“खूब लड़ी मरदानी वो तो झांसी वाली
रानी थी” जैसी अमर कविता की रचयिता सुभद्रा
कुमारी चौहान जितनी बड़ी कवयित्री थीं, उतनी ही बड़ी कथाकार भी थीं। सुभद्राकुमारी चौहान का जन्म
नागपंचमी के दिन 16 अगस्त 1904 को इलाहाबाद (उत्तरप्रदेश) के निकट निहालपुर गाँव में एक
सम्पन्न परिवार में हुआ था। सुभद्राकुमारी को बचपन से ही काव्य-ग्रंथों से विशेष
लगाव व रूचि था। आपका विद्यार्थी जीवन प्रयाग
में ही बीता। अल्पायु आयु में ही सुभद्रा की पहली कविता प्रकाशित हुई थी। गौरतलब
है कि सुभद्रा और महादेवी वर्मा दोनों बचपन की सहेलियाँ थीं। सुभद्राकुमारी का
विवाह खंडवा (मध्य प्रदेश) निवासी 'ठाकुर लक्ष्मण सिंह' के साथ हुआ। पति के साथ वे भी महात्मा गांधी के आंदोलन से
जुड़ गईं और राष्ट्र-प्रेम पर कविताएं करने लगी। इनका पहला काव्य-संग्रह 'मुकुल' 1930 में प्रकाशित हुआ। इनकी चुनी
हुई कविताएँ 'त्रिधारा' में प्रकाशित हुई हैं। 'झाँसी की रानी'
इनकी बहुचर्चित रचना है। सुभद्राजी
को प्राय: उनके काव्य के लिए ही जाना जाता है लेकिन उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में
भी सक्रिय भागीदारी की और जेल यात्रा के पश्चात आपके तीन कहानी संग्रह भी प्रकाशित
हुए| कवितायों की भांति उनकी कहानियाँ
भी हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि हैं और पाठकों की संवेदना पर नावक के तीर का-सा
असर छोड़ती हैं। सुभद्रा जी की कहानियाँ एक ओर जहाँ रूढ़ियों पर प्रहार करती हैं
वहीं ऊपरी दिखावे का भी विरोध करती हैं। उनकी कहानियां पठनीय और संग्रहणीय हैं| १५
फरवरी १९४८ को एक कार दुर्घटना में उनका आकस्मिक निधन हो गया था।
कथा साहित्य
'बिखरे मोती' उनका पहला कहानी संग्रह है। इसमें भग्नावशेष, होली, पापीपेट, मंझलीरानी, परिवर्तन, दृष्टिकोण, कदम के फूल, किस्मत, मछुये की बेटी, एकादशी, आहुति, थाती, अमराई, अनुरोध, व ग्रामीणा कुल १५ कहानियां हैं!
इन कहानियों की भाषा सरल बोलचाल की भाषा है! अधिकांश कहानियां नारी विमर्श पर
केंद्रित हैं! उन्मादिनी शीर्षक से उनका दूसरा कथा संग्रह १९३४ में छपा। इस में
उन्मादिनी, असमंजस, अभियुक्त, सोने की कंठी, नारी हृदय, पवित्र ईर्ष्या, अंगूठी की खोज,
चढ़ा दिमाग, व वेश्या की लड़की कुल ९ कहानियां हैं। इन सब कहानियों का
मुख्य स्वर पारिवारिक सामाजिक परिदृश्य ही है। 'सीधे साधे चित्र'
सुभद्रा कुमारी चौहान का तीसरा व
अंतिम कथा संग्रह है। इसमें कुल १४ कहानियां हैं। रूपा, कैलाशी नानी, बिआल्हा, कल्याणी, दो साथी, प्रोफेसर मित्रा,
दुराचारी व मंगला - ८ कहानियों की
कथावस्तु नारी प्रधान पारिवारिक सामाजिक समस्यायें हैं। हींगवाला, राही, तांगे वाला, एवं गुलाबसिंह कहानियां राष्ट्रीय विषयों पर आधारित हैं।
सुभद्रा कुमारी चौहान ने कुल ४६ कहानियां लिखी और अपनी व्यापक कथा दृष्टि से वे एक
अति लोकप्रिय कथाकार के रूप में हिन्दी साहित्य जगत में सुप्रतिष्ठित हैं!
कहानी संग्रह
बिखरे
मोती (१९३२)
उन्मादिनी
(१९३४)
सीधे
साधे चित्र (१९४७)
कविता संग्रह
मुकुल
त्रिधारा
कवितायें
अनोखा
दान, आराधना, इसका रोना, उपेक्षा, उल्लास,कलह-कारण, कोयल, खिलौनेवाला, चलते समय, चिंता, जीवन-फूल, झाँसी की रानी की समाधि पर, झांसी की रानी,
झिलमिल तारे, ठुकरा दो या प्यार करो, तुम, नीम, परिचय, पानी और धूप, पूछो, प्रतीक्षा, प्रथम दर्शन,प्रभु तुम मेरे मन की जानो, प्रियतम से, फूल के प्रति, बिदाई, भ्रम, मधुमय प्याली,
मुरझाया फूल, मेरा गीत, मेरा जीवन, मेरा नया बचपन,
मेरी टेक, मेरे पथिक, यह कदम्ब का पेड़-2, यह कदम्ब का पेड़,
विजयी मयूर,विदा,वीरों का हो कैसा वसन्त, वेदना, व्याकुल चाह, समर्पण, साध, स्वदेश के प्रति,
जलियाँवाला बाग में बसंत|
जीवनी
'मिला तेज से तेज'
सम्मान पुरस्कार
भारतीय
तटरक्षक सेना ने २८ अप्रैल २००६ को सुभद्राकुमारी चौहान की राष्ट्रप्रेम की भावना
को सम्मानित करने के लिए नए नियुक्त एक तटरक्षक जहाज़ को सुभद्रा कुमारी चौहान का
नाम दिया है। भारतीय डाकतार विभाग ने ६ अगस्त १९७६ को सुभद्रा कुमारी चौहान के
सम्मान में २५ पैसे का एक डाक-टिकट जारी किया है।