अपने कई परिचितों से जब उत्तर प्रदेश की चुनावी गणित पर बात करता हूँ तो तमाम किन्तु और परन्तु के बावजूद अखिलेश यादव का पलड़ा भारी नज़र आता है. हालाँकि, कई लोग बसपा की मायावती के सत्ता में आने की सुगबुगाहट भी दिखलाते हैं, जैसा कि पिछले कुछ सर्वेक्षणों में भी दिखाया गया है, लेकिन जब इसके कारणों की पड़ताल की जाती है तो 'बहनजी' के पक्ष में बड़ा 'एंटी इंकम्बेंसी' ही नज़र आता है. मतलब, कुछ लोग सत्ताधारी पार्टी से नाराज होते हैं और वह दुसरे को वोट करते हैं, लेकिन अखिलेश यादव के खिलाफ यह फैक्टर भी काम करता नज़र नहीं आता है. इसके पीछे का कारण भी काफी मजबूत नज़र आता है और वह यह है कि अगर यूपी की वर्तमान सरकार से कुछ लोगबाग नाराज भी हैं तो उसका ठीकरा वह अखिलेश पर फोड़ने की बजाय आज़म खान, उनके चाचा शिवपाल यादव या मुलायम सिंह पर फोड़ते हैं. पत्रकारीय जगत में काम करने वाले लोग इस जुमले का आम तौर पर इस्तेमाल करते दिख जायेंगे कि यार, अखिलेश तो बढ़िया काम कर रहा है, लेकिन उनकी ही पार्टी के कुछ लोग उसे काम नहीं करने दे रहे हैं. जनता की राय भी कुछ-कुछ ऐसी ही है. जनता जानती है कि अगर अखिलेश यादव इस बार चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री बने तो वह बेहद मजबूत होंगे और उन पर हावी होने वाले उनके पार्टी के नेता इस बार बेहद कमजोर स्थिति में होंगे. कहीं न कहीं यह एक बड़ा कारण है तो बसपा को 'एंटी इंकम्बेंसी' फैक्टर का लाभ उठाने नहीं देगा.
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हालाँकि, अखिलेश के सजग कार्यों की एक लम्बी चौड़ी लिस्ट है, जिसका गुणगान न केवल प्रदेश में, बल्कि देश और देश से बाहर की संस्थाएं भी कर चुकी हैं. कहते हैं दिल्ली की कुर्सी का रास्ता यूपी से होकर जाता है और 2019 में राष्ट्रीय समीकरण की झलक भी 2017 में काफी कुछ नज़र आ जाएगी. यही कारण है कि भाजपा भी यहाँ खूब कोशिश में लगी हुई है, खुद अमित शाह इस प्रदेश में डेरा डाले हुए हैं, लेकिन उनके पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्मे के अतिरिक्त और कुछ ख़ास नज़र नहीं आता, जो अखिलेश यादव से मुक़ाबिल हो सके! वैसे भी नरेंद्र मोदी का करिश्मा दिल्ली और फिर बिहार में पिट ही चुका है, तो अखिलेश यादव की तुलना कई हलकों में खुद प्रधानमंत्री की विकास पुरुष वाली छवि से की जा रही है. जाहिर है, आने वाले समय में केंद्रीय राजनीति में अखिलेश यादव की धमक हो सकती है. हालाँकि, खुद अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के विकास पर फोकस किये हुए हैं और वह अपनी किसी भी सभा में ताल ठोंककर कहते हैं कि विकास के मामले में उत्तर प्रदेश को अब कोई आँख नहीं दिखा सकता है. आज यूपी में मेट्रो से लेकर साईकिल ट्रैक, आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे, मेदान्ता मेडिसिटी से लेकर आईटी सिटी, अंतर्राष्ट्रीय स्टेडियम से लेकर साईकिल ट्रैक सब कुछ बन गया है, यानि यूपी बदलाव की राह पर तेजी से बढ़ रहा है और यही युवा सीएम की सबसे मजबूत ताकत है. आइये, देश को सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री देने वाले यूपी के मुख़्यमंत्री के विकास कार्यों एवं राजनीतिक समीकरणों का जायजा लेते हैं:
पर्यावरण फ्रेंडली विकास: जैसाकि खुद अखिलेश यादव कहते हैं कि साइकिल न तो प्रदूषण फैलाती है और न ही इसके लिए पेड़ों को काटने की आवश्यकता ही पड़ती है. उनके शब्दों में, यूपी में ऐसा पर्यटन स्थल नहीं चाहिए जिसे बनाने के लिए हजारों पेड़ों की बलि देनी पड़े. बल्कि, यहाँ ऐसा पर्यटन चाहिए जिससे राज्य की हरियाली बनी रहे. यूपी के लिए वो दिन गौरवपूर्ण था, जिस दिन एक दिन में सर्वाधिक पेड़ लगाए जाने के लिए राज्य को 'गिनीज बुक' में शामिल किया गया. इसी कड़ी में, सरकार ने पर्यटन को इंडस्ट्री का दर्जा दिलाकर देश का ध्यान आकर्षित करने में सफलता हासिल की है.
कृषि क्षेत्र पर जोर: यूपी सरकार की मुफ्त सिंचाई योजना के अंतर्गत अब तक किसानों पर बकाया 700 करोड़ रुपए का आबपाशी शुल्क माफ किया जा चुका है. जाहिर तौर पर, एक तरफ पूरे देश में किसान कर्ज के कारण आत्महत्या करने पर मजबूर हैं वहीं उत्तरप्रदेश सरकार ने सहकारी ग्राम विकास बैंक से किसानों द्वारा लिए गए 50 हजार रुपए तक के कर्ज माफ कर किसानों का दिल जीतने का कार्य किया है. इसी सन्दर्भ में, ऋण माफी योजना के तहत 7,86,000 किसान इस योजना से लाभान्वित हो चुके हैं. इसके साथ-साथ कृषक दुर्घटना बीमा योजना भी प्रदेश सरकार चला रही है, जिसके तहत प्रति व्यक्ति अधिकतम आवरण राशि एक लाख रुपए से बढ़ाकर पांच लाख रुपए कर दी गई है. इस योजना से भी अब तक 21 हजार से अधिक कृषक परिवारों को लगभग 1000 करोड़ रुपए की सहायता दी जा चुकी है. जाहिर है अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश के परंपरागत वोटरों यानि किसान वर्ग को लुभाने का सार्थक प्रयास किया है.
हेल्थ इज वेल्थ: अखिलेश यादव इस क्षेत्र के प्रति विशेष रूप से सजग दिखते हैं और प्रदेश में गंभीर रोगों जैसे, किडनी, लिवर, हृदय व कैंसर से ग्रसित निर्धन वर्ग के लोगों के लिए मुफ्त इलाज दिया जा रहा है. इसके साथ-साथ बी.पी.एल. कार्ड धारकों का समस्त उपचार एवं परीक्षण निःशुल्क किया जा रहा है, जिसके लिए मुख्यमंत्री कोष से आर्थिक सहायता दिए जाने की भी व्यवस्था की गयी है. जानकारी के अनुसार, प्रदेश के सभी सरकारी अस्पतालों में मरीजों को दवा, एक्सरे, पैथोलॉजी जांचें तथा अल्ट्रासाउण्ड की सुविधा भी पूरी तरह से मुफ्त उपलब्ध कराई जा रही है. इसी कड़ी में, राज्य के सभी हॉस्पिटल्स में भर्ती होने वाले रोगियों का भर्ती शुल्क खत्म कर दिया गया है. जाहिर तौर पर जब लोगों का स्वास्थ्य ठीक रहेगा तभी वह आगे बढ़ने और प्रदेश को बढ़ाने की सोच भी विकसित करेंगे!
एजुकेशन पर जोर: कई विश्लेषक यह बात बेझिझक स्वीकार करते हैं कि अखिलेश यादव के खुद शिक्षित होने का फायदा उत्तर प्रदेश को मिला है, जो शायद मुलायम सिंह अगर सीएम बनते तो न मिलता! प्रदेश में, शिक्षा के स्तर पर प्राईमरी एजुकेशन, माध्यमिक, उच्च, प्राविधिक और चिकित्सा शिक्षा की श्रेणी पर विशेष जोर दिया जा रहा है. बेसिक शिक्षा की बात करें तो अध्यापकों की कमी को दूर करने के लिए बी.टी.सी/ विशिष्ट बी.टी.सी./ मोअल्लिम के 18,127 शिक्षकों की नियुक्ति की जा चुकी है, तो 15,000 अन्य अध्यापकों की नियुक्ति प्रक्रिया जारी है. इसी कड़ी में, टी.ई.टी. प्रशिक्षित 60,000 शिक्षकों की नियुक्ति हो चुकी है. साथ ही उच्च प्राथमिक में गणित और विज्ञान के 29 हजार से ज्यादा अध्यापकों की नियुक्ति भी की जा चुकी है. हालाँकि, उत्तर प्रदेश की जितनी आबादी है, उस लिहाज से अखिलेश यादव को अपने प्रयास और तेज करने होंगे, ताकि प्रदेश के युवाओं और युवतियों को राज्य से बाहर न जाना पड़े!
स्किल डेवलपमेंट: आप अगर शिक्षा ही प्रदान करते हों और युवक स्किल्ड न हों तो फिर बेहद मुश्किल पेश आती है. इसके लिए केंद्र सरकार भी विशेष प्रयास कर रही है तो उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार भी कहीं पीछे नहीं है. प्रदेश में नौजवानों को तरह-तरह के व्यवसायों हेतु ट्रेन्ड करने के लिए कौशल विकास मिशन की स्थापना की गई है. इसके तहत 14 से 45 साल की उम्र के लोगों को ट्रेनिंग दी जा रही है. इस कड़ी में, अब तक एक लाख से अधिक युवाओं को प्रशिक्षण देकर रोजगार भी दिया जा चुका है. बताते चलें कि कौशल विकास मिशन के तहत बेहतरीन परफॉर्मेंस पर भारत सरकार ने राज्य को अवॉर्ड भी दिया है. जाहिर है अखिलेश यादव के खाते में यह एक बड़ी उपलब्धि जुड़ी हुई है.
महिला सुरक्षा एवं कानून व्यवस्था: सीधे आंकड़ों पर जाएँ तो सरकार द्वारा शुरू की गई 1090 महिला पॉवरलाइन के जरिए 3.88 लाख से अधिक शिकायतों का अब तक निस्तारण किया जा चुका है. इस नंबर के जरिए महिलाओं को आपत्तिजनक फोन कॉल्स, एसएमएस, एमएमएस की समस्या से काफी हद तक छुट्टी मिल गई है, तो असामाजिक तत्वों के मन में भी काफी भय व्याप्त हुआ है. इसके साथ साथ इस अक्टूबर महीने से राज्य सरकार की डायल-100 परियोजना भी शुरू होने जा रही है, जिसके शुरू होने के बाद पुलिस का रिस्पॉन्स टाइम काफी कम हो जाएगा. यानि 100 नंबर डायल करते ही बेहद कम समय में पुलिस मौके पर पहुंचेगी. हालाँकि, इस पक्ष पर अखिलेश सरकार को काफी सजग रहने की आवश्यकता है, क्योंकि अगर अखिलेश सरकार की कहीं आलोचना हुई है तो वह कानून-व्यवस्था को लेकर ही. हालाँकि, कानून-व्यवस्था की खराब स्थिति अखिलेश के सत्ता संभालने के शुरूआती एक दो साल ही थी, जबकि बाद में उन्होंने कड़ी से लगाम खींची है. इसका असर भी दिखा है और अब स्थिति काफी हद तक नियंत्रण में दिखती है.
साहित्यकारों की सुध एवं समाजवादी पेंशन योजना: इस बात में कहीं रत्ती भर भी झोल नहीं है कि समाजवादी पार्टी हमेशा से साहित्यकारों की सुध लेती रही है. मुलायम सिंह की इस परंपरा को अखिलेश यादव ने भी मजबूती से आगे बढ़ाया है और साहित्यकारों को सम्मान करने की बात से लेकर, साहित्य का डिजिटलाइजेशन और साहित्यकारों को पेंशन देने की बात पर भी अखिलेश यादव अव्वल दिखते हैं. यश भारती सम्मान इस मामले में मील का पत्थर है. इसी तरह, प्रदेश सरकार ने ऐसे लोगों के लिए समाजवादी पेंशन स्कीम को शुरू किया है जिनके पास आय का कोई साधन नहीं है. इस योजना के तहत 500 रुपए प्रति महीने पेंशन दिया जाता है, खास बात है कि योजना का लाभ सीधे लाभार्थी को मिले इसके लिए पेंशन सीधे उसके खाते में दी जाती है, मतलब भ्रष्टाचार की गुंजाइश नहीं! इस योजना के तहत 45 लाख परिवारों को लाभान्वित किया जा चुका है. इस योजना की खास बात ये है कि हर साल 50 रुपए की वृद्धि की जाती है. जाहिर तौर पर सामाजिक जरूरतमंदों के प्रति अखिलेश यादव की फ़िक्र का सकारात्मक असर ग्राउंड पर भी दिखता है. इसी क्रम में, लोहिया ग्रामीण आवास योजना ऐसे ग्रामीण परिवारों को निःशुल्क आवास उपलब्ध कराने के लिए शुरू की गई है, जिनके पास घर नहीं है, साथ ही जिनकी सालाना आय 36,000 रुपए से कम है.अब तक एक लाख से ज्यादा लोगों को इस योजना के तहत लाभान्वित किया जा चुका है.
बिजली आपूर्ति में सुधार, लेकिन...: इस मोर्चे पर राज्य के अधिकारी दावे-प्रतिदावे तो करते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि बिजली आपूर्ति के मामले में दिल्ली अभी दूर है. हालाँकि, राज्य से अंधेरा मिटाने के लिए मौजूदा सरकार ने विस्तृत योजना तैयार की है, लेकिन बात इसके कार्यान्वयन पर आकर रूक जाती है. इसके अंतर्गत अक्टूबर 2016 से ग्रामीण क्षेत्रों में कम से कम 14 से 16 घण्टे तथा शहरी क्षेत्रों में 22 से 24 घण्टे तक बिजली आपूर्ति करने का लक्ष्य तय किया गया है. इसके साथ-साथ आगामी दिनों में बारा, ललितपुर और श्रीनगर परियोजना से 4000 मेगावॉट तथा अनपरा डी परियोजना से 1000 मेगावॉट बिजली मिलने लगेगी. हालाँकि, आने वाले समय में इस मोर्चे पर और सजगता की जरूरत पड़ेगी, इस बात में दो राय नहीं!
मेट्रो परियोजना एवं सड़कों पर हुआ तेज कार्य: इस कड़ी में अगर लखनऊ की बात करें तो यहां मेट्रो डेवलपमेंट के प्रथम चरण में अमौसी एयरपोर्ट से मुंशी पुलिया तक के मार्ग का काम काफी तेजी से हो रहा है. लखनऊ के अलावा वाराणसी, कानपुर और आगरा में मेट्रो दौड़ाने की तैयारी पूरी कर ली गई है, जो अखिलेश यादव की विकासशील सोच का पैनापन दिखाने के लिए काफी है. लखनऊ मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन का हाल ही में संपन्न हुए 5वें वार्षिक मेट्रो रेल इंडिया समिट, 2016 में एक्सीलेंस इन इनोवेटिव डिजाइंस के लिए सर्वश्रेष्ठ मेट्रो परियोजना के रूप में आंकलन किया गया है. बताते चलें कि मार्च 2016 में आयोजित इस सम्मलेन में जयपुर मेट्रो, मुंबई मेट्रो, एल एंड टी मेट्रो रेल, लखनऊ मेट्रो के अतिरिक्त दूसरी कंपनियां एवं मेट्रो रेल परियोजनाओं के कंसल्टेंट्स और विनिर्माताओं ने भाग लिया था और इन सबमें लखनऊ मेट्रो ने बाजी मार ली. विकास के ट्रैक पर एक के बाद एक सड़कें बनाकर पूरे राज्य में सड़कों का बड़ा नेटवर्क खड़ा किया गया है, इस बात में दो राय नहीं! देश का सबसे लंबा, आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे आगामी अक्टूबर महीने से शुरू होने जा रहा है. 300 कि.मी. लम्बा 6 लेन के इस हाईवे को 15,000 करोड़ की लागत से तैयार किया जा रहा है. गौरतलब है कि यह परियोजना देश की सबसे लंबी ग्रीन फील्ड परियोजना भी है. सड़कों के नेटवर्क में, जिला मुख्यालयों को फोर-लेन से जोड़ने की योजना भी महत्वपूर्ण है, जिसके लिए अखिलेश यादव को साधुवाद दिया जाना चाहिए. इसके साथ ही हमीरपुर-कालपी फोर लेन, बदायूं-बरेली फोर लेन, बहराइच-भिनगा फोर लेन जैसी कई परियोजनाओं का लोकार्पण हो चुका है. जाहिर है, आने वाले समय में सड़कों के सुधरे नेटवर्क के सहारे विकास की रफ़्तार और भी तेज होगी.
सूचना प्रौद्योगिकी, निवेश को आमंत्रण: मौजूदा दौर की बात करें तो राज्य में अमूल, मदर डेयरी, सैमसंग और एलजी जैसी कंपनियां निवेश कर रही हैं, तो सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी मौजूद सरकार ने मिसाल कायम कर दिया है. लखनऊ स्थित चक गंजरिया फॉर्म को सी.जी. सिटी के रूप में विकसित किया जा रहा है. इसमें आई.टी. सिटी एवं आई.टी. पार्क सहित ट्रिपल आईटी, मेडिसिटी, सुपरस्पेशियलिटी हॉस्पिटल, एडमिनिस्ट्रेशन एकेडमी, डेयरी प्रोसेसिंग प्लाण्ट तैयार किया जा रहा है. इसके साथ साथ एक तरफ निवेश बढ़ेगा दूसरी ओर राज्य के नौजवानों को रोजगार के नए अवसर भी मिलेंगे, इस बात पर प्रदेश सरकार का विशेष ज़ोर है. तमाम वैश्विक संस्थाएं अखिलेश सरकार को निवेश के लिए सबसे मुफीद बता चुके हैं.
राजनीतिक समीकरण पक्ष में: चूंकि विकास की राह से ही राजनीति की राह खुलती है और अखिलेश यादव का विकास-पक्ष काफी मजबूत है. हालाँकि, अगर कोर राजनीति की ही बात की जाय तो बेनी प्रसाद वर्मा की समाजवादी पार्टी में वापसी से कुर्मी वोटों की पकड़ बेहद मजबूत हो जाने वाली है. मुस्लिम और यादव समुदाय के लोग तो समाजवादी पार्टी के सात हमेशा से रहे हैं, लेकिन अब अन्य पिछड़े वर्ग और फॉरवर्ड वोट भी समाजवादी पार्टी की तरफ जुड़ा हुआ है. इसकी झलक हालिया चुनावों में भी दिख चुकी है, जहाँ अखिलेश यादव ने दोनों सीटों पर अपना प्रत्याशियों की विजय सुनिश्चित कर दी थी. इसके अलावा आज समाजवादी पार्टी के पास अखिलेश यादव के रूप में वर्तमान और भविष्य का चेहरा है, जिससे हाल-फिलहाल बसपा और भाजपा महरूम नज़र आ रही हैं. मायावती अब बुढ़ापे की ओर खिसक रही हैं तो भाजपा के राज्य नेतृत्व के कई खेमों में सर-फुटव्वल की नौबत है. हालाँकि, चुनाव में अभी समय शेष है, लेकिन अखिलेश यादव अपनी ताकत जानते हैं और समाजवादी पार्टी भी अपना पूरा दांव उन्हीं पर लगाएगी, इस बात में दो राय नहीं!