समाजवादी पार्टी में हो रही पारिवारिक और राजनैतिक उठापटक से भला कौन परिचित नहीं होगा. जूतमपैजार मची है, एक दूसरे की टांग खींचने की जैसे प्रतियोगिता हो रही है और तो और अब पिता को कोई शाहजहां बता रहा है तो बेटे को कोई औरंगजेब! चाचा-भतीजा, भाई, सौतेली माँ इत्यादि सभी पारिवारिक मसाले इस ड्रामे में दिख रहे हैं. देखा जाए तो ऊपर से बड़ा सीधा सा गेम लग रहा है यह कि भतीजे की ताजपोशी से चाचा नाराज हैं और अपनी महत्वाकांक्षाओं के लिए वह दाव पर दाव चले जा रहा है, जिसमें तमाम लोग उसका साथ दे रहे हैं या विरोध कर रहे हैं. पर क्या वाकई मामला यही है या परदे के पीछे कुछ और ही प्लानिंग है? कई विश्लेषक इस बात को भी उठा रहे हैं समाजवादी पार्टी में जो हालिया कलह दिख रही है उसके सुत्रधार खुद नेताजी यानी मुलायम सिंह यादव ही हो सकते हैं. बिल्कुल "वेल मेंटेन ड्रामा" देख रहा है उत्तर प्रदेश, जिसमें घूम-फिरकर घड़ी की सूई अखिलेश को ही वर्तमान समय का नायक बताने की कोशिश कर रही है तो भविष्य का तारणहार भी अखिलेश को ही बनाया जा रहा है. इसी क्रम में अमर सिंह जैसा चरित्र सपा के हाथ लग गया है और उसको खूब बदनाम किया जा रहा है. हालांकि अमर सिंह का इतिहास और छवि अपने आप में 'ब्लैक' है और वह दूध के धुले नहीं हैं, किंतु क्या वाकई समाजवादी पार्टी की इस किचकिच में अमर सिंह की भूमिका इतनी बड़ी हो गई है? शायद ही किसी को आसानी से यह बात पचे! मुख्यमंत्री अखिलेश यादव उन्हें हटाने पर तुल गए हैं तो मुलायम सिंह उन्हें किसी कीमत पर बचाने पर तुल गए हैं. जिस तरीके से अमर सिंह को केंद्र में रखकर यह पूरा सियासी ड्रामा खेल ा जा रहा है वह मुलायम का प्रसिद्ध धोबियापाट दाव की याद दिलाता है. मुलायम सिंह का सार्वजनिक मंच से यह कहना है कि अगर अमर सिंह नहीं होते तो मैं जेल में होता और इसलिए वह मरते दम तक अमर सिंह का साथ नहीं छोड़ेंगे, यह बताने के लिए पर्याप्त है कि सपा कुनबा अमर सिंह का किस कदर इस्तेमाल कर रहा है. आखिर, इस सियासी ड्रामे के बाद जब 'फेमिली-मिलन समारोह' होगा तो इस पूरी किचकिच के लिए कोई न कोई तो चाहिए, जिसे जिम्मेदार ठहराया जा सके! मतलब 'बलि का बकरा' बनाकर अमर सिंह को बाहर किया जाएगा और फिर सब ठीक हो जायेगा. वास्तव में इस प्रकार के राजनीति क हथकंडों को ही 'मास्टरस्ट्रोक' कहा जाता है. Amar Singh Role in Samajwadi Party, Hindi Article, New, Akhilesh Yadav Image Building, Mulayam Singh Great Political Move, UP Election 2017, Inside story in Hindi
सवाल उठता है कि अभी ज्यादा दिन नहीं हुए मात्र 6 साल पहले अमर सिंह को सपा से बाहर किया गया था, तो क्या तब वह मुलायम सिंह के इतने करीब नहीं थे? कूटनीतिक लाइजनिंग के विशेषज्ञ के तौर पर अपनी पहचान बना चुके अमर सिंह सपा से निकाले जाने के बाद समाजवादी पार्टी और मुलायम सिंह को खूब कोसते थे, खूब गालियां देते थे, उनके खिलाफ खड़े होने की भरपूर कोशिश भी की! हालाँकि, नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा और कइयों के अनुसार सपा में उनकी वापसी अमर सिंह की मजबूरी थी, किन्तु सच कहा जाए तो हालिया सियासी ड्रामा देखकर यही लगता है कि मुलायम सिंह ने अमर सिंह को जान बूझकर पार्टी में शामिल किया ताकि फिर से उन्हें 'बलि का बकरा' बनाया जा सके! आखिर यह बात कैसे पच जाए कि सपा में वापस आते ही अचानक इतने ताकतवर हो गए अमर सिंह? एक उदाहरण दूं तो मेरे परिचित में एक युवा था, जिसका किसी भी कार्य में मन नहीं लगता था, और कहीं भी वह कमाने के लिए जाता था तो मात्र 10 से 15 दिन में भाग कर गाँव आ जाता था. धीरे-धीरे उस की ऐसी बदनामी हो गई कि उसकी छवि 'भगोड़े' की हो गई. नौकरी के नाम पर वह बेचारा जहां भी जाता था, किसी परिचित के साथ, किसी माध्यम के द्वारा तो उसकी भगोड़े की छवि ने उसे कहीं टिकने ही नहीं दिया. उस बिचारे का इसी गलत छवि के सहारे कई जगहों पर शोषण भी हुआ. जब भी वह अपनी बात कहने की कोशिश करता था, लोग झट से कहते थे कि 'यह तो कहीं टिक ही नहीं सकता. लोगों ने उसे परेशान भी किया, लेकिन उसकी सुने तो कौन? कहने का मतलब है कि अपनी बिगड़ी छवि का उस बेचारे को कई सालों तक नुकसान हुआ और वह चाहे लाख सफाई दे, कोई उस की सुनने को तैयार नहीं होता था. कमोबेश यही हालत अमर सिंह की भी है. अगर ध्यान से देखें तो उनकी ऐसी राजनैतिक हैसियत नहीं नजर आती है कि वह अखिलेश और मुलायम के बीच में दरार डालने का काम कर सकें! हां वह राजनीतिक और कुटनीतिक मामलों में जरूर थोड़े तीक्ष्ण माने जाते हैं, पर तेज दिमाग के और भी हज़ारों लोग हैं और इतनी भर योग्यता पर्याप्त नहीं है सपा जैसे पार्टी की नीतियों पर भारी पड़ने के लिए! Amar Singh Role in Samajwadi Party, Hindi Article, New, Akhilesh Yadav Image Building, Mulayam Singh Great Political Move, UP Election 2017, Inside story in Hindi
हालाँकि, अमर सिंह ने कई अवसरों पर सरकार बनाने और अन्य राजनीतिक फैसलों में उन्होंने अपनी भूमिका साबित की है, पर इस बार का हो रहा 'सपाई ड्रामा' उनकी पिछली छवियों के आधार पर गया प्रतीत होता है. बेचारे गाली भी खा रहे हैं, एक तरफ मुलायम उनके लिए बाहें फैला रहे हैं, तो दूसरी तरफ अखिलेश उन्हें खुलकर 'दलाल' कह रहे हैं. खूब प्रचारित किया जा रहा है कि अमर सिंह घर तोड़ने में माहिर हैं, परिवार तोड़ने में माहिर हैं, पार्टियां तोड़ने में माहिर हैं, पर सच तो यही है कि ऐसे लोग इस्तेमाल भर होते हैं. दूसरों को अपनी खुन्नस मिटाने का बहाना भर होते हैं अमर सिंह जैसे लोग! उनके बारे में उदाहरण दिया जाता है कि अनिल अंबानी और मुकेश अंबानी को उन्होंने अलग कर दिया, उनके बीच लड़ाई करा दी. एक पल ठहरकर अगर इसके उल्टा सोचें तो क्या यह माना जा सकता है कि अगर अमर सिंह नहीं रहते तो मुकेश और अनिल के बीच अगाध प्रेम होता? क्या हास्यास्पद परिकल्पना है यह! इसी तरह से अमिताभ बच्चन और उनके भाई अजिताभ बच्चन के बीच दूरियां पैदा करने के लिए अमर सिंह को जिम्मेदार ठहराया जाता है, तो ऐसे में क्या यह मान लिया जाना चाहिए कि अगर अमर सिंह नहीं होते तो अमिताभ और अजिताभ में खूब सारा प्यार होता? हमारे समाज में बड़ी अजीब परिकल्पना है कि जो लोग लड़ाई करते हैं, एक दूसरे से अपनी खुन्नस निकालते हैं तो उसमें किसी तीसरे को मोहरा बना देते हैं कि इसने मुझे भड़काया इसने उसे भड़काया, मुझे ऐसा किया बला बला ... !! अरे भाई अपना दिमाग भी तो है मनुष्य का! समाजवादी पार्टी जैसे पुराने दल जिसमें एक से एक चतुर नेता हैं, वहां अगर कहा जाए कि अमर सिंह दरार पैदा कर दे रहे हैं, और मुलायम जैसे नेता उनकी बात सुन कर सहमत हो जा रहे हैं तो फिर इसे मूर्खतापूर्ण आंकलन के अतिरिक्त कुछ और नहीं माना जा सकता हैं. हाँ, यह जरूर कहा जा सकता है कि आपसी खुन्नस निकालने के लिए, किसी के छवि-निर्माण और किसी के छवि-दूषण कार्यक्रम के लिए अमर सिंह का बेधड़क इस्तेमाल हो रहा है. यह तो निश्चित सा दिख रहा है कि अखिलेश की छवि निर्माण कार्यक्रम के लिए नेताजी कोई लंबी प्लानिंग बना रहे हैं और उस को क्रियान्वित भी कर रहे हैं. इस संभावित प्लानिंग में सबसे बड़े मोहरा बने हैं अमर सिंह! Amar Singh Role in Samajwadi Party, Hindi Article, New, Akhilesh Yadav Image Building, Mulayam Singh Great Political Move, UP Election 2017, Inside story in Hindi
बिचारे की छवि बदनाम है और उसके सहारे 'ठीकरा' फोड़ा जा सकता है बाद में. अपने पाक-साफ बने रहो जब ड्रामे के बाद सब मेल-मिलाप हो जाएगा, राम-भरत मिल जाएंगे तो उस अमर सिंह को 'अमर-लात' मार देना ही वर्तमान राजनीति की परिणति दिख रही है. इस बात को प्रदेश की जनता जल्द ही समझ जाएगी कि पिछले साढ़े चार साल में अखिलेश के कार्यकाल से ध्यान हटाने के लिए, एंटी-इनकंबेंसी से ध्यान हटाने के लिए किस प्रकार यह सारा ड्रामा रचा गया, ताकि लोग-बाग सरकार की परफॉर्मेंस से ध्यान हटाकर अखिलेश में 'नायकत्व और विकासवादी, अपराध के विरुद्ध छवि' को देखें, अखिलेश को संघर्षशील नेता मानें, अपने बल पर फैसला लेने वाला मानें और इस तरह से अखिलेश स्थापित हो जाएँ! सत्ता में अगर समाजवादी पार्टी न भी आये तो कम से कम अखिलेश अपने परिवार में सर्वमान्य बड़े नेता हो जाएँ और यह कार्य मुलायम सिंह ने अपने जीवनकाल में सफलतापूर्वक कर डाला है. अब अखिलेश शिवपाल या दूर फेमिली मेंबर्स के बारे में खुद फैसला लेने को स्वतंत्र हैं, बिना मुलायम सिंह के हस्तक्षेप के! याद करें मुलायम सिंह का वह बयान, जिसमें उन्होंने कहा था कि 'शिवपाल और बर्खास्त मंत्रियों को सरकार में लेना है कि नहीं, इस पर फैसला अखिलेश को ही करना है.' बेहद गहरे निहितार्थ हैं इस लड़ाई के! हाँ, इस खेल में अमर सिंह जैसे मोहरों की कितनी देर तक अहमियत बनी है, यह बात जरूर देखने वाली है. हां यह तो निश्चित है कि जल्द ही उनकी अहमियत ख़त्म हो जाएगी सपा में, ठीक उसी प्रकार जैसे बच्चन परिवार के कुनबे में से वह बाहर हुए, अंबानी बंधुओं के दायरे से वह बाहर हुए वैसे ही सही वक्त पर सपा भी उन्हें बाहर कर देगी. हां तब तक मुलायम सिंह जरूर अखिलेश की स्वतंत्र छवि-गठन का कार्यक्रम कुशलता पूर्वक पूरा कर चुके होंगे. ज़रा सोचिये, साढ़े चार साल तक यूपी में साढ़े चार मुख्यमंत्री थे, किन्तु अब बचे कुछ महीनों में सिर्फ एक 'सीएम' है ... और वह है 'अखिलेश यादव'! वाकई मास्टरस्ट्रोक राजनीतिक दांव ... !!