भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष तथा भारत
की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए देश को ‘एकात्म
मानववाद जैसी प्रगतिशील विचारधारा’ देने वाले पण्डित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म २५
सितम्बर १९१६ को उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के छोटे से गाँव नगला चन्द्रभान में
हुआ था। इनके पिता का नाम भगवती प्रसाद उपाध्याय था। जबकि माता का नाम रामप्यारी था
जो अत्यंत धार्मिक प्रवृत्ति की थीं। ३ वर्ष की मासूम उम्र में ही दीनदयाल जी पिता
के प्यार से वंचित हो गये। वहीं पति की मृत्यु से माँ रामप्यारी को अपना जीवन
अंधकारमय लगने लगा। वे अत्यधिक बीमार रहने लगीं। उन्हें क्षय रोग लग गया। ८ अगस्त
१९२४ को इनकी मां रामप्यारी बच्चों को अकेला छोड़ ईश्वर को प्यारी हो गयीं। इस तरह
७ वर्ष की कोमल अवस्था में ही दीनदयाल जी माता-पिता के प्यार से वंचित हो गये। उपाध्याय
जी ने पिलानी, आगरा तथा प्रयाग में शिक्षा प्राप्त की। बी०.एससी० बी०टी०
करने के बाद भी उन्होंने नौकरी नहीं की। छात्र जीवन से ही वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक
संघ के सक्रिय कार्यकर्ता हो गये थे। अत: कालेज छोड़ने के तुरन्त बाद वे उक्त
संस्था के प्रचारक बन गये और एकनिष्ठ भाव से संघ का संगठन कार्य करने लगे।
सन १९५१ ई० में अखिल भारतीय जनसंघ का निर्माण होने पर वे उसके संगठन मन्त्री बनाये गये। दो वर्ष बाद सन् १९५३ ई० में उपाध्याय जी अखिल भारतीय जनसंघ के महामन्त्री निर्वाचित हुए और लगभग १५ वर्ष तक इस पद पर रहकर उन्होंने अपने दल की अमूल्य सेवा की। कालीकट अधिवेशन (दिसम्बर १९६७) में वे अखिल भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। महान चिन्तक और संगठनकर्ता उपाध्यायजी नितान्त सरल और सौम्य स्वभाव के व्यक्ति थे। राजनीति के अतिरिक्त साहित्य में भी उनकी गहरी अभिरुचि थी। उनके हिंदी और अंग्रेजी के लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते थे। ज्ञातव्य है कि केवल एक बैठक में ही उन्होंने चन्द्रगुप्त नाटक की रचना कर डाली थी| ११ फरवरी, १९६८ की रात में रेलयात्रा के दौरान मुगलसराय के आसपास उनकी हत्या कर दी गयी थी| इस प्रकार विलक्षण बुद्धि, सरल व्यक्तित्व एवं नेतृत्व के अनगिनत गुणों के स्वामी भारतीय राजनीतिक क्षितिज के इस प्रकाशमान सूर्य ने भारतवर्ष में समतामूलक राजनीतिक विचारधारा का प्रचार एवं प्रोत्साहन करते हुए सिर्फ ५२ साल के उम्र में अपने प्राण राष्ट्र को समर्पित कर दिए। उनकी कुछ प्रमुख पुस्तकों के नाम इस प्रकार हैं - दो योजनाएँ, राजनीतिक डायरी, भारतीय अर्थनीति का अवमूल्यन, सम्राट चन्द्रगुप्त, जगद्गुरु शंकराचार्य, राष्ट्र जीवन की दिशा और एकात्म मानववाद
श्री दीनदयाल जी के द्वारा निर्मित राजनैतिक जीवनदर्शन का पहला सूत्र उनके शब्दों में,
“ भारत में रहनेवाला और इसके प्रति ममत्व की भावना रखने वाला
मानव समूह एक जन हैं| उनकी जीवन प्रणाली, कला, साहित्य और दर्शन सब भारतीय संस्कृति है| इसलिए भारतीय
राष्ट्रवाद का आधार यह संस्कृति है| इस संस्कृति में निष्ठा रखें तभी भारत एकात्म
रहेगा|”
आज पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की पुण्यतिथि
है| हमारी ओर से उन्हें भावभीनी श्रधांजलि!!!