हिंदी फिल्मों की
प्रख्यात अभिनेत्री एवं दुखांत फिल्मों में भावुक एवं बेजोड़ अभिनय हेतु ट्रेजेडी
क्वीन के खिताब से पुकारी जाने वाली उम्दा हीरोइन मीना कुमारी का असली नाम माहजबीं
बानो था और 1 अगस्त 1932 को ये बंबई (वर्तमान में मुंबई) में पैदा हुई थीं। उनके
पिता अली बक्श भी फिल्मों में और पारसी रंगमंच के एक मँजे हुये कलाकार थे और
उन्होंने कुछ फिल्मों में संगीतकार का भी काम किया था। उनकी माँ प्रभावती देवी
(बाद में इकबाल बानो), भी एक मशहूर
नृत्यांगना और अदाकारा थीं जिनका ताल्लुक टैगोर परिवार से था। ज्ञातव्य है कि माहजबीं
ने पहली बार किसी फिल्म के लिये छह साल की उम्र में काम किया था। उनका नाम मीना
कुमारी विजय भट्ट की खासी लोकप्रिय फिल्म बैजू बावरा से पड़ा| इस फिल्म के लिए
उन्हें प्रतिष्ठित फिल्मफेयर का बेस्ट एक्ट्रेस का अवार्ड भी हासिल हुआ। साथ ही अगले
साल का प्रतिष्ठित फिल्मफेयर का बेस्ट एक्ट्रेस का अवार्ड भी मीना कुमारी को फिल्म
परिणीता में मिला इस फिल्म में अत्यंत संवेदनशील भूमिका को जीवंत करने के लिए| बाद में मिस मैरी, यहूदी, दिल अपना और प्रीत पराई, कोहिनूर, भाभी की चूड़ियाँ, प्यार का सागर, आरती और मैं चुप रहूँगी जैसी फिल्मों के जरिये
भी मीना कुमारी अपने अभिनय से लोगों का दिल जीतती रहीं| सन 1962 में साहिब बीबी और
ग़ुलाम फिल्म मीना कुमारी के करिअर के लिए मील का पत्थर साबित हुई| इस फिल्म में भी अपनी अविस्मरणीय अदाकारी के लिए उन्हें प्रतिष्ठित फिल्मफेयर
का बेस्ट एक्ट्रेस का अवार्ड मिला|
इसके बाद किनारे किनारे, दिल एक मन्दिर, चित्रलेखा, गज़ल और भीगी रात फिल्मों
में भी मीना कुमारी के काम को बेहद सराहा गया| लेकिन साल 1965 में आई
उनकी फिल्म काजल में एक बार फिर उनके सशक्त अभिनय के लिए उन्हें उनके करिअर का
चौथा प्रतिष्ठित फिल्मफेयर का बेस्ट एक्ट्रेस का अवार्ड प्रदान किया गया| इसके बाद मीना कुमारी की फ़िल्में फूल और पत्थर, बहू बेगम, चन्दन का पालना, नूरजहाँ, मझली दीदी, मेरे
अपने और दुश्मन आई लेकिन उनके करिअर की अंतिम फिल्म पाकीज़ा में मीना कुमारी का बेमिसाल
अभिनय उन्हें हिंदी फ़िल्मी संसार में सदा के लिए अमर कर गया| गौरतलब है कि शर्मीली
मीना कुमारी के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं कि वे कवियित्री भी थीं लेकिन कभी
भी उन्होंने अपनी कवितायें छपवाने की कोशिश नहीं की। हालाँकि उनकी लिखी कुछ उर्दू
की कवितायें नाज़ के नाम से बाद में छपीं और बेहद सराही भी गईं| 31 मार्च, 1972 मुंबई में मीना
कुमारी हालाँकि इस जिश्मानी दुनिया से रुखसत हो गईं लेकिन अपने बेमिसाल अभिनय के
जरिये आज भी वो हमारी यादों में जिंदा हैं और हमेशा जिंदा रहेंगी| इस बेमिसाल अदाकारा की पुण्यतिथि पर उन्हें
हमारी भावभीनी श्रधांजलि!!!