दर्जनों नामों के उछलने और 'लार्जर देन लाइफ' की इमेज बना चुके रघुराम राजन के उत्तराधिकारी की खोज इतनी भी आसान नहीं थी और इसके लिए मोदी सरकार ने माथापच्ची भी खूब की. अब पिटारा खुल गया है और उस पिटारे से जो नाम निकला है, वह 'उर्जित पटेल' का नाम है. अब आरबीआई के डिप्टी गवर्नर उर्जित पटेल भारतीय रिजर्व बैंक के 24वें गवर्नर होंगे. इसकी घोषणा होते ही आरबीआई के नए गवर्नर पर कई हफ़्तों से चल रही अटकलबाजियां ख़त्म हो गई हैं. उर्जित पटेल खुद गवर्नर राजन के भरोसेमंद रहे हैं, तो लंदन स्कूल इकोनॉमिक्स से स्नातक, ऑक्सफोर्ड से एम. फिल करने के साथ-साथ येल यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र (Reserve Bank of India, Governor Urjit Patel, Raghuram Rajan, Narendra Modi, Arun Jaitley, Hindi Article, Indian Economy) से पीएचडी किया हुआ है. विदेशी पढ़ाई पढ़ने पर इन दिनों सोशल मीडिया पर चुटकुले भी खूब गढ़े जा रहे हैं कि भारतीय पढाई शायद आरबीआई का गवर्नर बनने के लिए पर्याप्त नहीं है. खैर, इस चुटकुले में कुछ सच्चाई भी हो सकती है, जो हमारी शिक्षा व्यवस्था के लिए शर्मनाक भी है. वैसे उर्जित के अनुभव की बात करें तो बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप, रिलायंस इंडस्ट्रीज, आईडीएफसी, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के कार्यो में अपना योगदान कर चुके उर्जित पटेल 1998 से 2001 के बीच वित्तमंत्रालय आर्थिक मामलों के विभाग में सलाहकार भी रहे हैं. उनके पास ऊर्जा, बुनियादी ढांचों और वित्त क्षेत्र के कार्यों में दो दशक का अनुभव है. कहते हैं एक लंबा प्रशासनिक अनुभव रखने वाले उर्जित अपनी इसी खूबी के चलते दुसरे उम्मीदवारों पर भारी पड़ गए, खासकर मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविन्द सुब्रमण्यम पर.
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अरुण जेटली कहीं न कहीं अरविन्द सुब्रमण्यम की तरफ झुके हुए थे, जिसका इशारा उन्होंने पिछले दिनों सुब्रमण्यम स्वामी को बैकफुट पर लाकर कर दिया था. मोदी ने अरविन्द के नाम पर विचार भी किया, किन्तु एक तो उनका भारतीय प्रशासन में कम अनुभव (अक्टूबर 2014 से) और दुसरे केंद्र सरकार फिर रघुराम राजन जैसे किसी हाई-प्रोफाइल व्यक्ति को आरबीआई की जिम्मेदारी नहीं सौंपना चाहती थी. बताते चलें कि मोदी ने लो प्रोफाइल रहने और लंबे प्रशासनिक अनुभव के कारण उर्जित के नाम पर हरी झंडी दिखला दी. वैसे, सोशल मीडिया में उनके रिलायंस इंडस्ट्रीज से जुड़े होने और नाम के साथ 'पटेल' लगे होने पर भी खूब चटखारे लिए जा रहे हैं. हालाँकि, उर्जित की अनुभवी ऊर्जा पर किसी को शक नहीं होना चाहिए और इसी अनुभव (Hindi Article, Inflation, Bad Loan, Interest rates, Indian Banking System, Raghuram Rajan, Urjit Patel) के कारण नए गवर्नर से बाजार को बहुत उम्मीदे हैं, जो खुद पटेल के लिए भी किसी चुनौती से कम नही है. रघुराम राजन बेशक सार्वजनिक मंचों से सरकार की नीतियों पर किन्तु-परंतु करते रहे थे, पर उनकी यह दबंग वाली छवि रिजर्व-बैंक के रोल को सुचारू रूप से चलाने में काफी कारगर रहीं. अपनी आलोचना के बावजूद राजन बेहद मजबूती से 'महंगाई दर' को नियंत्रित करने पर अडिग रहे, बेशक उन पर विकास दर को लेकर कुछ सवाल ही क्यों न उठे हों! इसके अतिरिक्त, राजन ने जिस साफगोई और हिम्मत से भारतीय अर्थव्यवस्था को 'अंधों में काना राजा' कहने का साहस किया, उससे हमें अपनी असलियत ही पता चलती है. बाद में भारतीय अर्थव्यवस्था के आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर बताने के आरोप भी लगे, जिसने राजन के रूख को सही साबित किया. इसके अतिरिक्त, सरकारी बैंकों के 'बैड लोन' पर जिस कड़ाई से राजन ने सवाल उठाये, उससे इन बैंकों को लीपापोती करना का अवसर नहीं मिल सका.
सरकारी बैंकों के लोन पहले भी डूबते रहे हैं, किन्तु इस बार जैसे यह मुद्दा बना, वैसा पहले कभी नहीं हुआ था. शायद इसीलिए कई सरकारी बैंकों के प्रमुख भी राजन से छिटके-छिटके से रहे, पर विजय माल्या जैसों पर लोन-वसूली के दबाव में रिजर्व बैंक के रोल को अनदेखा नहीं किया जा सकता. ऐसे तमाम कार्य हैं, जो रघुराम राजन को भारतीय अर्थव्यवस्था में एक 'वैद्य' साबित करते हैं और वर्तमान में बड़ा सवाल यही है कि रिजर्व बैंक के नए गवर्नर क्या आर्थिक मुद्दों पर अपना रूख कड़ाई से रख पाएंगे? अगर हाँ, तब तो उर्जित की ऊर्जा का लाभ देश को मिलेगा, अन्यथा सरकार और वित्तमंत्री की हाँ में हाँ मिलाने से देश का भला कतई नहीं होने वाला! वैसे, इतनी जल्दी कोई आंकलन ठीक नहीं है और उर्जित की प्रतिभा (Reserve Bank of India, Governor Urjit Patel, Raghuram Rajan, Narendra Modi, Arun Jaitley, Hindi Article, Growth of India) को भरपूर मौका भी मिलना चाहिए. यूं तो मृदुभाषी पटेल एकांत पसंद व्यक्ति हैं, जो किसी से ज्यादा बातचीत नही करते हैं, तो बड़ी- बड़ी मीटिंग करने की बजाय अकेले में कार्य करना पसंद करते हैं. जाहिर है, जब आप आरबीआई प्रमुख के पद पर होते हैं तो आपको काफी हद तक आगे आकर चीजों को स्पष्ट करना पड़ता है. वैसे, महंगाई को काबू करनेवाली मॉनिटरी पॉलिसी में महंगाई का नया मानक तय करने के साथ ही कई दूसरे बदलाव लाने में भी उर्जित का महत्वपूर्ण रोल बताया जाता है. गवर्नर बनने का बाद भी उनके सामने बड़ी चुनौती महंगाई ही होगी, तो अपने पूर्ववर्ती राजन के विपरीत विकास दर को लेकर भी उन्हें पुराने रूख में कुछ बदलाव करना पड़ सकता है. अगर मौजूदा हालात की बात करें तो अभी कच्चे तेल की कीमतें कम हैं, तो देश का चालू खाता घाटा भी काफी हद तक नियंत्रित है. ऐसे ही, खाने-पीने की चीजों में महंगाई के बढ़ने से उपभोक्ता मूल्य महंगाई दर 6% की ऊपरी सीमा पर करते हुए बीती जुलाई में 6.07% पहुच गया है.
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ऐसे में नए गवर्नर को महंगाई के साथ ब्याज दरों पर नियंत्रण रखने की बड़ी जिम्मेदारी होगी. हालाँकि, अब सिर्फ गवर्नर ब्याज दरों में उत्तर-चढ़ाव का फैसला अकेले नहीं ले सकता है, बल्कि एक छह सदस्यीय समिति के सहयोग से ऐसा किये जाने की बात तय हो चुकी है. हालाँकि, कई लोग इसे गवर्नर के अधिकारों में कटौती मानते हैं, किन्तु यह इतना बड़ा निर्णय है कि सरकार द्वारा छः सदस्यीय समिति बनाने का फैसला उचित है. इस बीच सरकार और रिजर्व बैंक की प्राथमिकता को ध्यान में रखते हुए भारतीय स्टेट बैंक ने अपने सहयोगी बैंको के साथ विलय करने का निर्णय लिया है. इन बैंको के विलय के लिए जो रोडमैप तैयार हुआ है, उसमें राजन का विशेष योगदान है, तो इसको आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी उर्जित पटेल पर होगी. बदली परिस्थितियों में देखना दिलचस्प होगा कि उर्जित पटेल इस बैंकिंग उद्योग (Hindi Article, Inflation, Bad Loan, Interest rates, Indian Industries and Government) को कौन सी दिशा प्रदान करते हैं. इसी क्रम में यदि डॉलर और रुपए की तुलना की जाय तो डॉलर 67 रुपए से ऊपर जा चुका है और आने वाले दिन भी रुपया के लिए कुछ ठीक नही होने की बात कही जा रही है. ऐसे में आयात-निर्यात पर पड़ने वाले इसके प्रभावों से संतुलन बिठाना भी एक बड़ी जिम्मेदारी होगी. इसी क्रम में, सितंबर और नवंबर के बीच होने वाली एफसीएनआर (फॉरेन करंसी नॉन रेसीडेंट) डिपॉजिट भी रुपया को कमजोर कर देगा. ऐसे में रूपये की कीमत को संभालना एक महत्वपूर्ण चुनौती साबित होगी, इस बात में दो राय नहीं! इन तकनीकी विषयों के अतिरिक्त, सबसे महत्वपूर्ण है उर्जित पटेल का राजनीति क और व्यावसायिक हस्तियों से तालमेल करना. हालाँकि, यह सारे कार्य रूटीन के अंतर्गत ही आएंगे और उम्मीद की जानी चाहिए कि इसमें नए गवर्नर को कुछ खास परेशानी नहीं आएगी. देखा जाय तो पटेल जुलाई 2013 से रिजर्व बैंक में कार्यरत हैं और इसलिए बैंक और भारतीय अर्थव्यवथा के विभिन्न पहलुओं से भी अच्छी तरह वाकिफ हैं.
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इसके अतिरिक्त, वर्तमान गवर्नर राजन के साथ मिलकर उन्होंने रिजर्व बैंक सम्बंधित हर काम को किया है, तो इस बात की सम्भावना प्रबल हो गयी है कि राजन के अधूरे काम भी पूरे होंगे! राजन ने जब आरबीआई प्रमुख की अपनी भूमिका आगे नहीं बढ़ाने की घोषणा की थी, तब उन्होंने यह उम्मीद भी जताई थी कि सुधारों का कार्य आगे बढ़ते रहना चाहिए और इसके लिए उनके बढ़िया जूनियर रहे उर्जित पटेल से बेहतर और कौन हो सकता था. हालाँकि, इस बीच वित्तमंत्री अरुण जेटली (Reserve Bank of India, Governor Urjit Patel, Raghuram Rajan, Narendra Modi, Arun Jaitley, Hindi Article, RSS, BJP Support) के साथ पटेल का तालमेल कैसा रहता है, यह जरूर देखने वाली बात होगी, क्योंकि इस बात की सम्भावना भी प्रबल है कि उर्जित पटेल सीधे-सीधे प्रधानमंत्री के साथ तारतम्य बनाये रखेंगे. वैसे सुब्रमण्यम स्वामी का रिएक्शन अभी आया नहीं है, तो संघ का विश्वास भी उर्जित की ऊर्जा को बढ़ाएगा ही. बहरहाल, 3 सितंबर से एक्शन में आने को तैयार उर्जित के कार्यों पर न केवल भारत के आम-ओ-खास की निगाह जमी रहेगी, वरन विश्व भर की आर्थिक नीतियों से उत्पन्न प्रभाव और उसमें भारतीय हित तलाशने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी उन्हीं के अनुभवी कन्धों पर टिकी रहने वाली है!