रीम कोर्ट के पचासों फैसलों की प्रतियां देते हुए पुलिस को बता दिया कि किसी भी कार की मालकियत तब तक ट्रांसफर नहीं हो सकती, जब तक लोन की पूरी अदायगी न हो जाए। और ऐसा न होने तक ऐसी कार बैंक की ही सम्पत्ति मानी जाती है।
दिल्ली पुलिस ने 14 महीनों तक नहीं की कार्रवाई
इस मामले पर 14 महीनों तक दिल्ली पुलिस ने कोई भी कार्रवाई नहीं की। लेकिन अचानक दिल्ली के कुछ बड़े पत्रकारों ने इस मामले पर शीला दीक्षित सरकार पर हुई नुक्ताचीनी को मुद्दा बनाते हुए कम्पनी और खासकर शीतल पी सिंह के खिलाफ नट-बोल्ट कसना शुरू किया। कोशिशें रंग लायीं, और अक्टूबर-04 को दिल्ली पुलिस ने यशवीर सिंह की अर्जी पर मुकदमा दर्ज कर अदालत में चार्जशीट दाखिल कर दी। कहने की जरूरत नहीं कि पुलिस की यह कवायद केवल राजनीति क षडयंत्रों पर ही काम कर रही थी। सरकार के इशारे पर मामले की जांच आर्थिक अपराध शाखा को सौंप दिया। हैरत की बात है कि इस मामले फाइल ईओडब््ल्ूयू में चार आईपीएस अफसरों, 7 डिप्टी एसपी और 14 इंस्पेक्टरों की निगाहों से गुजरी, लेकिन किसी भी पुलिस अफसर ने इसमें यह तथ्य नहीं देखने की जरूरत समझी, कि यह मामला यह सिरे से ही बेबुनियाद है।