वैसे तो बुंदेलखंड अपने दुर्भाग्य के लिए हमेशा ही चर्चा में बना रहता है, किन्तु पिछले दिनों पानी से भरी ट्रेन इस क्षेत्र में पहुँचने की खूब चर्चा रही जो अंततः खाली निकली. इस बात को लेकर पहले अफवाह फैलाई गयी कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बुंदेलखंड में पानी पहुंचा पाने में असफल रहे हैं, लेकिन जब अखिलेश सबके सामने आए और उन्होंने कहा कि केंद्र से सिर्फ खाली ट्रेन आयी है, जिसमें पानी भरकर पहुंचा पाने में यूपी सरकार सक्षम है, तब बात साफ़ हुई. अगर सच कहा जाए तो देश के सबसे बदहाल क्षेत्रों में बुंदेलखंड शुमार है, जहाँ से रोज पलायन हो रहे हैं. हालाँकि, अखिलेश यादव विभिन्न परियोजनाओं के माध्यम से इस क्षेत्र पर अन्य क्षेत्रों के मुकाबले सर्वाधिक ध्यान दे रहे हैं, पर समस्या कहीं ज्यादा विकराल है. वास्तव में बुंदेलखंड की दुर्गति एक त्रासदी बन चुकी है, जिसके लिए विभिन्न सरकारों के साथ समाज के लोग भी दोषी हैं जो जल-प्रबंधन के सर्वकालिक उपायों की अवहेलना बेधड़क करते रहे. पर इस मामले में अखिलेश यादव की तारीफ़ करनी होगी, जो लम्बे समय के उपायों पर भी ज़ोर दे रहे हैं पर उनकी मजबूरी है कि उन्हें तात्कालिक उपायों पर भी ज़ोर देना ही है. आखिर मुसीबत में फंसे लोगों की तुरंत मदद भी तो जरूरी है अन्यथा कोई भूख से बिलखता रहे और उसके लिए हम 'नौकरी' की बात करें तो यह व्यवहारिकता न ही होगी. इस लिहाज से यूपी सीएम ने इस क्षेत्र को लेकर कई जरूरी कदम उठाये हैं, जिनकी खुले मन से तारीफ़ करनी चाहिए.
हालाँकि, अखिलेश यादव अक्सर केंद्र की वर्तमान सरकार का इस इलाके के प्रति भेदभाव का रवैया अख्तियार करने का आरोप लगाते रहे हैं, जो तथ्यों के आधार पर उचित भी जान पड़ता है. इस कड़ी में कहना उचित होगा कि राज्य सरकार जब सूखे से प्रभावित इलाकों में राहत कार्य के लिए केंद्र से धन की अपेक्षा कर रही थी तो पहले पैसे देने में लेटलतीफी हुई और जब देने का वादा किया गया तो वो बुंदेलखंड को राहत के बजाय ऊंट के मुंह में जीरा के समान साबित हुआ. पर इस मामले में अखिलेश सरकार की तारीफ़ करनी होगी, जिसका असल असर मानसून के बाद अवश्य ही दिखेगा. पूरा मामला हम कई कड़ियों में समझने का प्रयत्न कर सकते हैं, तो प्रदेश सरकार की इस क्षेत्र के सम्बन्ध में विभिन्न योजनाओं का ज़िक्र करना भी जरूरी हो जाता है. इस क्षेत्र में भूख की समस्या भी बड़े स्तर पर रही है तो इसके समाधान के लिए निःशुल्क समाजवादी सूखा राहत सामग्री का वितरण एक महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है. इस योजना के अंतर्गत बुंदेलखंड में पीड़ित लोगों को उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से 10 किलो आटा, पांच किलो चावल और 5 किलो चने की दाल, 25 किलो आलू, 5 लीटर सरसो का तेल और 1 किलो शुद्ध देसी घी के साथ एक किलो मिल्क पाउडर हर महीने उपलब्ध कराया जा रहा है. आंकड़ों के अनुसार, इसका लाभ यहां 2 लाख 30 हजार अंत्योदय कार्ड धारकों को मिल रहा है. मुख्यमंत्री ने यह भी आदेश दिया है कि भुखमरी से यदि किसी व्यक्ति की मौत होती है तो सम्बन्धित जिलाधिकारी की व्यक्तिगत जिम्मेदारी होगी.
जाहिर तौर पर भूखमरी पर नौकरशाही की लगाम खींचने की जरूरत सर्वाधिक थी, ताकि अधिकारी एसी कमरों में बैठने की बजाय ग्राउंड पर जायजा लेने निकलें अन्यथा कई बार तो कागज़ों पर ही राहत सामग्री का वितरण हो जाता है और पता चलता है कि जरूरतमंदों के यहाँ कुछ पहुंचा ही नहीं! इसी कड़ी में, उत्तर प्रदेश सरकार ने सूखे की समस्या से जूझ रहे किसानों की राहत हेतु कृषक दुर्घटना बीमा योजना की राशि को 2 लाख से बढ़ा कर 5 लाख रुपये कर दिया है. जाहिर है इसका सर्वाधिक फायदा बुंदेलखंड को ही मिलने वाला है. प्रयासों की इसी कड़ी में सिंचाई-व्यवस्था दुरुस्त करने पर अखिलेश सरकार सजग दिखती है. चूंकि, यहाँ पर भूगर्भ जलस्तर काफी नीचे चला गया है अनदेखी से सिंचाई के पुराने साधन-संसाधन भी बर्बाद हो गए हैं. ऐसे में बुंदलखंड में सिंचाई व्यवस्था को सक्षम बनाने के लिए 420 करोड़ की योजनाएं स्वीकृत की गई हैं. ऐसे ही परंपरागत उपायों की ओर लौटते हुए अखिलेश सरकार की जल-संचय योजना भी बेहद महत्त्व की है. इस योजना के तहत करीब 100 तालाबों के पुनर्जीवन के कार्य को तत्काल प्रभाव से शुरू करने का निर्देश दिया गया है, और ग्राउंड पर भी मुख्यमंत्री के इस महात्वाकांक्षी प्रोजेक्ट को लेकर युद्ध स्तर पर काम हो रहे हैं. जो आंकड़ा बताया गया है, उसके अनुसार इन तालाबों की खुदाई में 600 लाख घन मीटर मिट्टी निकाली जाएगी और जिनमें 60 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी स्टोर किया जा सकता है. यह एक ऐसा कदम है जिससे बारिश का पानी अब कम बर्बाद होगा. इसी कड़ी में, बुन्देलखण्ड क्षेत्र में वर्षा जल को संचयन हेतु 12.21 करोड़ रुपये की खेत-तालाब योजना भी स्वीकृत की गई है, जिसके अन्तर्गत दो हजार तालाबों का लक्ष्य निर्धारित है.
यह योजना बुन्देलखण्ड के सभी जनपदों में संचालित हो रही है. इसके साथ-साथ, मुख्यमंत्री जल बचाव अभियान के अन्तर्गत नदियों के पुनर्जीवन व पुनरोद्धार के कार्यों के अन्तर्गत बुन्देलखण्ड क्षेत्र में 10,705.74 लाख रुपये एवं पूरे प्रदेश में 87,197 लाख रुपये व्यय करके तालाबों पर कार्य कराने की बात प्रदेश सरकार कह रही है. हालाँकि, इन बातों के साथ-साथ अखिलेश सरकार को नौकरशाही के स्तर पर बेहद चौकन्ना रहने की जरूरत है, अन्यथा ठेकेदारों के साथ मिलकर आंकड़ों में कैसे हेराफेरी करनी है, इसमें अधिकारी बेहद एक्सपर्ट होते हैं. अखिलेश यादव की घोषणाएं निश्चित रूप से महत्वपूर्ण हैं, पर उसे पास या फेल करने की जिम्मेदारी प्रदेश की नौकरशाही पर सर्वाधिक है. पर अखिलेश यादव युवा और सजग हैं, इसलिए उनसे यह उम्मीद जायज़ है कि वह नौकरशाही को सही रास्ते पर रहने को विवश किये रहेंगे! इसी क्रम में, समाजवादी सरकार ने पीने की पानी की किल्लत दूर करने के लिए बुंदलखंड क्षेत्र में जल आपूर्ति के लिए 3226 इंडिया मार्क-2 हैंड पंप लगाने की घोषणा की है, तो 440 पानी के टैंकर खरीदने की बात भी कही गयी है. अगर कार्यान्वयन के स्तर पर बात करें तो, बुन्देलखण्ड पैकेज के प्रथम चरण में 12 ग्रामीण पाइप पेयजल योजनाएं एवं द्वितीय चरण में 48 ग्रामीण पाइप पेयजल योजनाएं स्वीकृत की गई हैं. इसी सन्दर्भ में अगर हम आगे बात करते हैं तो राज्य सरकार ने वैसे तो पूरे प्रदेश में खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू कर दिया है, लेकिन इसका बड़ा लाभ बुंदेलखंड के लोगों को मिल रहा है. खाद्य एवं रसद विभाग द्वारा वर्तमान आवंटन के अनुसार बुन्देलखण्ड क्षेत्र में 39060.105 मी. टन खाद्यान्न उपलब्ध कराया जा रहा है. एक आंकलन के अनुसार, यह आवंटन 73.64 प्रतिशत जनसंख्या को लाभान्वित करता है. अगर खास इस क्षेत्र के विकास की बात करें तो झांसी में सैनिक स्कूल की स्थापना के लिए बजट में 150 करोड़ रुपये की व्यवस्था मुख्यमंत्री ने की है, तो यहां लॉ लैब बनाने के लिए भी 40 करोड़ रुपये दिए गए हैं.
इसके अलावा हमीरपुर में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए भी 10 करोड़ रुपये का बजट में इंतजाम किया गया है. बताते चलें कि यहां सड़कों के निर्माण पर राज्य सरकार काफी ध्यान दे रही है, जिसके फलस्वरूप जिला मुख्यालय को 4लेन की सड़कों से जोड़ने का काम किया जा रहा है, तो कालपी-हमीरपुर 4 लेन सड़क का निर्माण हो चुका है. कई लोग यूपी सरकार को 'मुआवजा सरकार' भी कहते हैं, लेकिन अखिलेश यादव को इसकी परवाह नहीं. इसी क्रम में, अब तक अतिवृष्टि और ओलावृष्टि से प्रभावित किसानों के लिए लगभग 2500 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की जा चुकी है. जाहिर है, तात्कालिक हल की जरूरत किसी भी पीड़ित क्षेत्र या व्यक्ति को सर्वाधिक होती है और इस क्रम में अखिलेश यादव को बढ़िया नंबर दिए जा सकते हैं. ऐसे ही, बुंदेलखंड क्षेत्र में समग्र विकास के लिए कामधेनु डेयरी योजना, लोहिया ग्रामीण आवास, मंडियों की स्थापना आदि की योजनाएं चलाई जा रही हैं, ताकि यह क्षेत्र भी प्रगति कर सके.
बताते चलें कि अपने प्रयासों के क्रम में प्रदेश सरकार, बुन्देलखण्ड क्षेत्र में 07 विशिष्ट किसान मण्डियां तथा 133 ग्रामीण अवस्थापना केन्द्रों का निर्माण करा रही है, तो किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य दिलाने के लिए परिवहन की सुविधा दी जा रही है. जाहिर है, जो क्षेत्र या वर्ग पिछड़ा है सरकार उसी की होती है और अखिलेश यादव द्वारा इस मामले में बुंदेलखंड को प्राथमिकता देना बखूबी समझ आता है. इस मामले में केंद्र सरकार को भी राजनीति से परे हटकर व्यापक दृष्टिकोण दिखलाना चाहिए, ताकि क्षेत्र की दीर्घकालिक समस्याओं का निदान खोजा जा सके. वैसे भी हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विभिन्न क्षेत्रों में निवेश ला रहे हैं, व्यापार बढ़ा रहे हैं, योगा को प्रमोट कर रहे हैं तो क्या उन्हें खास तौर पर बुंदेलखंड की समस्याओं में रुचि नहीं लेनी चाहिए? जैसाकि वह कहते रहे हैं कि उनकी सरकार गरीबों की, पीड़ितों की सरकार है. ऐसे में बुंदेलखंड से गरीब और पीड़ित क्षेत्र कौन सा है भला! देखना दिलचस्प रहेगा कि आने वाले समय में अखिलेश सरकार को बुंदेलखंड क्षेत्र की समस्याओं के सन्दर्भ में केंद्र सरकार कितनी मदद देती है, बाकी अखिलेश तो अपने स्तर पर क्षेत्र के लिए जी-जान से जुटे ही हैं.