अलीगढ़ में जन्म से ही नेत्रहीन
रविन्द्र जैन के मन की आँखों ने जीवन संगीत के उस स्वरुप को छू लिया, जिसे
नेत्रवान इंसान को छूने में सदियाँ लग जायें| रविन्द्र जैन उस शख्सियत का नाम है,
जिसने कुदरत द्वारा प्रदत्त अभिशाप को वरदान साबित कर एक नजीर पेश की कि हौसलों के
आगे हर चीज़ बेमानी है| रविन्द्र जैन बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे| उम्दा गीत लिखना,
उसकी लय-तान-धुन बनाना औरर अपनी सधी सिद्ध आवाज़ से जनमानस के अंतर्मन को छूना उनकी
खासियत थी| शार्टकट को न अपनाकर उन्होंने अपनी कठिन संगीत साधना से सिने-संसार को अमूल्य
गीतों की वह विरासत दी है, जिसके लिए यह संसार उनका सदैव ऋणी रहेगा|
हम चाहें कितने ही क्यूं ना आधुनिक बन जाएँ लेकिन अपनी जड़ों के अटूट बंधन से हम स्वयं कभी अलग नहीं हो सकते| इसी सादगी को सुमधुर भारतीय संगीत में ढ़ाला रविन्द्र जैन ने, जिसे प्यार से लोग “दादू” पुकारते थे| रविन्द्र जैन ने नई प्रतिभाओं को मुक्कमल पहचान दी, जैसे जसपाल सिंह, आरती मुख़र्जी, यसुदास, सुरेश वाडेकर और हेमलता|
सौदागर फिल्म के सजना है मुझे,
फकीरा के सुन के तेरी पुकार, चोर मचाये शोर के घुंघरु की तरह, एक डाल पर तोता, अंखियों
के झरोखों से के शीर्षक गीत एवं कई दिन से मुझे, गीत गाता चल के शीर्षक गीत एवं
श्याम तेरी बंसी पुकारे, चितचोर के तू जो मेरे सुर में, गोरी तेरा गाँव बड़ा प्यारा,
जब दीप जले आना, नदिया के पार के कवन दिसा में लेके चला रे बटोहिया, जब तक पूरे ना
हों, जोगी जी वाह जोगी जी, मरते दम तक के शीर्षक गीत से लेकर राम तेरी गंगा मैली फिल्म
के हुस्न पहाड़ों का, सुन साईबा सुन प्यार की धुन, इक राधा इक मीरा, हिना फिल्म के
कब आओगे, मै हूँ खुशरंग हिना, चिट्ठिये पंख लगा के तथा वर्तमान पीढ़ी की पसंदीदा फिल्म
विवाह के सीधे सरल गीतों जैसे तुझको जी भरके मै देखूं मुझे हक़ है, दो अनजाने
अजनबी, हमारी शादी में जैसे दादू का सादगी भरा सुमधुर कर्णप्रिय गीत-संगीत पहले भी
हिट था, आज भी हिट है और कल भी हिट रहेगा| वहीं रामायण, श्री कृष्णा, अलिफ़ लैला
जैसे धारावाहिकों के गीत-संगीत से भी संगीत-प्रेमी “दादू” को सदैव अपने दिल में बसाकर
रखेंगे| ऐसे सादगीपसंद संगीत के विलक्षण गुणी साधक को उनके सभी चाहने वालों की तरफ
से कोटिशः प्रणाम एवं भावभीनी श्रधांजलि......