उत्तर प्रदेश में अगर सबसे बड़े औद्योगिक शहर का नाम लिया जाए तो बिना किसी संदेह के कानपुर का नाम लिया जा सकता है, वह भी आज से नहीं, बल्कि कई दशकों से! वस्तुतः देश भर में कानपुर का विशेष स्थान है, किन्तु दुर्भाग्य से इस शहर की उपेक्षा काफी हद तक हुई थी, जिसे सुधारने का यत्न करते जरूर दिख रहे हैं अखिलेश यादव. दिल्ली में मेट्रो-रेल के सफल परिचालन ने भारत के अन्य बड़े शहरों को अपनी यातायात व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए इस विकल्प की ओर देखने को मजबूर कर दिया है और विभिन्न राज्य अपने विभिन्न शहरों में इसे लागू करने की राह पर बढ़ चले हैं, किन्तु इसमें बाजी मारता दिख रहा है उत्तर प्रदेश! जी हाँ, नोएडा और गाज़ियाबाद तो पहले ही दिल्ली मेट्रो से कनेक्टेड थे, किन्तु उसके बाद लखनऊ मेट्रो का कार्य तेजी से आगे बढ़ाकर अखिलेश ने खूब वाहवाही लूटी थी, तो कानपुर () में इस सुगम यातायात की आधारशिला रखकर इस शहर को वरीयता क्रम में ऊपर लाने का सफल प्रयास किया गया नज़र आता है. इस बात में दो राय नहीं है कि आज शहरों की ओर लोगों का ज़ोरदार ढंग से पलायन हुआ है, तो प्रदूषण और यातायात की चरमराती व्यवस्था से तमाम शहर परेशान हैं. कानपुर जैसे सिटी की समस्या और भी बढ़ी हुई नज़र आती है, क्योंकि औद्योगिक शहर होने के चलते यहाँ माल-ढुलाई के लिए जो वाहन प्रयोग में लाये जाते हैं वह भी प्रदूषण और जाम ही बढ़ाते हैं. तो देखा जाए तो मेट्रो एक तरह से इस शहर की जरूरत बन चुकी है, जिसे समझने के लिए अखिलेश यादव को कम से कम एक बार धन्यवाद तो दिया ही जाना चाहिए. पिछले साल ही यह खबर आयी थी कि न केवल लखनऊ और कानपुर, बल्कि आगरा, मेरठ और वाराणसी तक में मेट्रो दौड़ाने की योजना प्रदेश सरकार की है, जिसके लिए डीपीआर (डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट) का कार्य तेजी से चल रहा था. गौरतलब है कि इन चारों शहरों (कानपुर, आगरा, मेरठ और वाराणसी) में भी मेट्रो परियोजना पर तेजी से काम चल रहा है. Metro rails in Uttar Pradesh, Hindi Article, New Generation, Traffic Solution
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राज्य सरकार अपने इन महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट्स में लखनऊ के बाद यूपी के अन्य चार शहरों में मेट्रो चलाना चाहती थी और इसके लिए राइट्स लिमिटेड को डीपीआर की जिम्मेदारी दी गई थी. इसी क्रम में, आवास विभाग ने डीपीआर से पहले डाटा तैयार करने की समय-सीमा निर्धारित की थी. पूर्वांचल के वाराणसी में भी मेट्रो प्रोजेक्ट्स पर कार्य तेजी से शुरू होने की उम्मीद है, जिसके लिए वाराणसी में दो कॉरिडोर चिह्नित किए गए हैं. जानकारी के अनुसार, पहला कॉरिडोर वाराणसी हिंदू विवि के गेट से होकर गोदोलिया, बेनिया बाग, काशी विद्यापीठ, वाराणसी जंक्शन होते हुए बीएचईएल गेट पर समाप्त होगा. इस बात में दो राय नहीं है कि नए जमाने के पब्लिक ट्रांसपोर्ट की रीढ़ बनती जा रही है मेट्रो! अब दिल्ली को ही ले लीजिये, भारत की राजधानी होने के अतिरिक्त इस शहर को अब दिल्ली मेट्रो के लिए भी जाना जाता है. आखिर, ऐसा हो भी क्यों न, क्योंकि एक दिन में बिना किसी देरी के, बिना ट्रैफिक जाम के, पूरी सुरक्षा के साथ अगर स्मूदली आप सफर करें तो फिर मेट्रो को शहरी लाइफ के लिए बरदान मानना ही पड़ेगा. एक तरह से देखा जाए तो युवा सीएम अखिलेश ने बदलते समय में यूपी की जरूरतों को न केवल पहचाना है, बल्कि प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों को मेट्रो का तोहफा देकर क्षेत्रीय संतुलन स्थापित करने की कोशिश भी की है. इसके अतिरिक्त, यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद की बैठक में इलाहाबाद शहर में भी मेट्रो रेल परियोजना के संचालन के लिए फिजिबिलिटी स्टडी व डीपीआर सम्बन्धी प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान कर दी गयी है. गौरतलब है कि मेट्रो रेल परियोजना के लिए डीपीआर तैयार करने के लिए भारत सरकार की अनुभवी एवं विशेषज्ञ संस्था ‘राइट्स’ के नामांकन के प्रस्ताव को अनुमोदन प्रदान किया गया है. जाहिर है कि उत्तर प्रदेश के समग्र विकास के प्रति दूरदर्शिता दिखलाने में संकोच नहीं कर रहे हैं अखिलेश, खासकर मेट्रो प्रोजेक्ट्स में तो निश्चित रूप से! Metro rails in Uttar Pradesh, Hindi Article, New Generation, Traffic Solution
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जहाँ तक कानपुर मेट्रो प्रोजेक्ट्स की बात है तो इसकी कन्फर्मेशन तो इसी साल मार्च में ही क्लियर हो गयी थी, जब उत्तर प्रदेश की औद्योगिक नगरी कहे जाने वाले कानपुर में मेट्रो ट्रेन परियोजना के लिए उत्तर प्रदेश राज्य मंत्रिपरिषद ने केंद्र सरकार की विशेषज्ञ संस्था राइट्स लिमिटेड की तरफ से मिली विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) को अपनी मंजूरी दे दी थी. गौरतलब है कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की अध्यक्षता में मार्च 2006 में हुई मंत्रिपरिषद की बैठक में मंजूर डीपीआर के अनुसार कानपुर मेट्रो ट्रेन में कुल 32 किलोमीटर की लम्बाई के दो कारिडोर्स (गलियारे) प्रस्तावित हैं. जानकारी के अनुसार कानपुर परियोजना में कुल 31 स्टेशन प्रस्तावित हैं, जिनमें से 19 एलिवेटेड (जमीन से ऊपर) और 12 भूमिगत होंगे. इसके लिए अगस्त 2015 की दरों पर कर एवं प्रभार सहित परियोजना की कुल लागत 13721 करोड रुपये अनुमानित थी. अब कानपुर वासियों को निश्चित रूप से झूमना चाहिए, क्योंकि उनका शहर भी नागरिक सुविधाओं के मामले में एक ऊँची छलांग लगाने को तैयार हो गया है. हालाँकि, राजनीति क कारणों से विकास के कार्यों की रफ़्तार धीमी नहीं होनी चाहिए और अगर कोई राज्य सरकार तेजी से कार्य करना चाहती है तो उसे पूरी मदद मिलनी ही चाहिए. इस सम्बन्ध में देखें तो, कानपुर में मेट्रो के उद्घाटन समारोह में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि केंद्र सरकार से प्रदेश सरकार को जितना पैसा मिलना चाहिए था उतना नहीं मिला, जबकि प्रदेश से सबसे ज्यादा सांसद भारतीय जनता पार्टी को दिए. हालाँकि, इसके जवाब में केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू ने कहा कि मोदी सरकार सभी प्रदेशों का विकास चाहती है क्योंकि जब तक प्रदेश विकसित नहीं होंगे तब तक देश कैसे विकसित होगा. पर बेहद आवश्यक है कि फैक्ट्स के साथ जरूरी मदद में देरी न की जाए और तभी हम नागरिक सुविधाओं में वैश्विक स्तर पर आ सकते हैं. इस क्रम में वेंकैया नायडू के माध्यम से केंद्र ने आश्वासन जरूर दिया कि प्रदेश सरकार जो भी विकास कार्यों के लिए सिफारिश करेंगी केंद्र सरकार उसे पूरा करेंगी, किन्तु अखिलेश यादव का खुली सभा में अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाना कानपुर वासियों के दिल में असर जरूर छोड़ गया होगा. Metro rails in Uttar Pradesh, Hindi Article, New Generation, Traffic Solution